कलम के बूते मैं खिलता हूँ ,कलम के चलते ही मैं जीता हूं, मै पत्रकार हूं
रणघोष खास. प्रदीप नारायण
दीपावली पर्व पर शुभकामनाओं के समुद्र में हम सभी जमकर डुबकी लगाते हैं। इसमें कुछ बूंदें चुराकर अपने पास जरूर रख लिजिए। जब कायनात अपनी बेवफाई पर उतर आए तो इन्हीं बूंदों को पी लिजिए। देखना समुद्र की तरह खुद पर गर्व करते हुए तमाम चुनौतियों को धाराशाही कर देंगे। अपनी खामियों- खुबियों के बारे में खुलकर बताइए। बोलिए मैं खोज हूं ,मैं विचार हूं , मैं अभिव्यक्ति,की पुकार हूँ, मैं सत्य का प्रसार हूं, मैं पत्रकार हूं। किसी सच की, तलाश में या किसी शक के ,आभास में मैं किसी लाचार का विचार हूँ या किसी नेता पर प्रहार हूं मैं पत्रकार हूं। मैं चाहूं तो, राई का पहाड़ बना दूं। या महज़ ,आरोप की सज़ा सुना दूं। मैं चाहूँ तो बिन बात ,की हवा बना दूं, या किसी ,उठती आवाज़ की भ्रूण हत्या करवा दूं, मैं विधि का विधान हूं। हां मैं पत्रकार हूं। कभी संसद पर चली ,उस गोली को, कभी बोर्डर पार की उस बोली को, कभी ताज के उन हमलो को दिखाया मैंने ,निस्पक्षता से, मगर आज भूल अपनी सुहनहरी पत्रकारिता की पीढ़ी मैं खोज रहा हूँ स्वर्ग के रास्ते की सीढ़ी। मुझ पर आरोप है कि, मैं बिक गया हूं, सत्य छोड़ टी.आर.पी की भेंट चढ़ गया हूं। मैं कॉर्पोरेट की कटपुतली बन गया हूं, सवालो के घेरे मे है आज मेरा आधार, मेरी निस्पक्षता है आज बीच मझधार। हां मैं पत्रकार हूं। मैं एक चलता फिरता समाचार हूं। कलम ही हमारी ताकत है, जान पर अनेकों आफत है। फिर भी मैं कभी न डरता हूँ, सर्वदा सच्चाई ही लिखता हूं। हां मैं एक पत्रकार हूँ। आवाज़-हीन की आवाज हूँ, लोकतंत्र का मैं साज हूं, जनता की आलोचनाओं का हर बार बनता मैं शिकार हूं हां, मैं एक पत्रकार हूं। कलम के बूते मैं खिलता हूँ ,कलम के चलते ही मैं जीता हूं। धमकियों को रख किनारे ,बेबाक पत्रकारिता मैं करता हूँ । हां, मैं एक पत्रकार हूं। रोज नए खबर के लिए मैं कड़ी मेहनत करता हूं। कई बार गिरता,कई बार संभलता हूं। कई बार तो मैं भीड़ के गुस्से का शिकार भी बनता हूं। इन सब को कर दरकिनार हर रोज ढांढस बांधे मैं निकलता हूं। हां। मैं एक पत्रकार हूँ ,