कलम कुछ कहती है…. मैट्रो को लेकर जागना मेरा सौभाग्य, आप सोते रहे यह आपका दुर्भाग्य..

 रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण


हमारी जिंदगी में बेहतर बदलाव के लिए जिस 2009 की मैट्रो को दिल्ली- गुरुग्राम- रेवाड़ी- बावल के रास्ते अलवर तक दौड़ते हुए नजर आना चाहिए था। वह 14 साल तक हमारी एक आवाज को सुनने के लिए तरसती रही। हम सोते रहे। वह भी इतनी गहरी निंद्रा में। इतने लंबे समय तक तो कुंभकरण भी नहीं सोया। वह कम से कम भूख लगने पर जाग जाता था। 2024 में आकर जागरूक नागरिकों ने मीडिया में शोर मचाकर जगाया तो कुछ की आंखें खुल गईं। आधे से ज्यादा फिर भी सोते रहे। हाथ मारकर उठाया तो वे बैठ गए। मौका मिलते ही वे फिर सो गए। नतीजा मैट्रो को लेकर जो पूरी तरह से जागृत हो चुके है वह खुद पर गर्व करते हुए इसे अपना सौभाग्य मान रहे है। जो अभी तक सो रहे हैं या सोने का नाटक कर रहे हैं यह उनके जीवन का दुर्भाग्य है। इनकी वजह से समय पर मैट्रो के नहीं आने से अभी तक हजारों लोग सड़क हादसे में अपनी जिंदगी गंवा चुके हैं। जिसमें अधिकतर परिवार इन्हीं लोगों के भी है जो अभी तक सो रहे हैं। मैट्रो नहीं होने से तेजी से फैलता प्रदूषण इनके शरीर को अंदर से सड़ा रहा है। इन्हीं दुर्भाग्यशाली लोगों की वजह से लाखों युवा आर्थिक कमजोरी के कारण दिल्ली में रहकर अपने सपनों को साकार नहीं कर पाए। हजारों बेटिया देश की राजधानी में असुरक्षा की भावना के डर से  बेहतर कैरियर के लिए अपने कदम आगे नहीं बढ़ा पाईं। मैट्रो होती तो वह सरपट 40 मिनट में दिल्ली पहुंच शाम को मुस्कराती हुई अपने घर लौट आती। ना जाने कितनी अनगिनत छोटी छोटी खुशियां जो मैट्रो की वजह से जिंदगी में आने के लिए आतुर थी वह हमारी सोई और उदासीन अवस्था को देख वापस लौट गईं। इसलिए  पिछले दो माह में एक पत्रकार और समाज का नागरिक होने के नाते हम तो जाग गए। अब आपकी बारी है। मैट्रो को लेकर अपने प्रयासों को हम तक पहुंचाइए ताकि हम बता सके  रेवाड़ी जाग उठा है।