ऑपरेशन ब्लू स्टार 6 जून 1984: ऐसी क्या वजह थी कि भारतीय सेना को गोल्डन टेंपल में बुलाने पड़े थे टैंक?

आज गोल्डन टेंपल में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी है. आज से ठीक 39 साल पहले जब चरमपंथियों ने गोल्डन टेंपल यानी स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया था तो इसे खाली कराने की योजना का खाका सेना ने 31 मई 1984 को ही तैयार कर लिया था, लेकिन अंतिम कार्रवाई 5 जून की सुबह ही शुरू की गई थी. इतिहास के पन्ने कहते हैं कि गोल्डन टेंपल परिसर में हथियारों से लैस जरनैल सिंह ने जबरदस्त मोर्चा बंदी कर रखी थी. कोर्ट मार्शल किए गए मेजर जनरल सुभेग सिंह की अगुआई में सिख स्टूडेंट फेडरेशन के लड़ाके परिसर के चारों और तैनात किए गए थे. यहां अहम बात यह है कि सरकार के फरमान के मुताबिक भारतीय सेना को कम से कम नुकसान किए बिना गोल्डन टेंपल में दाखिल होना था. आपको इस खबर में क्रमवार बता रहे हैं कि इसके बावजूद सेना को टैंकों की जरूरत क्यों पड़ी?

2 जून को था गुरु अरजन देव जी का शहीदी दिवस
2 जून 1984 को परिसर में हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़नी शुरू हो गई थी, क्योंकि 3 जून को गुरु अरजन देव का शहीदी दिवस था. पंजाब से आने-जाने वाली रेल गाड़ियों और बसों की आवाजाही पर रोक लगा दी गई थी. दूरसंचार व्यवस्था भी ठप करवा दी गई थी और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर भेज दिया गया था. 3 जून को सेना अमृतसर में पहुंचकर गोल्डन टेंपल परिसर को घेर चुकी थी. 4 जून को सेना ने गोलीबारी शुरू की थी, सेना के अधिकारी अंदाजा लगाना चाहते थे कि सिख लड़ाकों के पास कितना असला था.

सरकार को थी चिंता
हालांकि, सरकार इस बात से भी चिंतित थी कि यदि लड़ाई लंबी चलेगी तो अफवाहों से देश का माहौल और ज्यादा खराब होगा. जरनल बराड़ ने बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में बताया था कि गोल्डन टेंपल के सिर्फ़ उत्तरी और पश्चिमी छोर से ही सैनिकों पर फ़ायरिंग नहीं हो रही थी बल्कि अलगाववादी ज़मीन के नीचे मेन होल से निकल कर मशीन गन से फ़ायर कर अंदर ही गायब हो जा रहे थे. सेना से निकाले गए जनरल सुभेग सिंह ने सिख लड़ाकों को घुटने के आसपास फायर करने की ट्रेनिंग दी थी क्योंकि उनका अंदाज़ा था कि भारतीय सैनिक रेंगते हुए गोल्डन टेंपल परिसर की तरफ बढ़ेंगे. बराड़ ने बताया कि यही कारण था कि ज्यादातर जवानों के पांव में गालियां लगी थीं.

इसलिए बुलाए गए थे टैंक
जनरल बराड़ ने बताया था कि टैंकों को 5 जून को तब बुलाया गया था जब हमने देखा कि हम अकाल तख़्त के नज़दीक तक भी नहीं पहुंच पा रहे हैं. हमें डर था कि सुबह होते ही हज़ारों लोग आ जाएंगे और चारों तरफ से फौज को घेर लेंगे. हालांकि अकाल तख्त में मौजूद लोगों ने हार नहीं मानी तो हुक़्म दिया गया कि टैंक के सेकेंड्री आर्मामेंट से अकाल तख़्त के ऊपर वाले हिस्से पर फ़ायर किया जाए, ताकि ऊपर से गिरने वाले पत्थरों से लोग डर जाएं और बाहर निकल आएं.

इसके बाद भीषण ख़ून-ख़राबा हुआ और सदियों का अकाल तख़्त पूरी तरह तबाह हो गया. स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियां चलीं. कई सदियों में पहली बार वहां से पाठ छह, सात और आठ जून को नहीं हो पाया. ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सिख पुस्तकालय जल गया. भारत सरकार के श्वेत पत्र के अनुसार, 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए. इसी श्वेत पत्र के अनुसार, कुल 493 चरमपंथी मारे गए थे और 86 घायल हुए. इस घटना में 1592 को गिरफ्तार किया गया. लेकिन इन सब आंकड़ों को लेकर अब तक विवाद चल रहा है. सिख संगठनों का कहना है कि हज़ारों श्रद्धालु स्वर्ण मंदिर परिसर में मौजूद थे और मरने वाले निर्दोष लोगों की संख्या भी हजारों में है. हालांकि, भारत सरकार इसका खंडन करती आई है.

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