राष्ट्रवाद कहाँ है? वह अपने लोगों को अस्पताल में वेंटिलेटर नहीं दिला पा रहा है। एंबुलेंस नहीं दिला पा रहा है। श्मशान में लकड़ी का रेट बढ़ गया है। लोग अपनों को लेकर चीख रहे हैं। चिल्ला रहे हैं। हिन्दुस्तान का यह संकट वैज्ञानिक रास्तों को छोड़ जनता को मूर्ख बनाने और समझने के अहंकार का संकट है। जनता क़ीमत चुका रही है। इस हाल में आप ख़ुद को विश्व गुरु कहलाने का दंभ भरते हैं? शर्म नहीं आती है ?
रणघोष खास. रवीश कुमार की कलम से
भारत को विश्व गुरु बनाने के नाम पर भोली जनता को ठगने वालों ने उस जनता के साथ बहुत बेरहमी की है। विश्व गुरु भारत आज मणिकर्णिका घाट में बदल गया है। जिसकी पहचान बिना ऑक्सीजन से मरे लाशों से हो रही है। अख़बार लिख रहे होंगे कि दुनिया में भारत की तारीफ़ हो रही है। आम और ख़ास हर तरह के लोगों को अस्पताल के बाहर और भीतर तड़पता छोड़ दिया है। शनिवार को लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार विनय श्रीवास्तव ट्विटर पर मदद मांगते रहे। बताते रहे कि ऑक्सीजन लेवल कम होता जा रहा है। कोई मदद नहीं पहुँची और विनय श्रीवास्तव की मौत हो गई। धर्म की राजनीति के नाम पर लंपटों की बारात सजाने वाले इस देश के पास एक साल का मौक़ा था। इस दौरान किसी भी आपात स्थिति के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था को तैयार किया जा सकता था। लेकिन नहीं किया गया। इस बार की हालत देखकर लगता है कि भारत सरकार ने कोविड की लहरों को लेकर कोई आपात योजना नहीं बनाई है। दरअसल, अहंकार हो गया है और यह वास्तविक भी है कि लोग मर जाएँगे फिर भी धर्म के अफीम से बाहर नहीं निकलेंगे और सवाल नहीं करेंगे। लखनऊ अब लाशनऊ बन गया है। दूसरे शहरों का भी यही हाल है। हालत यह है कि बीजेपी से जुड़े लोग भी अपनों के लिए अस्पताल और ऑक्सीजन नहीं दिलवा पाए। पिछला हफ्ता किसी के लिए अस्पताल तो किसी के लिए ऑक्सीजन तो किसी के लिए इंजेक्शन के लिए याद नहीं कितनों को कितनी बार फोन किया होगा। थका देने वाला अनुभव था। सफलता की दर शून्य। मुझे पता नहीं था कि संक्रमण मेरे भीतर भी लुका-छिपी का खेल रच रहा है। RT-PCR में निगेटिव आया। सीटी में कुछ नहीं निकला। कई प्रकार के ख़ून जांच से भी कुछ नहीं निकला लेकिन मेरे डॉक्टर निश्चित थे कि मुझे कोविड है। कल रात सुगंध की क्षमता चली गई है। मैं अभी ठीक हूँ। यह केवल सूचना के लिए है। कई लोग हर दिन मैसेज कर रहे हैं कि मैं कहाँ हूँ। क्यों नहीं प्राइम टाइम कर रहा है। तो बताना ठीक समझता हूँ। एक गुज़ारिश है कि मुझे संदेश न भेजें। उससे और तकलीफ बढ़ जाती है। आपका प्यार मेरी ताक़त है। मुझे यह प्यार एक ऐसे दौर में मिला है जब कई फ्रॉड लोग धर्म की आड़ में महान बन गए और लोगों ने सोचना और देखना बंद कर दिया। उस दौर में आपने मुझे सुनने और देखने के लिए अपनी आँखें खोले रखी। इसलिए मेरी कहानी उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी आम जनता की। जिसके साथ देशभक्ति के नाम पर दुकान चलाने वालों ने गद्दारी की और बिना ऑक्सीजन के उसे मरता छोड़ दिया। राष्ट्रवाद कहाँ है? वह अपने लोगों को अस्पताल में वेंटिलेटर नहीं दिला पा रहा है। एंबुलेंस नहीं दिला पा रहा है। श्मशान में लकड़ी का रेट बढ़ गया है। लोग अपनों को लेकर चीख रहे हैं। चिल्ला रहे हैं। हिन्दुस्तान का यह संकट वैज्ञानिक रास्तों को छोड़ जनता को मूर्ख बनाने और समझने के अहंकार का संकट है। जनता क़ीमत चुका रही है। इस हाल में आप ख़ुद को विश्व गुरु कहलाने का दंभ भरते हैं? शर्म नहीं आती है? इस बीच आई टी सेल सक्रिय हो गया है। गुजरात में लोग मर रहे हैं उस पर वह शर्मिंदा नहीं है। लेकिन मैसेज घुमाया जा रहा है कि महाराष्ट्र में भी तो लोग मर रहे हैं। क्या वहाँ लाशों की रिकार्डिंग करते वक़्त फोन की बैटरी ख़त्म हो जाती है? ये वाला मैसेज आप तक पहुँचा होगा। आपकी मर्ज़ी। आप खुशी खुशी इसकी चपेट में रहें। नोटबंदी के समय कैसा भयावह मंज़र था, जब आम लोगों के गुल्लक तक से पैसे उड़ गए, उसी तरह का दौर इस वक़्त गुज़र रहा है। आम लोगों की साँसें उखड़ जा रही हैं। फ्रॉड नेता ऑक्सीजन का इंतज़ाम नहीं कर सके और लोग मर गए। वो कल फिर महान बन जाएँगे। धर्म का मुद्दा कम तो है नहीं। कहीं कोई मसजिद, कहीं कोई मंदिर का मसला आ जाएगा और वे आपके रक्षक बन कर आ जाएंगे। लेकिन जब ऑक्सीजन देकर रक्षा करने की बात आएगी तो भाग जाएंगे। कोई व्यवस्थित लोकतंत्र होता तो आपराधिक मुक़दमा चलाया जाता सरकार पर। पर ख़ैर। आप वाट्सऐप यूनिवर्सिटी में वो जो मुगली घुट्टी पिला रहे हैं पीते रहिए। इस दौर में आप हिम्मत मत हारिए लेकिन झूठी उम्मीद भी मत रखिए। आपके साथ क्रूरता हुई है। आपको पहले धर्म का नशा दिया गया फिर आपकी पीठ में छुरा मारा गया। फ्रॉड लोगों का गिरोह दलील दे रहा है कि आधी आबादी बीमार पड़ जाए तो कोई भी अस्पताल फेल हो जाए। मूर्खों ने यह नहीं बताया कि तुमने कितने अस्पताल बनाए हैं, कितने वेंटिलेटर लगाए हैं, तुमने कितने टेस्टिंग सेंटर बनाए हैं? पत्रकार पूछते रहे कि पीएम केयर फंड का पैसा कहाँ गया, मगर अहंकार सातवें आसमान पर है। जवाब देने की ज़रूरत भी नहीं। जाने दीजिए। इस वक़्त सारा प्रयास लाशों को हेडलाइन से हटाने का हो रहा है। गोदी मीडिया सक्रिय हो जाएगा। एक दो दिन इंतज़ार कीजिए। जल्दी ख़बरें आ जाएँगी कि स्थिति नियंत्रण में आ गई है। फिर एक रिपोर्ट आएगी कि कैसे प्रधानमंत्री ने रात-रात जागकर सब मैनेज किया। यहाँ पाइप लाइन डलवाई। वहाँ ऑक्सीजन भिजवायी। इस तरह श्मशान में अपनों को जला कर लौटे लोग अलग-थलग कर दिए जाएँगे। फिर से आप महान शासक के विश्व गुरु भारत में रहने लगेंगे। एक काम यह भी हो सकता है कि रामदेव की दवाई बेचने वाले डॉ. हर्षवर्धन को बर्खास्त कर दिया जाए ताकि मोदी जी महान हो जाएँ। बस ऐसी दो चार हेडलाइन की ज़रूरत है। हेडलाइन में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। ऑक्सीज़न भले कुछ कम हो जाए।