क्या आप जानना चाहेंगे कैसे मिला राजधानी, शताब्दी और दुरंतो जैसी प्रीमियम ट्रेनों को उनका नाम
भारतीय रेल को देश की लाइफलाइन कहा जाता है. हर दिन करोड़ों की संख्या में लोग इससे यात्रा करते हैं. कुछ छोटी दूरी की तो कुछ यात्राएं लंबी दूरी की होती है. लंबी दूरी की यात्रा के लिए 3 ट्रेनों को सर्वेश्रेष्ठ माना जाता है. इनके नाम हैं राजधानी, शताब्दी और दुरंतो एक्सप्रेस. वैसे तो ट्रेनों का कई बार नामकरण उनके शुरुआती और गंतव्य स्थल के नाम पर ही कर दिया जाता है. लेकिन कुछ ट्रेने हैं जिनके नाम के पीछे विशेष मतलब भी होता है. इन्हीं विशेष नामों वाली ट्रेन में शामिल हैं राजधानी, शताब्दी और दुरंतो. आप आगे जानेंगे कि इन तीनों ट्रेनों को ये नाम कैसे दिया गया और ये अन्य ट्रेनों के मुकाबले से कैसे अलग हैं. इनकी खासियतों में ट्रेन के अंदर मिलने वाली सुविधाएं और स्पीड शामिल हैं.
राजधानी एक्सप्रेस
यह भारत की श्रेष्ठ ट्रेनों में से एक है. इसे दिल्ली से अन्य राज्यों की राजधानी के बीच चलाया जाता है इसलिए यह राजधानी एक्सप्रेस कहलाती है. यह पूरा गाड़ी एसी है और इसमें आपको खाने के लिए अलग से पैसे नहीं देने होते हैं. इसकी थर्ड एसी की टिकट भी अन्य गाड़ियों के थर्ड एसी से महंगी होती है. इसकी अधिकतम स्पीड 140 किलोमीटर प्रति घंटे रहती है. अगर कभी एक ही ट्रैक पर कई गाड़ियों को निकालना है तो सबसे पहले राजधानी को ही रास्ता दिया जाता है.
शताब्दी एक्सप्रेस
राजधानी हजारों किलोमीटर का सफर तय करने वाली प्रीमियम ट्रेन है जबकि इसके उलट शताब्दी को केवल 400-800 किलोमीटर के बीच ही चलाया जाता है. यह पूरी ट्रेन चेयरकार होती है. इसे भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के 100वें जन्मदिन पर 1989 में चलाया गया था इसलिए इसका नाम शताब्दी एक्सप्रेस है. ये अधिकतम स्पीड के मामले में राजधानी से भी 20 है. इसकी अधिकतम स्पीड 160 किलोमीटर प्रति घंटा है. सुविधाएं इसमें भी राजधानी जैसी ही होती हैं.
दुरंतो एक्सप्रेस
इस ट्रेन की संख्या राजधानी और शताब्दी दोनों से ही ज्यादा है. दुरंतो एक बंगाली शब्द है जिसका मतलब है निर्बाध. ये ट्रेन सबसे कम स्टेशनों पर रुकती है और लंबी दूरी के सफर को तेजी से पूरा करती है. कम स्टॉपेज के कारण इसे राजधानी से तेज माना जाता है. इसकी स्पीड भी 140 किलोमीटर प्रति घंटा तय की गई है. दुरंतो विशेष परिस्थितियों में ही प्रतिदिन चलाई जाती है वरना आमतौर पर इसे हफ्ते में 2 या 3 दिन ही चलाया जाता है. इस ट्रेन के कोच आम ट्रेनों के कोच से ऊंचे होते हैं जिसकी वजह से इसे जल्दी स्पीड पकड़ने में मदद मिलती है.
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