‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ करने की पैनल ने की सिफारिश
इतिहासकार और आरएसएस विचारक पैनल के अध्यक्ष प्रोफेसर सी.आई. आइज़ैक (सेवानिवृत्त) का कहना है कि समिति ने सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम में ‘हिंदू पराजयों’ पर ध्यान कम करने का भी सुझाव दिया है.
रणघोष खास. सौरव रॉय बर्मन. दिप्रिंट से
एनसीईआरटी द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए गठित एक उच्च-स्तरीय समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर सी.आई. आईज़ैक (सेवानिवृत्त) ने सिफारिश की है कि प्राथमिक से लेकर हाई-स्कूल स्तर तक स्कूली पाठ्यपुस्तकों में देश का नाम इंडिया नहीं, बल्कि भारत होना चाहिए.आईज़ैक ने दिप्रिंट को बताया कि समिति ने पाठ्यक्रम में “हिंदू पराजयों” पर ध्यान कम करने का भी सुझाव दिया है.आइज़ैक ने कहा कि सात सदस्यीय समिति की “सर्वसम्मति” से की गई सिफारिश वाले सामाजिक विज्ञान के फाइनल पोज़ीशन पेपर में, जो कि एनसीईआरटी पाठ्य पुस्तकों की नींव रखने वाला एक प्रमुख दस्तावेज है, उसमें इसका ज़िक्र किया गया है./यह सिफ़ारिश उस बहस में एक नया आयाम जोड़ती है जो केंद्र सरकार द्वारा 5 सितंबर को राष्ट्रपति द्वारा आयोजित जी-20 रात्रिभोज के लिए “प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया” के बजाय “प्रेसीडेंट ऑफ भारत” के नाम पर निमंत्रण भेजने के बाद शुरू हुई थी.उससे चार दिन पहले गुवाहाटी में बोलते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि लोगों को इंडिया नहीं, बल्कि भारत नाम का इस्तेमाल करना चाहिए.संविधान के अनुच्छेद 1(1) में कहा गया है, “इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा”. इस साल जनवरी में पद्मश्री से सम्मानित किए गए आईज़ैक ने कहा कि समिति ने विशेष रूप से सिफारिश की है कि स्कूली छात्रों को पाठ्य पुस्तकों में इंडिया के बजाय भारत नाम पढ़ाया जाए.उन्होंने कहा, “भारत नाम का उल्लेख विष्णु पुराण में मिलता है. कालिदास ने भारत नाम का प्रयोग किया था. यह एक सदियों पुराना नाम है. इंडिया नाम बहुत बाद में तुर्कों, अफगानों और यूनानियों के आक्रमण के बाद आया.”आइज़ैक ने कहा, “उन्होंने सिंधु नदी के आधार पर भारत की पहचान की. आक्रमणकारियों को यह सुविधाजनक लगा. मैंने इस बात पर जोर दिया कि 12वीं कक्षा तक की पाठ्य पुस्तकों में केवल भारत नाम का ही उपयोग किया जाए. अन्य सदस्यों ने इसे स्वीकार कर लिया और यह समिति का सर्वसम्मत विचार बन गया.”
आइज़ैक ने कहा, एक और पहलू जिस पर समिति ने प्रकाश डाला, वह यह है कि प्रचलित पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तकें “लड़ाइयों में हिंदू हार” पर बहुत अधिक जोर देती हैं.आइज़ैक ने कहा, “इसके विपरीत, हिंदू जीत का उल्लेख नहीं किया गया है. हमारी पाठ्य पुस्तकें हमारे छात्रों को यह क्यों नहीं सिखाती कि मुहम्मद गोरी को भारतीय आदिवासियों ने उस समय मार डाला था जब वह भारत को लूटने के बाद लौट रहा था? कोलाचेल की लड़ाई (त्रावणकोर साम्राज्य बनाम डच ईस्ट इंडिया कंपनी) हमारी पाठ्य पुस्तकों से क्यों गायब है? आपातकाल की अवधि के बारे में विस्तार से क्यों नहीं पढ़ाया जाता?”
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