रणघोष अपडेट. रेवाड़ी
जिला बार के अधिवक्ताओं ने प्रधानमंत्री भारत सरकार के नाम एक खुला पत्र प्रेषित कर तीनों किसान विरोधी कृषि कानूनों को अविलंब वापस लेने की मांग की है। ज्ञातव्य की 2 दिन पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने खुला पत्र जारी करके किसानों से उक्त काले कृषि कानूनों के फायदे बताने की कोशिश की थी। इसके जवाब में रेवाड़ी के अधिवक्ताओं ने एक खुला पत्र प्रधानमंत्री को लिखकर उसमें बताया है कि उक्त तीनों कृषि कानून किस प्रकार किसान व जनविरोधी है।
एडवोकेट शंकर सिंह लेफ्टिनेंट कमांडर (रिटायर्ड), कॉमरेड रमेश चंद्र एडवोकेट, विजय सिंह एडवोकेट, विक्रम सिंह चौहान एडवोकेट,आरती यादव एडवोकेट, मुकेश वशिष्ट एडवोकेट, दिनेश राव एडवोकेट, ब्रिजेंद्र सिंह फोगाट एडवोकेट, जगत सिंह निनानियां एडवोकेट, अमित नानगवाल एडवोकेट, राकेश पवार एडवोकेट, विपिन कुमार एडवोकेट, पवन कुमार एडवोकेट, नवनीत यादव एडवोकेट, रविंद्र मेहरा एडवोकेट, सतीश कुमार एडवोकेट, रमेश यादव एडवोकेट, केतन मौर्य एडवोकेट, ओम प्रकाश यादव एडवोकेट, अरविंद सिंह एडवोकेट, हेमंत कुमार एडवोकेट, श्याम सिंह एडवोकेट, सतीश शर्मा एडवोकेट, ज्ञानेंद्र कुमार एडवोकेट, सत्येंद्र यादव एडवोकेट, नरेंद्र सिंह एडवोकेट, राकेश कुमार एडवोकेट, विपिन एडवोकेट, सुशील शर्मा एडवोकेट, प्रवीण कुमार एडवोकेट, सुनील कुमार एडवोकेट आदि अधिवक्ताओं द्वारा हस्ताक्षरित खुला पत्र प्रधानमंत्री के नाम प्रेषित किया गया। खुले पत्र में कहा गया कि आवश्यक वस्तु संशोधन कानून में छह जरूरी चीजों अनाज,दालें, आलू, प्याज,वनस्पति तेल व तिलहन आदि का स्टॉक लिमिट खत्म कर जमाखोरी व कालाबाजारी को खुली छूट दे दी गई है। इससे किसानों समेत उपभोक्ताओं के साथ–साथ वो परिवार भी संकट में पड़ेंगे जिनकी रोजी–रोटी खेती पर निर्भर है। इस कानून से आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि होगी।
कामरेड रमेश चंद्र एडवोकेट ने कहा कि नए मंडी कानून में मौजूदा मंडियों को बंद करने व प्राइवेट कंपनियों को तमाम कृषि उपज पूरे देश में कहीं भी बेरोकटोक बेचने व खरीदने की खुली छूट दे दी है। इससे कॉरपोरेट्स का कृषि क्षेत्र में एकाधिकार कायम हो जाएगा । थोक व खुदरा बाजार इनकी की मुट्ठी में होगा। किसान पूर्ण रूप से कॉरपोरेट कंपनियों की दया पर निर्भर हो जाएगा। एफसीआई व हैफेड जैसे संस्थान पूर्ण रुप से बंद हो जाएंगे और साथ ही साथ बेरोजगारी बढ़ेगी। उक्त तीनों कानूनों में किसानों को अपने साथ हुई धोखाधड़ी के खिलाफ कोर्ट में जाने का प्रावधान भी बंद कर दिया है। एडवोकेट ब्रिजेंद्र सिंह फोगाट ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में कंपनियां अपने पसंद की खेती करवायेंगी। इसका साफ–साफ मतलब है कि किसान कमाएगा और कंपनियां मुनाफा बटोरेंगी। किसान कंपनियों के चंगुल में फंसकर अपनी जमीन से हाथ धो बैठेंगे।
एडवोकेट शंकर सिंह व विजय सिंह ने कहा कि उपरोक्त कृषि कानूनों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)का कहीं कोई वर्णन नहीं है। कृषि में लागत खर्च के अनुपात में फसल का मूल्य नहीं मिलने से कर्ज में डूब कर 4लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। किसी भी पार्टी में किसानों के हित में एमएसपी का कानून नहीं बनाया। किसानों के जीवन स्तर को उन्नत करने के लिए खेती में लागत खर्च के अनुपात में फसल के दाम निर्धारित किए जाएं। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू की जाए। साथ ही साथ अधिवक्ताओं ने बिजली बिल 2020 को भी रद्द करने की मांग की क्योंकि इससे बिजली पूरी तरह प्राइवेट कंपनियों के चली जाएगी।
परिणाम स्वरूप सिंचाई बेतहाशा महंगी होगी और गरीब लोग बिजली से वंचित हो जाएंगे। बिक्रम सिंह चौहान, नवनीत यादव, सतीश शर्मा,जगत सिंह निनानियां, मुकेश वशिष्ठ, दिनेश राव, सुशील शर्मा , ज्ञानेंद्र कुमार, सतेन्द्र यादव, केतन मोर्या,अमित नानगवाल, राकेश पंवार आदि अधिवक्ताओं ने प्रधानमंत्री से अपील की कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है। लोकतंत्र में सरकार जनता के लिए होती है ना की जनता सरकारों के लिए । लोक कल्याणकारी राज्य में चुनी हुई सरकार है का दायित्व है कि समाज विकास के लिए जन कल्याणकारी योजनाएं लागू करें। जनता की जायज मांग को मांगने में सरकार का अहम आड़े नहीं आना चाहिए। कामरेड रमेश चंद्र एडवोकेट ने कहा कि यह मानी हुई बात है कि खेती–बाड़ी किसानों का कारोबार नहीं है बल्कि यह किसानों समेत लाखों–करोड़ों लोगों का जीवन रक्षक रोजगार है। इसलिए किसानों का यह आंदोलन अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई है। लिहाजा व्यापक जनहित में हम रेवाड़ी बार के अधिवक्ता गण आपसे उक्त तीनों काले कृषि कानूनों समेत बिजली बिल 2020 को वापस लेने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने की मांग करते है।