केंद्र ने एससी से कहा- कोरोना हताहतों को 4 लाख मुआवजा नहीं दे सकते

रणघोष खास. देशभर से


केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह कोरोना से मारे गए सभी लोगों के लिए 4-4 लाख रुपये का मुआवजा नहीं दे सकती है क्योंकि इससे पूरी आपात राहत निधि खाली हो जाएगी। सरकार ने शनिवार देर रात सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर यह बात कही है। सरकार का यह हलफनामा उस याचिका के जवाब में है जिसमें न्यूनतम राहत और कोरोना से मारे गए लोगों को मुआवजा या अनुग्रह राशि देने की माँग की गई थी।

सरकार के आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक़ शनिवार यानी 19 जून तक 3 लाख 86 हज़ार 713 लोगों की मौत कोरोना संक्रमण के कारण हुई है। इसका मतलब है कि ऐसे किसी राहत पैकेज की घोषणा होने पर इन मृतकों के परिवार वाले इसके लाभार्थी होंगे।सरकार ने कहा है कि कोविड-19 के पीड़ितों को 4 लाख रुपये का मुआवजा नहीं दिया जा सकता है क्योंकि आपदा प्रबंधन क़ानून में केवल भूकंप, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं पर ही मुआवजे का प्रावधान है। इसने यह भी कहा है कि यदि इतनी रक़म दी जाती है तो आपदा राहत निधि के रुपये ख़त्म हो जाएँगे।सरकार ने कहा है कि यदि पूरे एसडीआरएफ़ यानी राज्यों के आपदा राहत फंड को कोरोना पीड़ितों के लिए अनुग्रह राशि पर ख़र्च किया जाता है तो राज्यों के पास कोरोना से लड़ने के लिए संसाधन नहीं बचेंगे। इसने कहा, ‘पीड़ितों को मुआवजा दिया जाता है तो विभिन्न आवश्यक चिकित्सा और अन्य आपूर्ति के प्रावधान के लिए, या चक्रवात, बाढ़, आदि जैसी अन्य आपदाओं की देखभाल के लिए पर्याप्त धन नहीं बच सकता है। इसलिए कोरोना के कारण सभी मृतक व्यक्तियों को अनुग्रह राशि के भुगतान के लिए याचिकाकर्ता की प्रार्थना, राज्य सरकारों की वित्तीय सामर्थ्य से परे है।’केंद्र ने अपने हलफनामे में यह भी कहा है कि बढ़े हुए स्वास्थ्य ख़र्च और कम कर राजस्व के कारण, राज्य लाखों कोरोना पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान नहीं कर सकते हैं। केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि मुआवजा देने के लिए दुर्लभ संसाधनों का उपयोग करने का परिणाम अच्छा से ज़्यादा नुक़सान पहुँचाने वाला हो सकता है। सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट के पहले के फ़ैसलों को लेकर याद दिलाया है कि न्यायपालिका केंद्र की ओर से निर्णय नहीं ले सकती है।इसने कहा है, ‘सुप्रीम कोर्ट के कई फ़ैसलों के माध्यम से यह अच्छी तरह से तय हो गया है कि यह एक ऐसा मामला है जिसे प्राधिकरण द्वारा किया जाना चाहिए, जिसे इसे सौंपा गया है और ऐसा नहीं है जहाँ अदालत अपने फ़ैसले कार्यपालिका के फ़ैसले के ऊपर लादेगी।’

बता दें कि देश में अब कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है। एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि यह तो आएगी ही। यानी तीसरी लहर को टाला नहीं जा सकता है। उन्होंने तो यह भी कह दिया कि यह 6-8 हफ़्ते में आ सकती है। देश में हर रोज़ क़रीब 60 हज़ार संक्रमण के मामले आ रहे हैं। पहले हर रोज़ 4 लाख से भी ज़्यादा मामले आने लगे थे। अब तीसरी लहर को लेकर ज़्यादा डर इसलिए है कि दूसरी लहर के लिए जिस डेल्टा वैरिएंट को ज़िम्मेदार माना गया था उसका अब नया वैरिएंट डेल्टा प्लस का संक्रमण फैल रहा है। महाराष्ट्र में तो नये वैरिएंट यानी डेल्टा प्लस के कम से कम 7 मामले सामने आए हैं। इसमें से 5 तो एक ही ज़िले रत्नागिरि में मिले हैं। देश में अब तक टीकाकरण काफ़ी कम हुआ है और लॉकडाउन में ढील दी जा रही है तो यह आशंका और बढ़ जाती है।

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