असम की जमीन पर पहुंचा रणघोष

जीरो ग्राउंड रिपोर्ट से जानिए इस विधानसभा चुनाव की हकीकत


असम में भाजपा की वापसी देश में राजनीति सिलेबस को बदलने का काम करेगी


Pardeep Narain
प्रदीप नारायण

रणघोष खास. प्रदीप नारायण


 देश के इतिहास में पहली बार राजनीति अलग अलग भाषा- संस्कृति- संस्कार और खान- पान की पहचान को अपनी मिजाज से तय करने जा रही है। असम और पश्चिम बंगाल में होने जा रहे विधानसभा चुनाव डंके की चोट पर इस बात की गवाही देंगे। रणघोष ने असम विधानसभा चुनाव की जो ग्रांउड रिपोर्ट तैयार की है। उससे साफ नजर आ रहा है कि राजनीति दलों की जीत और हार अब बूथ मैनेजमेंट के रास्ते अपना सफर तय करेगी। इसके अलावा कोई शार्ट कट नहीं है। इसलिए हरियाणा की दबंग और लठमार बोली में नहाए भाजपा के 22 संगठन के पदाधिकारी, सांसद एवं विधायक पिछले 23 रोज से हर उस गांव की दहलीज को छू रहे हैं जो उनकी जीवन शैली से कभी जुड़ी नहीं थी। फर्राटेदार असमिया बोली के बीच निकलने वाली टूटी फूटी हिंदी के सहारे हरियाणा के भाजपाई अपनी असमिया टीम के साथ सत्ता वापसी की जिस रणनीति पर काम कर रहे हैं। अगर उसमें सफलता मिलती है तो समझ लिजिए देश के शिक्षण संस्थानों में पढ़ाए जाने वाले राजनीति शास्त्र के सिलेबस को बदलने का समय आ चुका है।

चार दिन असम में चाय की चुस्कियों के साथ हमने भाजपा के उस राजनीति गणित को जानने और समझने का प्रयास किया जिसे वह अपनी जीत का सबसे बड़ा फार्मूला मानकर देश के हर कोने में दस्तक देने के इरादे को आगे बढ़ा रही है। हम मंगल दोई लोकसभा सीट के उन क्षेत्रों में पहुंचे जिसकी गिनती पिछड़े क्षेत्रों में होती है। भाजपा हाईकमान ने  हरियाणा हरको बैंक के चेयरमैन अरविंद यादव को इस लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी बनाकर भेजा है। दिलीप सैकिया यहां से भाजपा सांसद है। इस सीट के अंतर्गत कमालपुर, रंगिआ, नलबारी, पानेरी, कलैगाओं, सिपाझार, दलगाओं, मजबत, मंगलदोई और उदलगुड़ी विधानसभा आती हैं। मंगलदोई और उदलगुड़ी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। पीएम नरेंद्र मोदी 24 मार्च को इस संसदीय क्षेत्र में रैली कर रहे हैं। अरविंद यादव अभी तक पीएम मोदी की छह चुनावी रैली की कमान संभाल चुके हैं। 2013 में पीएम उम्मीदवार के तोर पर नरेंद्र मोदी की पहली चुनावी रैली रेवाड़ी में हुई थी जिसकी रणनीति का दायित्य भी अरविंद यादव को मिला था। इसके अलावा हरियाणा के रोहतक, करनाल, सोनीपत के अलावा गुजरात में अहमदाबाद, पटना संसदीय क्षेत्र में पीएम मोदी की जनसभाओं की कमान भी संभाल चुके हैं। इसमें कोई दो राय नहीं हाईकमान अरविंद की कुशल राजनीति को बखूबी समझती है। इसलिए वे असम की चार लोकसभा सीटों के कार्डिनेटर भी है। पीएम मोदी का दौरा इस संसदीय क्षेत्र की कितनी सीटों पर  कितना असर डालता है। यह चुनाव परिणाम से साफ होगा। इतना जरूर है कि असम चुनाव में भाजपा वापसी करती है तो हरियाणा से आए इन भाजपा नेताओं की राजनीति का कद भी मजबूत होगा।  

 

हरियाणा से भाजपा के 22 नेताओं को मिली हुई विशेष जिम्मेदारी

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मुख्यमंत्री मनोहरलाल एवं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने जिस टीम को एक मार्च से असम के लिए रवाना किया हुआ है। उसमें करनाल सांसद संजय भाटिया, कुरुक्षेत्र के सांसद नायाब सैनी, हरको बैंक के चेयरमैन अरविंद यादव] पूर्व मंत्री मनीष ग्रोवर  एवं चेयरमैन धूमन सिंह किरमिच को असम की चार लोकसभा सीटों का प्रभारी बनाया गया है। साथ ही पूर्व चेयरमैन जीएल शर्मा, यूथ आयोग हरियाणा के चेयरमैन मुकेश गौड, युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष मनीष यादव, पूर्व प्रदेश सचिव मुकेश पहलवान, किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष समय सिंह भाटी, पिछड़ा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष मदन चौहान, प्रदेश प्रवक्ता डॉ. संजय शर्मा, पूर्व मीडिया सलाहकार राजीव जैन, जवाहर सैनी, ललित बतरा, पूर्व विधायक पवन सैनी, अनुसूचित मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष रामअवतार वाल्मिकी, पूर्व मंत्री विपुल गोयल, पूर्व विधायक सुखविंद्र श्योराण, विधानसभा प्रत्याशी सोहनपाल छौक्कर एवं भाजपा के सह प्रदेश प्रवक्ता सत्यव्रत शास्त्री, मदन चौहान, सत्यवान शेराविधानसभा क्षेत्रों के प्रभारी बनाए गए हैं। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला पीएम नरेंद्र मोदी की रैली में विशेष जिम्मेदारी की भूमिका में रहेंगे। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर असम विधानसभा चुनाव के प्रभारी है।

भाजपा की रणनीति को ऐसे समझिए

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मुकाबला असम की अस्मिता बनाम धर्मनिरपेक्ष राजनीति है। भाजपा ने असम की अस्मिता के साथ गैरमुस्लिम बिरादरी की अस्मिता को जोड़ कर नया समीकरण बनाया है। इसके उलट विपक्षी महागठबंधन की पूरी कोशिश गैरराजग वोट को बिखरने से रोकने पर है। महागठबंधन के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर मुस्लिम वोट नहीं बंटे तो राज्य से राजग की सत्ता से विदाई की पटकथा लिखी जा सकती है।

बिखराव का भाजपा को मिला है लाभ

बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एजीपी और बीपीएफ के साथ गठबंधन बना कर कांग्रेस की डेढ़ दशक पुरानी सत्ता को खत्म कर दिया था। मुस्लिम राजनीति के पैरोकार एआईयूडीएफ के उदय के कारण इस बिरादरी के मतों में हुए बंटवारे ने पूर्वोत्तर की राजनीति में नई पटकथा लिखी थी। इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी विपक्षी मतों में बंटवारे का सीधा लाभ भाजपा को मिला और पार्टी 14 में से नौ सीटें जीतने में कामयाब रही।

मुस्लिम बिखराव भाजपा की जीत तय करेगा 

राज्य में मुस्लिम मतदाताओं की हिस्सेदारी लगभग 35 फीसदी है। नौ जिले मुस्लिम बहुल हैं। राज्य की पचास से अधिक ऐसी सीटें हैं जहां मुसलमानों का एकमुश्त वोट किसी भी दल के लिए सत्ता का दरवाजा खोल देते हैं। हालांकि बीते लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एआईयूडीएफ के कारण मुस्लिम मतों में बंटवारा हुआ और इसके साथ ही भाजपा ने पूर्वोत्तर के सबसे अहम राज्य पर कब्जा जमाया।

महागठबंधन क्यों अहम?

राजनीति में हमेशा दो और दो चार नहीं होते। बीते कुछ सालों में ध्रुवीकरण के समांतर दूसरे वर्ग के ध्रुवीकरण ने सियासत में बड़ा बदलाव किया है। हालांकि, आंकड़ों के लिहाज से देखें तो कांग्रेस की अगुआई में बना महागठबंधन भाजपा के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। मसलन जिन चार दलों के बीच महागठबंधन हुआ है उनका वोट शेयर बीते चुनाव में 49 फीसदी था। जबकि राजग को 41.5 फीसदी वोट मिले थे। बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-एआईयूडीएफ का संयुक्त वोट राजग के 36 फीसदी से सात फीसदी अधिक था।

भाजपा की चुनौती

विपक्ष का महागठबंधन

पार्टी में तीन अलग-अलग ताकतवर गुट के बीच वर्चस्व की लड़ाई

पांच साल की सत्ता के कारण सत्ता विरोधी रुझान पाटने की चुनौती

 

ताकत

पीएम की लोकप्रियता

असम अस्मिता का सवाल

राज्य में कराए गए विकास कार्य

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