चुनाव शहर की सरकार का: नगर निकाय चुनाव में रेवाड़ी हार-जीत के गणित को कुछ इस तरह समझिए

कप्तान- कापड़ीवास- सतीश अपनी वोट बैंक के खुद मालिक, भाजपा में मैनेजर- डायरेक्टर के हाथों में जिम्मेदारी


रणघोष खास. वोटर की कलम से


नगर निकाय चुनाव सिबंल पर लड़ना कांग्रेस- भाजपा के लिए पहला ओर जोखिम भरा प्रयोग है। वे कितना सफल हो पाते हैं यह रजल्ट बताएगा। इतना जरूर है कि राजस्थान में हुए पंचायती राज चुनाव में निर्दलीय मजबूत ताकत के साथ उभरे हैं। हालांकि इससे पहले यह स्थिति नहीं थी। रेवाड़ी नगर परिषद चुनाव में चेयरमैन दावेदारों की बात करें तो तस्वीर साफ है। कांग्रेस से विक्रम यादव के लिए कप्तान ही वोट बैंक है। निर्दलीय में मजबूत दावेदारी में खड़ी उपमा यादव के पास उनके पति पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव एवं साथ खड़े पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास सीधे मतदाताओं से जुड़े हुए हैं। यानि इनके ऊपर कोई बॉस नहीं है। भाजपा में स्थिति एकदम उलट है। यहा पार्टी प्रत्याशी पूनम यादव के साथ सगंठन है जिसमें अलग अलग पदों पर बैठे पदाधिकारियों की सक्रियता ही जीत- हार की ताकत बनेगी। पूनम यादव के हार-जीत के गणित में बहुत कुछ छिपा है। भाजपा का मजबूत पक्ष यह है कि हरियाणा में उसकी सरकार है जिसका 4 चार साल का कार्यकाल बचा है। स्वाभाविक है विकास के लिए सरकार का साथ जरूरी है। कमजोर पक्ष यह है कि भाजपा में अन्य प्रत्याशियों की तरह मतदाताओं के पास प्रत्याशी से सीधा जुड़ाव का रास्ता नहीं है। अलग अलग रास्तों से उन्हें गुजरना पड़ता है जिसमें गुटबाजी एवं आपसी खिंचतान के रोडे भी उसे वहीं रोक देते हैं। हालांकि पिछले चार रोज से इन रोडो को रास्ते से हटाने का प्रयास किया गया है लेकिन बहुत पसीना बहाना पड़ेगा। मीडिया कवरेज  में तो भाजपा एकजुटता के साथ जोश में नजर आती है। जमीनी हकीकत में अभी भी नजारा कुछ ओर ही नजर आता है। जिस तरह 2013- 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नरेंद्र मोदी के नाम पर एक आवाज से गूंज रही थी छोटे चुनाव जिसे वोट बैंक की बुनियाद कहा जाता है में यह एकजुटता संघर्ष करते हुए नजर आती है।  इसलिए इन चुनावो के लिए भी मुख्यमंत्री- प्रदेश स्तर के सीनियर नेताओं को बुलाना पड़ रहा है ताकि संगठन एकजुट के संदेश में पूनम यादव की ताकत बन जाए। यहां भाजपा रणनीतिकारों के लिए यह चुनौती है कि भाजपा के असली- नकली चेहरो को भी पहचाने।  चुनावी कार्यक्रमों में चेहरा दिखाकर अपने घरों में आराम करने वाले भाजपाई संगठन एवं उम्मीदवार के लिए विपक्ष से ज्यादा खतरनाक होगे। आमतौर पर चुनाव में प्रत्याशी की स्थिति पृथ्वी पर उस सबसे बड़े धैर्यवान इंसान के तौर पर बनी रहती है जिसे पता है कि सामने वाला उसे अलग अलग तरीकों से इस्तेमाल कर रहा है फिर भी उसे मुस्काकर, गले लगाकर बर्दास्त करना पड़ता है। कुल मिलाकर इस चुनाव में जमीन पर जो सही दिशा में सबसे ज्यादा पसीना बहाएगा वह जीत के करीब रहेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *