रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण
सच को यह बताना पड़े की मै सच हूं। ईमानदारी को यह साबित करना पड़े की वह ईमानदार है। समझ जाइए आप ऐसे बाजार में खड़े हैं जहां कुछ समय के लिए आपके दिलो दिमाग के साथ खेला जाएगा। उसके बाद निचोड़ कर वहा पटक दिया जाएगा जहा आप किसी लायक नही रहेंगे। चुनाव में इस तरह का बाजार पूरी तरह से चरम में रहता है। छल, कपट, बेईमानी अपने शरीर पर ईमानदारी का लेप लगाकर सबसे ज्यादा मंहगी बिकती है। यकीन नही हो तो चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों का नामाकंन भरते समय पेश किए शपथ पंत्र को जांच लिजिए। असल जीवन में वह आलीशान घर में रहेगे, लाखों करोड़ों की गाड़ी में आएंगे लेकिन चुनावी शपथ पत्र में कर्जदार दिखेगा। ऐसा करते समय कितनी ईमानदारी बरती गई। इसे देखकर तो ईमानदारी भी शर्मिंदगी के मारे डूबकर आत्महत्या करने का प्रयास कर चुकी है। चुनाव में जो नजारा नजर आता है उसे इंटरटेनमेंट फिल्म की तरह लिजिए। जिसमें मुख्य किरदार चुनाव लड़ने वाले नेताजी वह सबकुछ करते हुए नजर आएंगे जो उनकी जीत को सुनिश्चित कर दे। ऐसा लगेगा की वह अपने खून के कतरे कतरे से अपनी इस सीट की जमीन को संवारने के लिए पूरी तरह से बेताब है। वे भूल जाते है कि इस जमीन को बंजर किसने बनाया। अब आते हैं मीडिया पर। इसकी हालात उस बिल्ली- चूहे की तरह है। जो दीपावली पर्व के दिन घर या दुकान में गलती से घूमते नजर आ जाए तो उस दिन बिल्ली लक्ष्मी ओर चूहा गणेशी जी साक्षात दर्शन की तरह नजर आएंगे। उस समय तक दोनों को खाने पीने की खूली छूट मिलती है। दोनो ने घूमते हुए पूजा स्थल पर रखी खीर या मिठाईयों का आनंद ले लिया तो यह माना जाएगा की अब उनके घर पर सुख समृदि्ध, शांति और लक्ष्मी की कृपा बरसने जा रही है। अगले दिन इसी बिल्ली को देखकर घर के सदस्य लकड़ी लेकर पीछे भागते हैं ओर वे चूहे को पकड़ने के लिए जगह जगह पिंजरा लगाते हैं। चुनाव में जो नेता पैकेज देगा वह मीडिया की नजर में नेता नही तो उसकी कोई कहानी नही..। जहां तक जनता का सवाल है। अगर वह मतदान करते समय खुद के प्रति ईमानदार व जवाबदेह होती तो हमें यह सबकुछ लिखने की जरूरत नही पड़ती। वह चुनाव में सबसे पहले खुद को जाति धर्म में बांटेगी। खुद को भोली भाली बताकर अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट जाएगी। 30 से 40 प्रतिशत तो ऐसे हैं की वोट भी नही डालते लेकिन समाज के हालात पर सबसे ज्यादा शोर मचाते हैं। चुनाव में कुछ नेताओं की पोजीशन पानी की तरह पैसा बहाने के तौर पर रही है। रेवाड़ी में एकाध उम्मीदवार इसी नाम से जाना जाता है की वह नए पुराने नगर पार्षदों, सरपंचों और अलग अलग समाज के ठेकेदारों को बुलाकर विशेष पैकेज के साथ वोटों का टेंडर जारी करता है। कुल मिलाकर चुनाव में जो खुद को पाक साफ कहे तो समझ जाइए वह खतरनाक है। वजह ईमानदार व सच्चा इंसान वही करता है जो सही होता है। उसे बताने या साबित करने की जरूरत नही पड़ती।