प्राइवेट स्कूलों के लिए बेहतर शिक्षा, लूट का धंधा, सरकार ताली बजा रही है
बस चले तो विद्यार्थियों के नाम का टेंडर शुरू कर दें..
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
सबसे जरूरी कदम। शिक्षक को ईश्वर से बड़ा सम्मान देने की मानसिकता को जितनी जल्दी हो सके खत्म कर डालिए। यहीं सोच शिक्षा के पेशेवर पेशे की आड़ में चल रही लूट खसोट के धंधे पर पर्दा डाल देती हैं। जो बेहतर शिक्षक है वे ना मीडिया में सुर्खियां बटोरते हैं ओर ना हीं यह दावा करते नजर आते हैँ कि हम बेहतर है। उनका सम्मान हमेशा समाज में सदियों तक सुगंध की तरह महकता रहता है। यह सारा खेल ही बाजार का है जिसकी चपेट में हम सभी आ चुके हैं। इससे निकलना आसान नहीं है लेकिन सोचना- मंथन करना शुरू करना ही बेहतर बदलाव की शुरूआत है।
अप्रैल महीना प्राइवेट स्कूलों के लिए दीवाली जैसा उत्सव होता है जिसमें जल रहे दीए को खुराक माता- पिता के खून पसीने की मेहनत से निकलने वाले पसीने से मिलती है। यहां सवाल उठता है कि जिस तरीके से स्कूल संचालक विद्यार्थियों के माता-पिता से बेहतर सुविधा व पढ़ाई के नाम पर तरह तरह की वसूली करते हैं क्या वे इस राशि को ईमानदारी से शिक्षा निदेशालय के निर्धारित किए गए फार्म-6 में उल्लेख करते हैं। क्या वह उस राशि को आयकर विभाग के तय टैक्स के मापदंड को पूरा करते हुए अपनी कमाई को खुली किताब की तरह अभिभावकों के सामने रखते हैं। फार्म-6 को सार्वजनिक क्यों नहीं किया जाता जिसमें विद्यार्थियों से ली जाने वाली फीस का सच सामने आ जाए। इसी तरह शिक्षकों को दिए जाने वाले वेतनमान की असलियत भी सामने आ जाए। दरअसल यह फार्म- 6 शिक्षा विभाग में चपरासी से लेकर उच्च अधिकारियों की कमाई का एटीएम है जिसकी आड़ लेकर वे प्राइवेट स्कूलों से समय समय पर वसूली करते रहे हैं। अगर यह दावा गलत है तो इस फार्म के तहत किसी स्कूल की ऑडिट कर इसकी रिपोर्ट तैयार क्यों नहीं की गईं। अभिभावक यह ना भूले की दाखिला के नाम पर लाखों रुपए अलग अलग माध्यमों पर पानी की तरह बहाया जाता है। वह राशि उन्हीं से ही वसूली जाती है। एक के बाद खड़ी होती जा रही शानदार इमारतें इस बात की गवाह है कि बेहतर शिक्षा के नाम पर असल में भला किसका हुआ है। प्राइवेट स्कूल खुब कमाई करें कोई दिक्कत नहीं। बस नैतिकता मूल्य- ईमानदारी का पाठ पढ़ाना छोड़ दे। जितना वे सुबह शाम बच्चों को प्रार्थना सभा व कक्षाओं में ईमानदारी से जीवन को आगे बढ़ने का पाठ पढ़ाते हैं दरअसल सबसे ज्यादा उन्हें इस पर अमल करने की जरूरत है बच्चों का अपने स्कूल में दाखिला कराने के लिए किस कदर शिक्षकों को अभिभावकों के सामने अलग अलग तरह का खुबसूरत झूठ परोसा जाता है। इसका खुलासा करने की जरूरत नहीं है। नौबत यहां तक आ चुकी है कि स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति व वेतनमान उसकी योग्यता की बजाय कितने बच्चे स्कूल में दाखिला कराने की क्षमता पर होती है। शिक्षकों की टोली बनाकर उन्हें डोर टू डोर दाखिला कराने के लिए मजबूर किया जा रहा है। कुछ स्कूल तो राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली परीक्षा में सफलता के नाम पर इतनी झूठी वाही वाही लूटते हैं। जिन बच्चों के फोटो पंपलेट, बैनर एवं विज्ञापनों में प्रकाशित हुए उसमें आधे से ज्यादा डिप्रेशन में पहुंच जाते हैं। वजह वे सफलता का पहला चरण पूरा करते हैं जिसे फाइनल रजल्ट की तरह दिखा दिया जाता है। मिल्ट्री- सैनिक एवं एनडीए की परीक्षाओं में विज्ञापनों के नाम पर खुलेआम यह खेल होता है। यह सिलसिला ऐसे ही लगातार जारी रहेगा। वजह माता- पिता अपने बच्चों के भविष्य में अपना गुजरा हुआ कल देखता है। इसलिए वह किसी भी हद तक समझौता करने के लिए तैयार है। प्राइवेट स्कूल एवं कोचिंग संस्थाओं के लिए माता-पिता की यह मजबूरी शानदार बाजार है। शिक्षा विभाग के अधिकारी एवं नेता इसलिए चुप है कि उन्हें जो चाहिए वह मिल रहा है। जहां तक सरकार का सवाल है वह परीक्षा परिणाम का इंतजार करती है ताकि समारोह में ताली बजाकर वाही वाही लूट सके। वह भूल जाती है कि परीक्षा में लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद असफल होने की स्थिति में कितने विद्यार्थी डिप्रेशन में जाकर आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ऐसा करने वालों में सबसे ज्यादा प्राइवेट स्कूल एवं कोचिंग सेंटर एवं इंस्टीटयूट से संबंध रखते हैं। राजस्थान इसे सबसे ज्यादा भुगत रहा है