पंजाबी गायक और अभिनेता दिलजीत दोसांझ तबसे सुर्खियों में हैं जबसे उनके खिलाफ आयकर जांच की खबर उड़ी है। दोसांझ का दोष बस इतना ही है कि उन्होंने न सिर्फ किसान आंदोलन का समर्थन किया था बल्कि एक बार वे दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर भी दिखाई दिए थे और कंगना रनौत से भी उलझे थे।पंजाबी के कईं दूसरे कलाकार इस आंदोलन में बहुत ज्यादा सक्रिय हैं और कुछ तो इस आंदोलन का चेहरा भी बन चुके हैं। दिलजीत दोसांझ इसलिए नजर आ जाते हैं कि वे हिंदी की कुछ फिल्मों में काम कर चुके हैं और हिंदी क्षेत्र में उन्हें पहचाना जाने लगा है। वे सुर्खियों में भी इसीलिए आए कि किसान आंदोलन कवर कर रहे दिल्ली के पत्रकार उन्हीं को पहचानते थे इसलिए उन्हें खासा कवरेज भी मिल गया. इसके अलावा कंगना से ट्विटर पर उनकी झड़प भी काफी चर्चा में आ गई। इस पूरे दौर में अगर किसान आंदोलन का कोई कलाकार चेहरा बन सके तो वे कंवर ग्रेवाल और हर्फ चीमा जैसे लोग हैं. ये कलाकार इस पूरे दौर में सिंघू बॉर्डर पर सक्रिय दिखाई दिए। कंवर ग्रेवाल तो बहुत सारी सभाओं में किसान नेताओं के साथ मंच पर भी नजर आए. निसंदेह कंवर ग्रेवाल इस समय पंजाबी लोक संगीत का सबसे लोकप्रिय नाम हैं, जिनके कार्यक्रमों के टिकट न सिर्फ हाथोंहाथ बिकते हैं बल्कि बाद में ब्लैक भी होते हैं। किसान आंदोलन में कंवर ग्रेवाल की यह मौजूदगी ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इस दौरान हर्फ चीमा के साथ उनके चार एलबम भी आ गए हैं– पातशाह, ऐलान, पेचा और इतिहास. ये चारों किसान आंदोलन पर हैं। पातशाह कहता है हमने सड़कों को ही अपना किला बना लिया है. ऐलान के बोल हैं– तैनू दिल्लीए एकॅठ परेशान करूंगा. जबकि पेचा कहता है– वेला आ गया जाग किसाना, पेचा पय गया सेंटर नाल। एक चैनल पर हर्फ चीमा पिछले दिनों यह कहते सुने गए कि ‘अब लगता है कि हम वाकई लोक कलाकार हो गए हैं। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ हर्फ चीमा और कंवर ग्रेवाल ही किसान आंदोलन को लेकर सक्रिय हैं. पंजाबी कलाकारों के किसान आंदोलन को समर्थन का सही अंदाज लगाना हो तो हमें सोशल मीडिया ऐप टेलीग्राम पर शुरू हुए चैनल ‘किसान आंदोलन–म्यूज़िक‘ को देखना होगा। यह चैनल तो पहले बन गया था लेकिन 27 नवंबर से इसमें एलबम और उनके गीत डालने शुरू किए गए. चार जनवरी तक इसमें 223 एलबम डाले जा चुके हैं और सभी पूरी तरह किसान आंदोलन पर ही हैं। 45 दिन पुराने आंदोलन के हिसाब से शायद यह एक वैल्यूड रिकार्ड होगा। इसे देखकर लगता है कि पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री में इन दिनों शायद किसान आंदोलन के अलावा किसी और विषय पर कुछ नहीं हो रहा है। इनमें से कोई भी एलबम वैसा अनगढ़ नहीं है जैसे कि आमतौर पर आंदोलन करने वाले लोगों के गीत संगीत होते हैं. ये सभी पेशेवर गायकों के पूरी तरह प्रोफेश्नल एलबम हैं. कुछ में पाॅप म्यूजिक है तो कुछ में रैप, लेकिन ज्यादातर पंजाब की परंपरागत लोक शैली के गीत हैं। हालांकि तकरीबन सभी में संगीत का अंदाज बिलकुल नया है. यहां तक कि पंजाब के कुछ डाॅडी जत्थे भी किसान आंदोलन को लेकर सक्रिय हो गए हैं। पंजाब का डाडी संगीत मूल रूप से धार्मिक कथाओं का गायन शैली बखान करने के लिए इस्तेमाल होता है. डाॅडी जत्थे गांव–गांव जाकर अपने गायन और कथाओं से लोगों में जोश भरने का काम करते हैं. अब वे किसान आंदोलन को लेकर लोगों में जोश भर रहे हैं। इन से हर दूसरा एलबम दिल्ली को चेतावनी देता दिखाई देता है, कुछ तो उसे चुनौती भी दे रहे हैं. तकरीबन आधा दर्जन एलबम ऐसे हैं जिनका शीर्षक है– सुण दिल्लीए। कुछ ऐसे हैं जो दिल्ली का घमंड तोड़ना चाहते हैं. कुछ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घमंड की भी बात करते हैं. कुछ उनका मजाक भी बनाते हैं. जिनका मजाक बनाया गया उनमें कंगना रनौत भी हैं. जबकि बहुत सारे सिर्फ अपने हक की बात कर रहे हैं। पंजाबी की ‘बबीहा बोले‘ शैली का एक गीत ‘बबीहा मोदी दा‘ भी रिलीज़ हुआ है. गुरमीत सिंह लांडरा का डाडी जत्था कहता है– दिल्ली अब तुम्हें पता लगा गया होगा कि किसान किसे कहा जाता है। पंजाबी संगीत उद्योग में एक कहावत है– आज जो पंजाब सुन रहा है, कल उसे पूरा देश सुनेगा. क्या इस बार भी यही होगा? क्योंकि इस आंदोलन ने अब देश को बैचेन कर दिया है।