मनीष सिसोदिया के बाहर आने से क्या सिस्टम बदलेगा, रत्ती भर भी नहीं

रणघोष खास. आशुतोष 

दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को आख़िर कार सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिल गई । सत्रह महीने जेल में रहने के बाद अब वो खुली हवा में साँस लेंगे । कोर्ट ईडी की कार्रवाई से नाराज़ दिखा और उसने फटकार भी लगाई । और ये संदेश भी दिया कि इतने लंबे समय तक उन्हें जेल में नहीं रखा जाना चाहिये । कोर्ट निचली अदालत से भी ख़फ़ा नज़र आया । लेकिन कोर्ट की इन नाराज़गियों और टिप्पणियों का हासिल क्या ? क्या इससे सिसोदिया के जेल में बिताये दिन वापस आ जायेंगे या फिर ईडी के अधिकारी संविधान की क़सम खा अब ईमानदारी से काम करेंगे ? या फिर निचली अदालतें अब बिना राजनीतिक सत्ता के दबाव में आये, नियमतः ज़मानत देंगी और असाधारण परिस्थितियों में ही आरोपी को जेल की सैर करनी होगी ? यक़ीन मानिये ऐसा कुछ भी नहीं होगा । सब कुछ पहले की तरह ही चलता रहेगा । ईडी आरोपियों को जेल में लंबा रखने के लिये नई नई तरकीबें खोजता रहेगा और अदालतें लोगों को जेल भेजती रहेंगी और असाधारण परिस्थितियों में ही लोगों को ज़मानत देगी । और फिर कभी कभार सुप्रीम कोर्ट ऐसी कोई टिप्पणी कर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी समझ लेगा । पिछले दस सालों में एक ऐसा तंत्र विकसित हो कर महादानव का रूप ले चुका है जिसे संविधान और क़ानून की कोई परवाह नहीं है । जब तक इस पूरे तंत्र की नये सिरे से समीक्षा नहीं होगी और इस में बुनियादी बदलाव नहीं किये जायेंगे तब तक ऐसे ही व्यवस्था चलती रहेगी, अबाध गति से । दरअसल, आज़ादी के बाद लोकतंत्र लोकतंत्र की बात करते हुये पूरा तंत्र ही लोकतंत्र विरोधी हो गया है जो सरकार की ज़िम्मेदारी तय करने की जगह आम नागरिक की ज़िम्मेदारी तय कर रहा है । सत्ता पर नकेल कसने की जगह नागरिकों की नाक में नकेल डाल रहा है । ये स्थितियाँ आने वाले दिनों में सुधरने वाली नहीं है क्योंकि सत्ता को ये सूट करता हैं और सत्ता कैसी भी हो उसका स्वभाव ऐसा है कि वो नागरिकों के अधिकारों का हनन करना अपनी मूल ज़िम्मेदारी समझती है । इसका ये मतलब क़तई नहीं कि मनीष सिसोदिया निर्दोष हैं । मैं केस की मेरिट पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा लेकिन अगर सिस्टम ऐसा हो जाये तो फिर ये सवाल लोगों के बीच ज़रूर उठेंगे, और उठने चाहिये कि क्या मनीष को फँसाया गया है । शराब घोटाले में संजय सिंह और अरविंद केजरीवाल के बाद मनीष तीसरे हाई प्रोफ़ाइल नेता है जिसे ईडी के मामलों में ज़मानत मिली है । संजय सिंह के मामले में कोर्ट ने एक तरह से उन्हें निर्दोष ही कह दिया था । अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के मामले अलग हैं । ये दोनों नेता सरकार में थे जब शराब नीति बनी और आरोप लगे, और इन पर गंभीर आरोप लगे हैं । अदालत ने सिर्फ़ ये कहा है कि इन्हें लंबे वक्त तक जेल में नहीं रखा जा सकता । कोई भी कानून या फिर जाँच एजेंसियों की कोई भी कार्रवाई संविधान द्वारा दिये गये नागरिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती । इसलिये इस आधार पर किसी की नागरिक स्वतंत्रता को लंबे समय तक सस्पेंड नहीं किया जा सकता है कि अभी तक जाँच पूरी नहीं हुई है । ये अधिकार किसी भी अधिकारी को नहीं दिया जा सकता कि वो ये तय करें कि किसी की नागरिक स्वतंत्रता पर वो कब तक अंकुश लगायेगा । और अदालत संविधान की संरक्षक होने के नाते ऐसे मामलों में दखल दे सकती है । जैसा कि मनीष के मामले में उसने किया है । लेकिन इन आधार पर ये सोच लेना कि मनीष के जेल से बाहर आते ही देश की राजनीति में कोई मौलिक बदलाव आ जायेगा तो ऐसा कुछ नहीं होने वाला ।  मनीष सिसोदिया ने जेल जाने के बाद अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था । अब ये केजरीवाल पर निर्भर करता है कि वो अपने बेहद विश्वासपात्र मित्र के जेल से बाहर आने के बाद उनको फिर से कैबिनेट में लेते हैं कि नहीं । यहाँ ये बताना आवश्यक है कि केजरीवाल अभी भी मुख्यमंत्री है और जेल से सरकार चलाने का दावा कर रहे हैं । लिहाजा उन्हें ही ये तय करना है कि वो पहले की तरह उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाते है या नहीं । बेहतर तो ये होता कि वो मनीष के बाहर आने के बाद अपने पद से इस्तीफ़ा दे दे और मनीष के नेतृत्व में नई सरकार बने । ताकि दिल्ली को एक चलने वाली सरकार मिले न कि ऐसी सरकार जो जेल से चलाई जा रही हो । ये केजरीवाल की अपनी छवि के लिये भी अच्छा नहीं है और न ही दिल्ली की जनता के लिये । और न ही जेल से सरकार चलाने का कोई राजनीतिक लाभ ही मिल रहा है । वो लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जेल गये थे । और बीच में वो प्रचार के लिये बाहर भी आये पर दिल्ली की जनता पर इसका कोई असर नहीं पड़ा । आप कांग्रेस से गठबंधन के बावजूद दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत पाई । और पंजाब में भी वो सिर्फ़ तीन सीट ही निकाल पाई । वहाँ कांग्रेस ने सात सीटें जीती । यानी केजरीवाल को जेल जाने की कोई सहानुभूति नहीं मिल रही है । और ये उनके लिये ख़तरे की घंटी है ।