किसी भी प्रत्याशी के पास कोई एजेंडा नहीं, बस खुद के वजूद को बचाने की लड़ाई
रणघोष अपडेट. सुभाष चौधरी की रिपोर्ट
शहर की नामी शिक्षण संस्था केएलपी कॉलेज के 7 साल बाद होने जा रहे प्रबंधन समिति के चुनाव में उतरे किसी भी प्रत्याशी के पास ऐसा कोई एजेंडा या विजन नहीं है जो यह दावा कर सके कि वे कॉलेज की बेहतरी के लिए आगे आया है। सारी लड़ाई अपने सालों पुराने कायम किए गए वजूद को बचाने और प्रबंधन समिति के किसी पद को हासिल कर अपनी पहचान को कायम करने की है। इसलिए चुनाव में 80 साल से ज्यादा उम्र वाले भी मैदान में हैं तो किसी ने पूरे परिवार की दावेदारी पेश कर दी है। दरअसल केएलपी कॉलेज के इतिहास को देखे तो यह संस्थान शहर के नामी प्रतिष्ठित लोगों की पहचान के तोर पर अपनी हैसियत को आगे बढ़ाता आ रहा है। ऑन लाइन सिस्टम से पहले इस कॉलेज में अपने बच्चों का दाखिला कराने के लिए सैकड़ों अभिभावक प्रबंधन समिति के सदस्यों के यहां हाजिरी लगाते थे। यहां दाखिला कराने का मतलब बहुत बड़ा उपकार या कार्य माना जाता था। लिहाजा शहर में कॉलेज समिति सदस्यों का रूतबा भी अलग ही नजर आता था। कॉलेजियम सिस्टम से पहले यहां चुनाव दो धड़ों के बीच होता था। एक- एक वोट के लिए ऐसे जंग होती थी मानो प्रत्याशियों का वजूद ही इस चुनाव से बनना ओर खत्म होना है। कॉलेज के रूतबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है जब पांच साल पहले सीएम मनोहरलाल के रेवाड़ी दौरे केा लेकर कॉलेज के ऑडिटोरियम को सभा के आयोजन लिए बुक करना था। कॉलेज समिति ने बजाय नि:शुल्क देने के ऑडिटोरियम के लिए निर्धारित राशि जमा कराने की अनिवार्यता तय कर दी। यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर प्रशासन और सरकार पर भी तमाचा था। यहीं से कॉलेज पर ग्रहण लगना शुरू हो गया। उसके बाद कालेज के तौर तरीकों को लेकर दबा हुआ सच सामने आने लगा। आरटीआई से जानकारी जुटाकर उसे प्रशासन के पास भेजी गई। शिकायतों के आधार पर कॉलेज के सभी पुराने रिकार्ड की जांच शुरू हो गईं तो अनियमिताएं उजागर होती चली गईं। इस मामले की जांच कर रहे तत्कालीन एडीसी कैप्टन मनोज ने इस जांच को तेजी से पूरा किया और समिति के सदस्यों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करवा दी। समिति को भंग कर कॉलेज पर प्रशासक नियुक्त कर दिया। प्रशासक बने रिटायर कॉलेज प्राचार्य डॉ. एलएन शर्मा ने जांच को आगे बढ़ाया लेकिन वे खुद अपने तौर तरीकों की वजह से विवाद में आ गए। बताया जा रहा है कि मॉडल टाउन थाना में कॉलेज में करवाए गए निर्माण कार्यों के बिलों का लेखा जोखा जांच के लिए आ गया है। एक धड़ा अंदरखाने इस चुनाव की प्रक्रिया के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। 4 अप्रैल को उन 23 कॉलेजियम सदस्यों के चुनाव होने हैं जिनकी आपस में आम सहमति नहीं बनी। कुल 70 मनोनीत सदस्य मिलकर नई कार्यकारणी का गठन करेंगे। यहां सवाल उठता है कि ऑडिटोरियम नहीं देने पर बदले की कार्रवाई के तहत कॉलेज प्रबंधन समिति के सदस्यों के खिलाफ सुनियोजित योजना के चलते मामला दर्ज किया जाता है तो इसे तर्कसंगत कैसे कहां सकता है। दूसरा अगर जांच में पूरे तथ्यों के साथ अनियमिताएं साबित हो गई है तो जांच कार्रवाई को आगे क्यों नहीं बढ़ाया गया। अगर जांच महज खौफ पैदा करने के लिए थी तो अभी तक कोर्ट के माध्यम से एफआईआर रद्द करने की प्रक्रिया को किस आधार पर नहीं बढ़ाया गया। कॉलेज की नई कार्यकारणी बनने के बाद अगर रिकार्ड एकाएक दुरुस्त हो जाता है और जांच में जिन्हें दोषी माना गया वे निर्दोष होते हैं तो फिर सिस्टम पर भरोसा कैसे कायम रहेगा। इसका मतलब जिसकी लाठी उसकी भैस। प्रभावशाली लोगों के हिसाब से चलो तो ईमानदार नहीं तो बेईमान..। सबसे बड़ी बात जिस फर्म एवं रजिस्ट्रार विभाग के तहत चुनाव प्रक्रिया को पूरा कराया जा रहा है वह लगातार खुद कटघरे में हैं। यहां समय समय पर जारी किए जाने वाले उनके नोटिसों की भाषा को गौर से देखे तो वे आपस में कहीं मेल नहीं खा रहे हैं। कुल मिलाकर केएलपी कॉलेज का यह चुनाव कई छिपे एजेंडों के साथ हो रहा है।