उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत, योगी की है या मोदी की?

रणघोष खास. सरोज सिंह


37 साल बाद उत्तर प्रदेश में ऐसा हो रहा है कि लगातार दूसरी बार बीजेपी सत्ता में आती दिख रही है. यूपी का ये चुनाव भले ही बीजेपी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर लड़ा हो, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने भी चुनाव प्रचार में कमी नहीं की। एक तरफ़ योगी आदित्यनाथ ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद उत्तर प्रदेश के सभी ज़िलों का दौरा किया और चुनाव के दौरान 200 से ज़्यादा रैलियां की, वहीं पीएम मोदी ने 27 चुनावी रैलियों को संबोधित किया.बीजेपी ने जितने ज़ोर-शोर से सीएम योगी के ‘बुलडोज़र बाबा’ की छवि को भुनाने की कोशिश की उतना ही केंद्र के फ्री राशन की स्कीम और नमक को भी भुनाया. पाँच साल से सत्ता में होने के बावजूद, बढ़े हुए वोट शेयर के साथ बीजेपी अगर सत्ता में वापसी करती है, तो सेहरा किसके सिर बांधा जाएगा – अब चर्चा इसी बात की हो रही है.

मोदी और मज़बूत हुए या योगी

ऐसे में सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी की जीत किसकी है – मोदी की या योगी की? इसका जवाब वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी एक लाइन में कुछ इस तरह से देती हैं.”इन नतीजों से पीएम मोदी ने अपने ‘ब्रांड मोदी’ की मज़बूती को बरकरार रखा है वहीं योगी ने अपनी ब्रांड इमेज और मज़बूत की है.”अपने इस मत के पीछे वो कई वजहें भी वो गिनाती है.नीरजा कहती हैं, “मोदी ने अंत समय में जा कर पूर्वांचल को संभाला और एक स्पिन दिया. वो हर चुनाव में ऐसा करते हैं. लेकिन इस चुनाव के सबसे बड़े सितारे योगी ही हैं. वो देश के सबसे बड़े प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो लगातार दूसरी बार जीतकर आए हैं. पिछली बार योगी को बाहर से लाकर सीएम की कुर्सी पर बिठाया गया था लेकिन ये चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया. योगी की मोदी से अलग एक अपनी फैन फॉलोइंग है. इस जीत से योगी ने ‘मोदी के बाद वाली बीजेपी’ में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी और पक्की कर ली है. हो सकता है 2024 में योगी प्रधानमंत्री पद के दावेदार ना हो, लेकिन आगे कभी भी हो सकते हैं.”यही वजह है कि कई जानकार इस चुनाव में मोदी से ज़्यादा योगी की साख दांव पर होने की बात कह रहे थे.

,आदित्यनाथ योगी का गोरखपुर में सबसे बड़ा इम्तहान

जब बीजेपी यूपी में जीत गई है तो योगी के कामकाज का ये रिपोर्ट कार्ड माना जा रहा है जिसमें वो अच्छे नंबरों से पास हो गए हैं.’द हिंदू’ अख़बार से जुड़ीं वरिष्ठ पत्रकार निस्तुला हेब्बार इस जीत का सेहरा मोदी-योगी की जुगलबंदी के सिर बांधती है.योगी के बारे में वो कहती हैं, “बीजेपी के टॉप दो की जोड़ी में अब तीसरे की गुंजाइश बनती दिख रही है. इतने बड़े प्रदेश में लगातार दूसरी बार जीत बहुत बड़ी बात है. 2017 की जीत मोदी की जीत थी. लेकिन 2022 की जीत में योगी भी शामिल है.”लेकिन वो साथ में ये भी कहती है कि 2022 की जीत में केंद्र की स्कीम को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. तीन दिन वाराणसी में बैठ कर पीएम मोदी ने जो किया, वो भी अहम है. पीएम मोदी अपर कास्ट से नहीं आते, मंडल की विपक्ष की राजनीति में इसका भी अहम रोल रहा. इतना ही नहीं पाँच राज्यों के चुनाव में बीजेपी अगर 4 शून्य से आगे है तो इसका श्रेय पीएम मोदी को जाता है.

हिंदू-मुसलमान और मंदिर एजेंडा

क़ानून व्यवस्था की जब बात होती है तो 2013 के मुज़्ज़फ़रनगर दंगे की याद ज़रूर आती है. कई जानकार मानते हैं कि बीजेपी को दंगों की वजह से ध्रुवीकरण का फायदा 2014 और 2017 में मिला. लेकिन 2022 के चुनाव में ध्रुवीकरण का कोई बड़ा मुद्दा नहीं रहा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ’80:20 का चुनाव’ इसे ज़रूर करार दिया, जिसे अखिलेश ने मुसलमानों के लिए दिया गया बयान बताया. लेकिन बीजेपी हमेशा सबका साथ सबका विकास की बात करती रही.यहां एक और बात निस्तुला जोड़ती है. वो कहती हैं, “बीजेपी ने सीधे-सीधे हिंदू-मुसलमान नहीं किया, लेकिन कई जगहों पर उनका ‘कोडवर्ड’ काम किया.

जैसे जब बीजेपी ‘सुरक्षा’ की बात करती है, तो एक संदेश अपने आप में ‘माफिया’ ‘डॉन’ के बारे में जाता है और कुछ ख़ास चेहरे आँखों के सामने आते हैं. उसी तरह से जब अयोध्या और काशी की बात होती है, तो अपने आप हिंदू और हिंदुत्व की बात जनता को समझ आती है.इसी बात की नीरजा अलग तरीके से पेश करती हैं. वो कहती हैं, “योगी एक मज़बूत नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं. हिंदू रक्षक के रूप में अपनी छवि को और मज़बूत किया है जो मुसलमानों पर नकेल कस सकता है. इस बारे में खुल कर बात नहीं की और ना ही प्रचार किया गया, लेकिन दबी ज़ुबान से ज़रूर की गई.”जिस वेश-भूषा में योगी हमेशा नज़र आते हैं, मंदिर बनने का रास्ता साफ़ होने के बाद जितनी बार योगी आदित्यनाथ वहाँ गए, इन सबने उनकी हिंदू नेता की छवि को और मज़बूती प्रदान की.इसका असर ये हुआ कि चुनाव का अंत आते-आते अखिलेश को भी मंदिर दर्शन के लिए बीजेपी ने मजबूर कर ही दिया. भविष्य में ये दोनों नेता (मोदी और योगी) आपस में तालमेल कैसे बैठा पाते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा.

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