जिंदगी ओर कुछ नहीं तेरी मेरी कहानी है…….शिक्षा और समाज के सजग प्रहरी ठाकुर कलेक्टर सिंह के जीवन की यह कहानी सभी के लिए प्रेरणा

रणघोष खास. सत्यवीर नाहड़िया की कलम से
रेवाड़ी जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर महेंद्रगढ़ रोड पर स्थित मुंदी गांव में 1 अप्रैल 1931 को ठाकुर मितरू सिंह व श्रीमती अनारो देवी के घर पैदा हुए कलेक्टर सिंह चार भाइयों व तीन बहनों में दूसरे नंबर पर थे । उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में पंडित लेखराज शर्मा के कड़े अनुशासन में हुई । पांचवी और छठी कक्षा पंडित मुंशीराम की शागिरदी में पड़ोस के गांव बुडोली से पास की । अपने पिता ठाकुर मितरू सिंह जो गांव के बड़े जमीदार और इलाके के रसूख दारों की गिनती में शुमार थे की बदौलत आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें सरकारी स्कूल खोरी गांव में मुख्याध्यापक नजर मोहम्मद के शिष्य होने का अवसर प्राप्त हुआ । खोरी स्कूल से सातवीं और आठवीं कक्षा पास करने के बाद उन्हें लगभग 20 किलोमीटर दूर राव मोहर सिंह हाई स्कूल कंवाली दाखिला लेना पड़ा । स्कूल के हेडमास्टर पिशोरी लाल का रूतबा स्कूल की ख्याति को दूर-दूर तक फैला रहा था । आजादी के पूर्व के इस दौर में शिक्षा के प्रति जागरूकता का अभाव था । संपन्न परिवारों के भी होनहार बच्चे ही सही शिक्षा के लिए जगह-जगह अपने घरों से दस बीस किलोमीटर तक की दूरी पैदल ही तय किया करते थे । उस जमाने में स्कूल का रुतबा उसके भवन अथवा प्रबंधकों से अधिक वहां तैनात मुख्य अध्यापक और स्टाफ की काबलियत से तय होता था । 1949 में मैट्रिक पास करने के बाद उन्होंने अहीर कॉलेज रेवाड़ी में दाखिला लिया और 1951 में उस जमाने की एफ ए परीक्षा पास की । 9 मई 1954 को मेवात के बीघावली गांव के रसूखदार नंबरदार ठाकुर ननवा सिंह की बेटी पदमा रानी से उनकी शादी हुई । उस जमाने में 3 दिन तक बारात मेहमान नवाजी का आनंद उठाती थी । 1953 में अहीर कॉलेज से 2 साल की बी ए यानी स्नातक परीक्षा पास की । उस समय कॉलेज के प्रिंसिपल बधावा राम होते थे । 1954 में के एम कॉलेज भिवानी से बी टी डिग्री हासिल की । 1 साल नौकरी की तलाश में व्यतीत हुआ । गांव के प्रथम स्नातक होने का गौरव भी उन्हें प्राप्त हुआ । गांव के पुलिस स्टेशन खोल थाना में उस दौरान एक सरदार थानेदार तैनात था । गांव के दौरे पर आए थानेदार साहब ने अंग्रेजी में बुलाए गए नंबरदारों व मोजिजान को गाली गलौज देने की गुस्ताखी कर दी । यह बात रस्साकशी खेल के अग्रणी खिलाड़ी कलेक्टर सिंह को बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने सरेआम थानेदार की अच्छी खासी पिटाई कर दी । उन दिनों रेवाड़ी में अदालतें नहीं थी और गुड़गांव में ही अदालती कार्य हुआ करते थे । एक होनहार युवा स्नातक के कैरियर को ध्यान में रखते हुए मजिस्ट्रेट महोदय ने थानेदार को रजामंदी से फैसला करने के लिए बाध्य किया और कलेक्टर सिंह को मुकदमा से बरी कर दिया । सितंबर 1955 में जिला बोर्ड के हाई स्कूल कुशक ( पलवल ) में बतौर इंग्लिश अध्यापक उनकी पहली नियुक्ति हुई । अक्टूबर 1957 में पुन्हाना मेवात तैनाती के दौरान जिला बोर्ड से पंजाब सरकार शिक्षा विभाग में उनकी सेवाएं नियमित हो गई । अप्रैल 1959 में हाई स्कूल बोहड़ा कलां फिर दिसंबर 1959 में ही मिडिल स्कूल बीकानेर (रेवाड़ी) में बतौर मुख्य अध्यापक उनकी पदोन्नति हुई । 2 फरवरी 1960 से मई 1964 तक मिडिल स्कूल झाड़सा (गुड़गांव) फिर 1966 तक न्यू कॉलोनी गुड़गांव मिडिल स्कूल के मुख्याध्यापक रहे । अप्रैल 1966 में खंड शिक्षा अधिकारी के रूप में उन्होंने रादौर (यमुनानगर) में कार्यभार संभाला उसके बाद गन्नौर (सोनीपत), हथीन, हेली मंडी इसी पद पर स्थानांतरित हुए । हरियाणा राज्य का स्वतंत्र अस्तित्व सामने आने पर 1 साल में ही उनका चार स्थानों पर तबादला हुआ । उन्होंने कभी अपनी पसंद का स्टेशन लेने की कोई इच्छा व्यक्त नहीं की । सरकार ने जहां भेजा तुरंत वहां पदभार ग्रहण कर लिया । इससे उनकी प्रशासनिक दक्षता में बहुत निखार आया । उनके कार्य से मातहत और उच्च अधिकारी सदा प्रभावित रहे । अप्रैल 1968 में कलानौर (रोहतक )का पदभार संभाला । 24 जनवरी 1969 को उनकी माता जी का निधन हो गया । जून 1971 में लोहारू, 4 सितंबर 1973 भिवानी में खंड शिक्षा अधिकारी के रूप में उन्होंने ख्याति प्राप्त की । यहां से पदोन्नति होने पर उनका तबादला जून 1976 में कन्या हाई स्कूल कनीना में हो गया वहां से हाई स्कूल बूढवाल ( नारनौल ),1979 में हाईस्कूल टांकड़ी (बावल) का कार्यभार संभाला । 22 अप्रैल 1982 को उनके पिता श्री जो दो योजना गाँव के सरपंच भी रहे का निधन हो गया । जून 1985 में जिस स्कूल से उन्होंने छठी कक्षा पास की उसी हाई स्कूल बुडोली के मुख्य अध्यापक बनने का भी उन्हें सुअवसर मिला । सितंबर 1985 से 31 मार्च 1989 अपनी सेवानिवृत्ति तक उन्होंने हाई स्कूल मोहम्मदपुर अहीर ( गुड़गांव ) में मुख्य अध्यापक के रूप में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी ।
हरियाणा के विभिन्न स्थानों पर रहने के बाद सेवानिवृत्त होने पर उन्होंने अपने पैतृक गांव मुंदी में ही रहने का फैसला लिया । 26 मई 2014 को उनकी धर्मपत्नी के स्वर्ग सिधार जाने के बाद जरूर कुछ परिवर्तन के लिए बीच-बीच में वह अपने बड़े बेटे के पास रेवाड़ी भी रह जाते थे ।अपने चार बेटों, दो बेटियों के भरे पूरे परिवार की अगली तीसरी पीढ़ी का मुंह देख कर 30 नवंबर 2020 पूर्णिमा के पावन दिन वह सोने की सीढी ले परलोक सिधार गए ।

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