एक पिता के लिए इकलौते होनहार आईपीएस बेटे की तीस वर्ष की आयु में मृत्यु से बढ़कर कोई दुख नहीं हो सकता। लेकिन वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद् डॉ रामनिवास ‘मानव’ ने इस वज्रपात को भी हिम्मत के साथ झेलकर एक प्रशंसनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह कहना है राष्ट्रपति के विशेष कार्याधिकारी डॉ राकेश दुबे का। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित तथा डॉ ‘मानव’ द्वारा मनुमुक्त की बाल-लीलाओं पर रचित बालकाव्य-संग्रह ‘धूम मचाते मोनूजी’ पर केंद्रित ‘वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय विचार-गोष्ठी’ में बतौर मुख्य अतिथि उन्होंने कहा कि डॉ ‘मानव’ ने इस पुस्तक द्वारा अपने दिवंगत पुत्र को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है। मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल के निदेशक डॉ विकास दवे ने ‘धूम मचाते मोनूजी’ संग्रह की बाल-कविताओं की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में विवेच्य पुस्तक को एक एल्बम के समान बताया। उन्होंने कहा कि इस संग्रह में कवि डॉ ‘मानव’ द्वारा अपने बेटे की बाल-लीलाओं के मनोरम स्मृति-चित्र उकेरे गए हैं। अतः इन बाल-कविताओं को काव्यात्मक रेखाचित्र कहना अनुचित नहीं होगा। व्यक्तिगत दुख को भी अपनी रचनात्मक ऊर्जा द्वारा सार्वजनिक हित में बदलकर डॉ ‘मानव’ पूरे देश और समाज के लिए के प्रेरणा-स्रोत बन गए हैं। अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, नारनौल के अध्यक्ष डॉ जितेंद्र भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-गीत के उपरांत डॉ पंकज गौड़ के कुशल संचालन में संपन्न हुई इस महत्त्वपूर्ण गोष्ठी में सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राजस्थान) के कुलपति डॉ उमाशंकर यादव ने कहा कि ‘धूम मचाते मोनूजी’ बालकाव्य-संग्रह में वर्णित मनोहारी बाल-क्रीड़ाओं से मनुमुक्त का बचपन जीवंत हो उठा है, वहीं डॉ ‘मानव’ के कवि रूप की सुंदर झलक भी इसमें मिलती है। ये कविताएं बाल-पाठकों के लिए मनोरंजक ही नहीं, प्रेरणादाई भी सिद्ध होंगी। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ की बाल-पत्रिका ‘बालवाणी’ की संपादक डॉ अमिता दुबे ने ‘धूम मचाते मोनूजी’ की कविताओं को मनुमुक्त के बचपन को पुनर्जीवित करने का सार्थक प्रयास बताते हुए कहा की बाल-मनोविज्ञान और भाषा-शैली के स्तर पर भी ये कविताएं खरी उतरती हैं। पाठकों को संवेदना के स्तर पर जोड़ने वाला यह बालकाव्य-संग्रह बालकाव्य की अनमोल धरोहर है। इस अवसर पर जाह्नवी गौड़ द्वारा संग्रह की कुछ बाल-कविताओं का सस्वर पाठ भी किया गया।
ये रहे विशिष्ट वक्ता : उक्त प्रमुख अतिथियों के अतिरिक्त एक दर्जन देशों की जिन विशिष्ट विभूतियों ने वक्ता के रूप में इस विचार-गोष्ठी में सहभागिता की, उनमें डॉ श्वेता दीप्ति, काठमांडू (नेपाल), डॉ अंजलि मिश्रा, कोलंबो (श्रीलंका), डॉ मानसी शर्मा और बैजनाथ शर्मा, दोहा (कतर), ललिता मिश्रा, आबूधाबी (यूएई), डॉ मोना कौशिक, सोफिया (बल्गारिया), डॉ शिप्रा शिल्पी, कोलोन (जर्मनी), एमराह करकोच, अंकारा (तुर्की), डॉ सुधांशु शुक्ल, वर्सा (पोलैंड), डॉ रामा तक्षक, हेग (नीदरलैंड), डॉ शैलजा सक्सेना, टोरंटो (कनाडा), डॉ कमला सिंह, सैन डियागो (अमेरिका), डॉ हूंदराज बलवाणी, अहमदाबाद (गुजरात) और डॉ पूर्णमल गौड़, सोनीपत (हरियाणा) के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। सभी वक्ताओं ने ‘धूम मचाते मोनूजी’ के प्रकाशन को एक सार्थक प्रयास बताते हुए कहा कि मनुमुक्त ही नहीं, हर बच्चे के बचपन की झलक इस संग्रह की कविताओं में दिखाई पड़ती है। उन्होंने ‘धूम मचाते मोनूजी’ को पिता-पुत्र के मधुर संबंधों की आदर्श मिसाल भी बताया।
इन्होंने की सहभागिता : तीन घंटों तक चली इस भव्य विचार-गोष्ठी में वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) से विश्वबैंक की अर्थशास्त्री डॉ एस अनुकृति और कंसलटेंट प्रोफेसर सिद्धार्थ रामलिंगम, मुंबई (महाराष्ट्र) से आयकर उपायुक्त सुरेश कटारिया, आईआरएस, नेपाल के काठमांडू से अंतरराष्ट्रीय हिंदी-पत्रिका ‘हिमालिनी’ के प्रबंध-संपादक सच्चिदानंद मिश्र और महेंद्र नगर से महाकाली साहित्य-संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष हरीशप्रसाद जोशी, हरियाणा के भिवानी से चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ सुशीला आर्या, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) से साप्ताहिक ‘विश्व-विधायक’ के संपादक मृत्युंजयप्रसाद गुप्ता, नई दिल्ली से केआईआईटी और केआईएसएस विश्वविद्यालयों के ऑफ कैंपस की निदेशक डॉ कुमकुम शर्मा तथा अल्मोड़ा से उत्तराखंड बाल-साहित्य संस्थान के महासचिव और ‘बाल-प्रहरी’ पत्रिका के संपादक उदय किरौला के अतिरिक्त नई दिल्ली से डॉ शकुंतला कालरा और उर्वशी अग्रवाल, तलश्शेरी (केरल) से डॉ पीए रघुराम, महाराष्ट्र के मुंबई से डॉ मंजू गुप्ता, नागपुर से सुषमा यदुवंशी और अमलनेर से डॉ सुरेश माहेश्वरी, उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से डॉ संध्या तिवारी और अलीगढ़ से डॉ संतोषकुमार शर्मा, अररिया (बिहार) से डॉ जनार्दन यादव, नेरटी (हिमाचल प्रदेश) से रमेशचंद मस्ताना, अलवर (राजस्थान) से संजय पाठक तथा हरियाणा के हिसार से सदाचार चैनल की कुमारी दीक्षा, डॉ राजेश शर्मा, अशोक वशिष्ठ और आरजू शर्मा, नारनौंद से बलजीत सिंह और राजबाला ‘राज’, भिवानी से विकास कायत, दादरी से पुष्पलता आर्या, गुरुग्राम से कमलेश शर्मा और मोनिका शर्मा तथा नारनौल से ट्रस्टी डॉ कांता भारती, गरिमा गौड़, कृष्णकुमार शर्मा, एडवोकेट, सुरेश सब्बरवाल, राजपाल ढाका, योगिता शर्मा आदि की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही। ट्रस्ट की दिल्ली कार्यक्रम-प्रभारी उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ द्वारा प्रस्तुत धन्यवाद-ज्ञापन के उपरांत यह ऐतिहासिक संगोष्ठी संपन्न हुई।
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