रणघोष में पढ़िए में रेवाड़ी शहर में जमीनों के खेल का असल सच

रेवाड़ी शहर में दफन 3931 एकड़ जमीन का आए दिन हो रहा सौदा, खाली जगह देखो कर लो कब्जा


    डीसी अशोक गर्ग इस पूरे खेल का पर्दाफाश करना चाहते थे, तहसीलदार को दे दिए थे आदेश, कार्रवाई आगे बढ़ती तबादला हो गया

शीशो के शहर में पत्थर का व्यापार कर रहे आवाज उठाने वाले


रणघोष खास. रेवाड़ी से सीधी ग्रांउड रिपोर्ट

 एक ही झटके में करोड़पति बनाने वाली शहर के ब्रास मार्केट की जमीन पिछले पांच रोज से नगर परिषद की कार्यप्रणाली को निवस्त्र करती जा रही है। सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा नई बात नहीं है। इस खेल में यहां कब्जा करने वाले जरूरत से ज्यादा समझदार निकले। उन्हें लगा कि बही खाता संभालने वाले अपने है तो डर किस बात का। दूसरा कब्जे से पहले तैयार किए गए गणित का फार्मूला ठीक उसी तरह रखा जिस तरह  शहर में 3931 एकड़ 7 कनाल जमीन पर चलता आ रहा है। इतनी बड़ी जायदाद के मालिक रहे राय बहादुर सिंह मक्खलाल की जमीन के मालिकाना हक का छिपा सच आज तक  या तो दफन कर दिया गया है या फिर इसे शातिर अंदाज से भूमाफिया प्रशासन एवं प्रभावशाली नेताओं से मिलकर धीरे धीरे कब्जाने में लगे हुए हैं। इसलिए ब्रास मार्केट का मामला भी कुछ दिनों बाद कार्रवाई के नाम पर सरकारी फाइलों में कोर्ट की तारीखों में दम तोड़कर शांत हो जाएगा। गौर करिए जब नगर परिषद को आज तक यह नहीं पता कि उसकी अपनी संपत्ति कहां कहां फैली हुई है। उस पर अभी कितना जायज और नाजायज कब्जा हो चुका है। उस नगर परिषद से आप कार्रवाई की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। सही मायनों में तहसील व नप की कार्यप्रणाली कई सालों से  शहर की जमीनों की खरीद फरोख्त में दलालों की मंडी बनी हुई है। अगर यह दावा गलत है तो  कुछ माह पहले  दिल्ली रोड पर स्वर्ग आश्रम के सामने बने मकबरे की जमीन को भी खुर्दबुर्द करने की तैयारी कैसे हो गईं। गढ़ी बोलनी रोड पर भी ऐसी जगहों पर शराब के ठेके खुल गए जो रिकार्ड में जमीन के मालिक भी नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर यह खुलासा तर्कहीन व तथ्य  से परे हैं तो प्रशासन को तुरंत प्रभाव से  अरबों- खरबों की इस संपत्ति को लेकर मच रहे शोर पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए आगे आना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो समझ जाइए पूरी दाल ही काली हो चुकी है। तत्कालीन उपायुक्त टीएल सत्यप्रकाश ने भी अपने समय में शहर की इन जमीनों के मालिकाना हक को लेकर जांच रिपोर्ट सरकार के पास भेज दी थी लेकिन उस पर कोई एक्शन नहीं हुआ।

शहर में आए दिन ऐसे जमीनों की सौदेबाजी हो रही हैं जिसके असली मालिक का आज तक पता नहीं चल पाया है। जो खुद मालिक होने का दावा कर रहे हैं तो सरकारी रिकार्ड में फंसे हुए हैं। यहां सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शहर में जमीनों की कीमत इतनी ज्यादा है कि बड़े से बड़े का ईमान बाजार में बोली लगाकर बिक जाता है। इसलिए इस तरह के मामले जितने तेजी से उठते हैं उतनी ही तेजी से दफन कर दिए जाते हैं।

 शहर की रामलीला मैदान की लड़ाई में जीती जंग से सामने आया था सच

 शहर में चारों तरफ दफन 3931 एकड़ जमीन का असल सच राजकीय बाल वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के रामलीला खेल मैदान को लेकर चली कानूनी लड़ाई के दौरान सामने आया था जिसमें कोर्ट में इन जमीनों से जुड़ा सबसे बड़ा सबूत 13 फरवरी 1939 में जज आईयू खान  के फैसले की प्रति को रखा गया था। जिसमें बिशंबरदयाल बनाम मुंशीलाल केस में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राय बहादुर मक्खनलाल के गोद आए मुंशीलाल के दावे को खारिज कर दिया था। इसी को आधार बनाते हुए शहर के रामलीलाल मैदान को भी स्कूल प्रबंधन ने  इन वारिसों से जीत लिया था। इसी तरह जिला प्रशासन भी टेकचंद क्लब के मामले में इन वारिसों द्वारा किसी दूसरे को बेची गई जमीन को लेकर हाईकोर्ट में जा चुका है। साथ ही  इसलिए इन वारिसों की तरफ से शहर की कुछ प्रोपर्टी को बाजार रेट से बहुत कम रेट पर बेचा जा रहा है।  ऐसा करने की पीछे की वजह का सच आना बहुत जरूरी है। कायदे से 1939 से लेकर आज तक 82 साल के दरम्यान उन सभी दस्तावेजों की जांच हो जिसकी वजह से शहर की नींद उड़ चुकी है। अभी तक इन जमीनों की खरीद फरोख्त में अरबों रुपए का लेन देन हो चुका है जबकि असल वारिस को लेकर तस्वीर पूरी तरह से धुंधली है।

आइए राय बहादुर सिंह मक्खलाल के पारिवारिक इतिहास पर नजर डाले

रिकार्ड से जुटाई गई जानकारी के मुताबिक  रेवाड़ी के खुशवंत राय ने राय बहादुर मक्खनलाल को गोद लिया था। मक्खनलाल के भी शादी के बाद कोई वारिस नहीं हुआ तो उन्होंने अपनी बहन जो गुरुग्राम में रहती थी के बेटे मामचंद को गोद ले लिया था। 1917-18 में मामचंद की हैजे बीमारी के चलते मृत्यु हो गई थी। उसके बाद 1925 के आस पास तक खुशवंत सिंह,उसकी पत्नी एवं बहन की भी अलग अलग कारणों से मृत्यु हो गईं। उस समय मक्खनलाल 3931 एकड़ 7 कनाल जमीन के मालिक थे। उनके यहां मुनीम मुंशीलाल बचे थे। उन्होंने दावा किया कि राय बहादुर मक्खनलाल ने कोई वारिस नहीं होने पर उन्हें गोद ले लिया था। इसका शपथ पत्र भी उनके पास है। इस आधार पर वे इस जमीन के मालिक है। इसके बाद बिशंबरदयाल नामक व्यक्ति ने मुंशीलाल के गोदनामा के दावे को कोर्ट में चुनौती दे दी। 13 फरवरी 1939 को जज आई यू खान की कोर्ट में मुंशीलाल का गोदनामा दावा झूठा साबित हो गया। जैसा की दावा किया जा रहा है कि  जिसे रिकार्ड में अपडेट किया जाना था जो नहीं हुआ। इसी दौरान मुंशीलाल के दो संतान हुई जिसमें एक राजा रतिराम एवं दूसरा नेमीचंद। राजा रतिराम के तीन बेटे प्रेम, राजकुमार एवं सतीश हुए जबकि नेमीचंद के कोई बेटा नहीं था उनके दो बेटी सावित्री एवं ऊर्षा हुईं। यहां से जमीन की जायदाद के रिकार्ड में इन वारिसों के नाम चढ़ते चले गए। यह जानकारी पूरी तरह रिकार्ड पर आधारित है जिसकी सत्यता को चुनौती दी जा सकती है।

 डीसी अशोक गर्ग इस पूरे खेल का पर्दाफाश करना चाहते थे

   कुछ दिन पहले स्थानांतरित हुए डीसी अशोक कुमार गर्ग शहर में जमीन के खेल को पूरी तरह से समझ चुके थे। उन्होंने शहर के मॉडल टाउन स्थित शिशुशाला स्कूल, रेजागंला पार्क की कई करोड़ों की जमीन को भूमाफियाओं से आजाद कराया। टेकचंद क्लब पर होने वाले कब्जे को जाकर रोका। उन्होंने तहसीलदार को राय बहादुर सिंह मक्खलाल के परिवार द्वारा भेजी गई जमीन का रिकार्ड तैयार करने के आदेश दे दिए थे। डीसी अशोक कुमार यह तय कर चुके थे कि फर्जी गोदनामा से गलत तरीके से बेची गई जमीन वारिस नहीं होने पर कायदे से सरकार की सपंति है। लेकिन जैसे ही उन्होंने इस दिशा में कदम बढ़ाए प्रभावशाली लोगों ने खुद को बचाने के लिए इस अधिकारी को इधर से उधर करने की पूरी ताकत लगा दी और वे अपने मकसद में कामयाब हो गए।   

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