कलम कुछ कहती है… सूचनाओं के बिगड़ रहे स्वास्थ्य को ठीक करने अब पीआईबी पहुंच रही है..

IMG-20221214-WA0006[1]रणघोष खास. प्रदीप नारायण

भारत सरकार का नोडल संगठन प्रेस इंफोरमेशन ब्यूरो (पीआईबी ) जिसे हिंदी में पत्र सूचना कार्यालय कहां जाता है। पीआईबी जब पहली बार बड़े महानगरों की सूचनाओं के समुद्र में तैरती हुईं छोटे छोटे शहरों व कस्बों में पहुंची तो उदास बीमार सूचनाएं सावन में बरसते पानी की तरह खुशी के मारे झूमती नजर आईं। लगा कि उन्हें कोई संभालने हाल चाल पूछने आया है। सूचनाएं भी बेटियों की तरह होती है। मायके से विदा होते ही उसे पराया मान लिया जाता है। वह किस हाल में है खुश है उस पर क्या बीत रही है बस पत्रों व मोबाइल के जरिए पता चलता रहता है। इसलिए सूचनाओं का असल दर्द तभी सामने आता हैं जब हम उससे रू-ब-रू होते हैं। कितनी आसानी से सूचनाओं की जिंदगी को हम फिल्मी अंदाज में पर्दे पर दिखाकर आंखें मूंद लेते हैं। जब हकीकत से सामना होता है यहीं खुबसूरत सूचनाएं बदहवास इधर उधर भटकती दौड़ती नजर आती है। देर से ही सही पीआईबी ने “ वार्तालाप ” के बहाने सूचनाओं के पास पहुंचकर उसके सिर पर हाथ रखकर अहसास करा दिया अब दूरियां नहीं रहेगी। जिन सूचनाओं को लाड प्यार से  संतान की तरह पाल पोसकर पीआईबी ने देश के अंतिम छोर पर बसे परिवार के पास भेजा। उसे अब अहसास हो गया कि आंखें मूंदकर अपनी सूचनाओं को किसी के सुपुर्द कर निश्चंत हो जाना भी ठीक नहीं है। सूचनाओं की देखभाल के लिए जिस बड़े शहरों में तैनात मीडिया को पहरेदार समझा था वह भी अब नींद में झटके लेता नजर आ रहा है। ऐसे में सूचनाएं घबराकर अलग अलग रास्तों से अपनी अस्मिता बचाते हुए किसी तरह जब अंतिम छोर पर बसे अपने असली घर में पहुंचती है तब तक देर हो चुकी होती हैं। अधिकतर परिवार उसे अपनाने–पहचानने व सुनने से इंकार कर देते हैं। वह गिड़गिड़ाती है, खुद को बेकसूर बताती अपनी आप बीती सुनाती है लेकिन खास असर नही होता। लिहाजा हताश टूटकर ये सूचनाएं धीरे धीरे खुद को  हमेशा के लिए फाइलों में दफन करना शुरू कर रही है।

 पीआईबी ने कहा अब ऐसा नहीं होगा भरोसा रखिए  

 मंगलवार को  पीआईबी चंडीगढ़ के अतिरिक्त महानिदेशक राजेन्द्र चौधरी जब वार्तालाप  मिशन के तहत हरियाणा के रेवाड़ी जिले में पहुंचे तो  सूचनाओं का कुनबा अपने पहरेदार पत्रकारों के साथ खिलखिलाता नजर आया। लगा काफी देर से ही सही परिवार के मुखिया ने उनके दर्द को सांझा कर लिया है। पुराने गिले शिकवे खत्म करने का समय आ चुका है। पीआईबी मुखिया होने के नाते एक नई सोच और उम्मीद के साथ अब सूचनाओं को अलग थलग नहीं होने देगी। पहले की तरह उनके साथ होता रहा सौतेला व्यवहार व मनमानी नहीं होगी।  

 मीडिया के बंटने का खामियाजा भी भुगत रही सूचनाएं

 मीडिया के बंटने का खामियाजा भी सूचनाओं को भुगतना पड़ रहा है। पिछले कुछ सालों से मीडिया दो चरित्र में नजर आ रहा है।  एक इंडिया की दूसरा भारत की शक्ल में अपनी बात कह  रहा है। इंडिया मतलब बड़े शहरों में रहकर सूचनाओं से खेलते जर्नलिस्ट  इस बात पर इतराते हैं कि सरकार की तमाम योजनाए उनके यहां हाजिरी लगाने के बाद ही भारत यानि छोटे शहरों- कस्बों व गांवों की चौपालों पर अपनी हैसियत बना पाती है। इसलिए इंडियन जर्नलिस्ट अक्सर सूचना के नाम पर स्टूडियों में ब्रेकिंग न्यूज की शक्ल में बोलने से ज्यादा घमंड के मारे चिल्लाते नजर आते हैं। यहां तक की बंद कमरों में सूचनाओं के साथ वे बदतमीजी भी करते हैं।  जिनकी शिकायतों पर लगातार शोर मचता रहा है। उधर  भारत में बसे पत्रकार भी अपने इंडियन जर्नलिस्ट बंधुओं की हरकतों से परेशान है। वे चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकते । वजह इंडियन जर्नलिस्ट खुद को देश के शासन के करीब रहकर अपना प्रभाव बनाए रखते हैं। ऊंची पहुंच के नाम पर खुद को स्मार्ट व खास मानते हैं। इसी दरम्यान जब सोशल- डिजीटल मीडिया ने आगे आकर इंडिया– भारत में बंटी पत्रकारिता की सोच को दुरुस्त करने का प्रयास किया तो वह भी गलत, झूठी फर्जी सूचनाओं की चपेट में आकर अपनी सुध बुध खोने लगा। लिहाजा अब  भारत- इंडिया के साथ साथ सोशल मीडिया को साफ सुथरी सोच के साथ एक मंच पर लाने के लिए अभी तक इंडिया में रह रही पीआईबी ने भारत भ्रमण शुरू कर दिया है। इसलिए वह वार्तालाप के बहाने उस दहलीज पर पहुंच रही हैं जहां सूचनाएं अपनी असल जिंदगी जीती है।

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