डंके की चोट पर : राजनीति समाजसेवा है तो टिकटों के लिए एक दूसरे के कपड़े क्यों उतार रहे हो..

    गौर से देखिए। चुनाव में  नेता आसमान में मंडराते चील के झुंडो की तरह नजर आएंगे और जनता जमीन पर बिखरे सड़े गले मांस की गंध से उन्हें अपने पास आने के लिए निमंत्रण देती नजर आ रही है ।


रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण

कोई छोटा बड़ा नेता यह दावा करे की वह समाजसेवा के लिए राजनीति में आया है। किसी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़कर सत्ता में आकर सेवा करना चाहता है तो समझ जाइए आप साइबर फ्राड की तरह ठगे जा रहे हैं। समाजसेवा और राजनीति का आपस में दूर तक कोई रिश्ता नही है। जिसे सच्ची सेवा करनी है उसके दूसरे हाथ को भी पता नही चलता। जिसे राजनीति करनी है उसे सुबह उठने से लेकर रात सोने तक किए जाने वाले क्रिया कलापों का शोर चाहिए। मीडिया खबरों का बैंड बाजा बनकर नेताजी को खुश रखता है ओर जनता इसे सच समझकर आज मेरे यार की शादी है की धुन पर नाचने लगती है।  

हरियाणा में चुनाव को लेकर जो माहौल नजर आ रहा है। उसे गौर से देखिए। आपको नेता आसमान में मंडराते चील के झुंडो की तरह नजर आएंगे और जनता जमीन पर बिखरे सड़े गले मांस की गंध से उन्हें अपने पास आने के लिए निमंत्रण देती नजर आ रही है। समझ में नही आ रहा की राजनीतिक दल क्या सोचकर विचारधारा, मूल्यों की बात करते हैं। उनका सारा खेल तो साम दंड भेद से कुर्सी को हथियाकर सत्ता पर काबिज होना है। चुनाव में नेताओं का उमडा प्यार शीश महल की तरह होता है जिसमें वह हर समय अपने चेहरे को देखकर इतराता रहता है। यह महल उसे हर पल यह अहसास कराता है की उससे बेहतर कोई नही है। चुनाव के बाद जब उसका यह भ्रम टूट जाता है तो सबसे पहले यही नेता महल पर पत्थरों की बौछार कर उसे चकनाचुर कर देता है। इसलिए चुनाव में बेहतर उम्मीदवार का चयन करता है तो  सबसे पहले खुद के प्रति ईमानदार और जवाबदेह बनना पड़ेगा। कौन नेता किस पार्टी की टिकट या किसी असरदार नेता के इशारे या आशीर्वाद पर आ रहा है या निर्दलीय मैदान में है। यह महत्वपूर्ण नही है। वह सफेद कुर्ता पायजामा पहनने से  पहले बेहतर इंसान के तौर पर खुद को साबित कर पाया है या नही उसे समझना जरूरी है। अगर मतदाता ईमानदारी से इसका मूल्याकंन कर पाए तो वह चुनाव में गोश्त की तरह जमीन पर नजर नही आएंगे ओर नेता चील बनकर आसमान में मंडराना बंद कर देंगे।