कलम कुछ कहती है..

हे समाज के जागरूक नागरिको, कुछ तो खबरों से बचाकर रखो


 हालात यह बन चुके हैं अगर किस प्रबुद्ध वर्ग के घर बच्चे का जन्म होता है तो खबरों की थाली स्थानीय मीडिया कार्यालयों में बजती है। अगर किसी की मृत्यु हो जाए तो उसे समाजसेवी व ईमानदारी का प्रमाण पत्र भी मीडिया को जारी करना पड़ता  हैं।


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


हे समाज के जागरूक नागरिको, कुछ तो खबरों से बचाकर रखो। हालात यह बन चुके हैं अगर किस प्रबुद्ध वर्ग के घर बच्चे का जन्म होता है तो खबरों की थाली स्थानीय मीडिया कार्यालयों में बजती है। अगर किसी की मृत्यु हो जाए तो समाजसेवी व ईमानदारी का प्रमाण पत्र भी मीडिया को जारी करना पड़ता हैं। मीडिया में अखबारों के लोकलपुलआउट व लोकल यू टयूब चैनल की सहज मौजूदगी व कवरेज बेहतरी के लिए जन्मी थी। अब उसका खुद को समाज का समझदार एवं जागरूक कहने वाला तबका अपने हिसाब से भरपूर फायदा उठाने में पूरी तरह से मानिसक तौर पर अजीबों गरीब स्थिति में पहुंच जाए तो क्या किया जाए।  हमें डर है कि अगर इसी मानिसकता से खबरों का जन्म होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब  बच्चे  के नामकरण को लेकर पंडित ज्योतिष्यियों की विचार गोष्ठी आयोजित होगी। शादी का शैडयूल अखबार के शहर में आज कॉलम में इतराता नजर आएगा। दुल्हे की घोड़ी के सामने कितने बारातियों ने जमकर धमाल मचाया। किस खाने पीने की स्टाल पर सबसे ज्यादा भीड़ रही यह खबरों की झलकियां होगी। दूल्हे ने कौनसी शेरवानी ओर दुल्हन ने लंहगा पहना हुआ था। विदाई के समय सबसे ज्यादा किसकी आंखों में आंसू थे।  मीडिया में अभी तक क्राइम, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन एवं राजनीति कवरेज के लेकर पत्रकारों की जिम्मेदारी तय की जाती है जिसे मीडिया भाषा में बीट कहा जाता है। आने वाले दिनों में  बड़े स्तर पर  बदलाव देखने को मिल सकता है। मसलन शादी, जन्म-मृत्यु संवाददाता की अलग से नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे जा सकते हैं। कुल मिलाकर मीडिया का मजाक बनाने वाले समझदार जागरूक नागरिकों से अपील है कि वे इस प्लेटफार्म का समाज एवं राष्ट्र के हितों के लिए उपयोग करें। अपनी सस्ती लोकप्रियता के लिए इस्तेमाल करना बंद करिए। हमें मालूम है कि छपास रोग आसानी से नहीं छूटेगा।  कोशिश तो करिए  इसमें सभी का सम्मान ओर स्वाभिमान बचा ओर बना रहेगा।

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