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Wooden Street: 80 लाख का पैकेज छोड़ बेचने लगे फर्नीचर, बना दी 4000 करोड़ की कंपनी


रणघोष अपडेट.  देशभर से साभार यूअर स्टोरी 


वुडन स्ट्रीट की शुरुआत ग्राहकों के लिए कस्टमाइज फर्नीचर बनाने के आइडिया के साथ हुई. आज के वक्त में कंपनी ने देश भर में करीब 100 एक्सपीरियंस स्टोर भी खोले हैं. अभी कंपनी का टर्नओवर करीब 300 करोड़ रुपये है. भारत में फर्नीचर खरीदना किसी भी शख्स के लिए एक गाड़ी खरीदने जैसा होता है. जब तक लोग फर्नीचर को छू कर उसे महसूस ना कर लें, तब तक उसे नहीं खरीदते. साल 2015 में जब लोकेंद्र सिंह राणावत ने वुडन स्ट्रीट (Wooden Street) का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म शुरू किया था, तो उनके लिए यह सबसे बड़ी चुनौती थी.

खैर, उन्होंने ऑनलाइन और ऑफलाइन का एक ऐसा मिक्स बनाया जो लोगों को बहुत पसंद आया और देखते ही देखते उनका बिजनेस चल निकला. आज वुडन स्ट्रीट की वैल्युएशन 4000 करोड़ रुपये के पार हो गई है और कंपनी का टर्नओवर 300 करोड़ रुपये का हो गया है. Get connected to Wooden Street आज वुडन स्ट्रीट देश की टॉप फर्नीचर कंपनियों में गिनी जाती है, लेकिन उदयपुर (राजस्थान) जैसे छोटे शहर के शख्स का ब्रांड यूं ही नहीं देश भर में फेमस हो गया, इसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है. लोकेंद्र के अलावा वुडन स्ट्रीट के 3 को-फाउंडर हैं, वीरेंद्र सिंह राणावत, दिनेश प्रताप सिंह राठौर और विकास बाहेती. वीरेंद्र और दिनेश तो लोकेंद्र सिंह के परिवार के ही हैं, जबकि विकास उनके दोस्त हैं. विकास ने कॉमर्स में पढ़ाई की है, जबकि बाकी तीनों को-फाउंडर इंजीनियर हैं. दिनेश और वीरेंद्र ने बाद में आईआईएम से एमबीए भी किया है. लाखों का पैकेज छोड़ शुरू की अपनी कंपनी Get connected to Wooden Street लोकेंद्र ने इंजीनियरिंग के बाद करीब 8 साल तक भारत में ही नौकरी की और फिर वह लंदन चले गए. वहां पर वह बिड़लासॉफ्ट में काम करते थे. अच्छी नौकरी थी, फ्यूचर भी ब्राइट था और 70-80 लाख का पैकेज भी था. वीरेंद्र भी जमशेदपुर में टाटा कंपनी में 10 साल तक काम कर चुके हैं. दिनेश भी सिंगापुर में प्रॉक्टर एंड गैंबल में करीब 11 साल तक काम कर चुके हैं.

वहीं विकास भी दिल्ली में नौकरी ही कर रहे हैं. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि ये सभी फर्स्ट जनरेशन आंत्रप्रेन्योर हैं. कैसे हुई वुडन स्ट्रीट की शुरुआत? कहते हैं ना सिर्फ पैसा आपकी हर ख्वाहिश पूरी नहीं कर सकता है. लोकेंद्र को हमेशा से ही आर्ट और डिजाइन में बहुत दिलचस्पी थी. वह इससे जुड़ा कुछ करना चाहते थे, लेकिन नौकरी के चक्कर में लंदन जाना पड़ा. वहां भी उन्होंने 2011 में एक आईटी कंपनी शुरू की थी, जो 3 साल ठीक ठाक चली. उसके बाद 2015 में शुरुआत हुई वुडन स्ट्रीट की. इसके लिए करीब 6-8 महीनों तक रिसर्च भी की गई, जिसके बाद कंपनी शुरू हुई. जैसा हर स्टार्टअप के साथ होता है, वुडन स्ट्रीट के लिए भी पहला साल बहुत मुश्किल रहा. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि स्टार्टअप उस वक्त एक नया कल्चर था.

वहीं फर्नीचर को ऑनलाइन बेचने वाले भी बहुत ही कम लोग थे. अमेजन-फ्लिपकार्ट पर तो उस वक्त कोई भी फर्नीचर नहीं बिकता था. उस वक्त राजस्थान के जोधपुर और जयपुर से दुनिया भर में फर्नीचर एक्सपोर्ट होता था. हालांकि, भारत की तुलना में विदेशों को जाने वाला फर्नीचर अलग होता है, क्योंकि उनकी मांग थोड़ी अलग होती है. कस्टमाइज फर्नीचर बनाती है कंपनी वुडन स्ट्रीट की जब शुरुआत हुई तो कंपनी ने कस्टमाइज फर्नीचर बनाना शुरू किया. इस तरह ये देश की पहली ऐसी कंपनी बनी, जो ग्राहकों की मांग के हिसाब से कस्टमाइज फर्नीचर बनाती थी. लोग जैसा फर्नीचर बनवाना चाहते थे, वैसी तस्वीर कंपनी को भेजते थे और कंपनी वैसे फर्नीचर बना देती थी. हालांकि, धीरे-धीरे कंपनी को लोगों की पसंद समझ आ गई और अब उन्होंने कस्टमाइजेशन बहुत कम कर दिया है. भारत में अधिकतर घरों में कारपेंटर जाते हैं और वहां पर जाकर फर्नीचर बनाते हैं. हालांकि, उन्हें बार-बार तमाम सामान लाकर देना और परेशान भी होना पड़ता है. ऐसे में वुडन स्ट्रीट ने उस समस्या को सुलझाया और बहुत सारे डिजाइन लॉन्च किए. अभी जो भी ऑनलाइन फर्नीचर कंपनियां हैं, वह खुद फर्नीचर नहीं बनाती हैं. यह कंपनियां एक तरह का मार्केट प्लेस हैं, जो तमाम ट्रेडर्स की तरफ से बनाई गई कंपनियों के फर्नीचर्स को अपने मार्केट प्लेस पर बेचती हैं. पहले तो वुडन स्ट्रीट ने भी तमाम वेंडर्स के साथ काम किया था,

लेकिन वह लोग कस्टमाइज फर्नीचर नहीं बना रहे थे. ऐसे में कंपनी ने अपनी खुद की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू की और फर्नीचर बनाने लगे. क्वालिटी को आसानी से कर लेते हैं कंट्रोल खुद की यूनिट होने के चलते प्रोडक्ट की क्वालिटी कंट्रोल करना आसान हो गया और इंडस्ट्री को अच्छे से समझते हुए प्रोडक्ट्स को बेहतर बनाने का भी मौका मिला. शुरुआत को उन्होंने मैनुअल मशीन और कारपेंटर से की थी, लेकिन फिर धीरे-धीरे समझ आने लगा की ग्राहक क्या चाहते हैं. हालांकि, फर्नीचर में बेहतरी के लिए वुडन स्ट्रीट ने सबसे बड़ी रिसर्च एंड डेवलपमेंट यूनिट भी शुरू की. अब जब वुडन स्ट्रीट से कोई ग्राहक संपर्क करता है तो ना सिर्फ उसे फर्नीचर बेचा जाता है, बल्कि उसे सही फर्नीचर को लेकर गाइड भी किया जाता है. यह भी बताया जाता है कि किस तरह का फर्नीचर डिलीवर किया जा सकता है और कैसा नहीं. बिना छुए और महसूस किए कोई नहीं लेता फर्नीचर इस बिजनेस को शुरू करते वक्त ही लोकेंद्र को ये समझ आ गया था कि लोग सिर्फ ऑनलाइन देखकर फर्नीचर नहीं खरीदेंगे. ऐसे में उन्होंने कस्टमर एक्सपीरियंस स्टोर खोलने शुरू किए. पहला स्टोर बेंगलुरु में खुला और अब पूरे देश में वुडन स्ट्रीट के करीब 100 स्टोर हैं. इन स्टोर में जाकर लोग प्रोडक्ट को छूकर देख पाते थे और खरीदने का सही डिसीजन ले पाते थे.

स्टोर में प्रोडक्ट देखने के बाद उसे ऑनलाइन ऑर्डर कर दिया जाता है. इन स्टोर की बदौलत कंपनी पर लोगों का भरोसा हर गुजरते दिन के साथ मजबूत होता गया और एक-दूसरे से इसकी बातें करने की वजह से बिना किसी मार्केटिंग के ही कंपनी तेजी से फैलती चली गई. शिपिंग का चैलेंज था सबसे बड़ा फर्नीचर के इस बिजनेस में सबसे बड़ा चैलेंज शिपिंग है. शुरुआती दौर में काफी टूट-फूट भी हुई. टॉप लॉजिस्टिक्स कंपनियों के साथ भी काम किया, लेकिन बात नहीं बनी. ऐसे में लोकेंद्र ने बाकी फाउंडर्स के साथ मिलकर इस समस्या का शानदार समाधान निकाला. पहले तो उन्होंने कुछ प्रोडक्ट्स को फोल्डेबल बनाने का काम शुरू किया, ताकि डिलीवरी में आसानी हो. वहीं डिलीवरी के लिए अपना खुद का नेटवर्क बनाते हुए लोकल लॉजिस्टिक्स पार्टनर बनाए. देश भर में कई जगह वेयरहाउस बनाए और लॉजिस्टिक्स की जिम्मेदारी खुद ही उठा ली. लोकेंद्र बताते हैं कि अब खुद का पूरा नेटवर्क है तो फर्नीचर डिलीवर करने का काम आसानी से हो रहा है. क्या है बिजनेस मॉडल? कंपनी का बिजनेस मॉडल बेहद आसान है. लोग सबसे पहले ऑनलाइन वेबसाइट पर जाते हैं और वहां अपनी पसंद के फर्नीचर देखते हैं. इसके बाद कंपनी की सेल्स टीम के साथ उनका इंटरेक्शन शुरू हो जाता है. वहां से लोग कंपनी के किसी नजदीकी स्टोर पर जाते हैं और प्रोडक्ट को छूकर देखते हैं. इसके बाद ग्राहक चाहे तो वहीं से यानी स्टोर से या फिर ऑनलाइन तरीके से प्रोडक्ट ऑर्डर कर देते हैं.

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