क्‍या डायनासोर से है इस पेड़ का संबंध? 29 करोड़ साल से नहीं हुआ कोई बदलाव, बौद्ध भिक्षुओं से क्‍या है संबंध

दक्षिण एशिया समेत दुनिया के कई हिस्‍सों में पाए जाने वाले एक खास पेड़ को लोग बड़ी उम्‍मीद के साथ देखते हैं. दरअसल, ये पेड़ बीते करोड़ों साल में दुनियाभर में हुईं भीषण तबाहियों के बीच भी जस का तस खड़ा है. बड़ी बात तो ये है कि जलवायु में लगातार हो रहे परिवर्तन के बाद भी इस पेड़ की प्रजाति में कोई बदलाव नहीं हुआ है. कई देशों में तो इस पेड़ को चमत्‍कारी मानते हुए मंदिरों में भी लगाया जाता है. कुछ लोगों का मानना है कि इस पेड़ का डायनासोर से संबंध है. हालांकि, डायनासोर खत्‍म हो गए, लेकिन ये पेड़ आज भी धरती पर मौजूद है.

दुनियाभर में पाए जाने वाले इस पीले-सुनहरे रंग के पेड़ को जिंकगो बाइलोबा ट्री या जिंको ट्री के नाम से पहचाना जाता है. चीन के बौद्ध मंदिरों में ये पेड़ अक्‍सर देखने को मिल जाता है. स्‍थानीय लोगों का मानना है कि इस पेड़ से उन्‍हें ऊर्जा मिलती है. चीन के एक बौद्ध मंदिर में लगे जिंको ट्री की उम्र 1400 साल बताई जाती है. माना जाता है कि एक जिंकगो बाइलोबा ट्री की उम्र करीब 3000 साल होती है. वहीं, यूरोप में ये पेड़ ज्‍यादातर सड़कों के किनारे खड़े मिल जाते हैं. भारत में इसे उत्‍तराखंड राज्‍य के नैनीताल और अल्‍मोड़ा में कई जगह देखा जा सकता है.

धरती पर मौजूद सबसे पुराना पेड़ है जिंको ट्री
वैज्ञानिकों का मानना है कि जिंकगो बाइलोबा ट्री धरती पर मौजूद अकेली ऐसी प्रजाति का पेड़ है, जिसमें 29 करोड़ साल से किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है. दूसरे शब्‍दों में कहें तो इसे धरती पर मौजूद सबसे पुराना पेड़ माना जा सकता है. माना जाता है कि ये पेड़ सबसे पहले चीन में पैदा हुआ था. इसलिए ये चीन का राष्‍ट्रीय पेड़ भी है. इसके बाद पूरे एशिया से होते हुए दुनियाभर में फैल गया. जापान में तो इस पेड़ को उम्‍मीद का प्रतीक माना जाता है. इस पेड़ की जड़ें बहुत गहरी होती हैं. ऐसे में भयंकर जंगों के बाद भी ये नष्‍ट नहीं हो पाया. जमीन के ऊपर का हिस्‍सा नष्‍ट होने के बाद भी कुछ समय में इस पेड़ पर फिर से नए पत्‍ते और फूल आ जाते हैं.

जिंकगो ट्री को माना जाता है लिविंग फॉसिल
दुनिया में कुछ पेड़-पौधे फॉसिल प्लांट के तौर पर आज भी देखने को मिल जाते हैं. इन्हीं में एक जिंको बाइलोबा भी है. इसके बाकी प्लांट ग्रुप दुनिया से खत्म हो चुके हैं. इसे ‘मैडेहेयर ट्री’ नाम से भी जाना जाता है. शोध के अनुसार, आज से करीब 29 करोड़ साल पहले ये धरती पर मौजूद था. इस पेड़ की लंबाई 20 से 35 मीटर तक होती है. इसका नाम जिंको बाइलोबा इसकी पत्तियों की वजह से पड़ा. दरअसल, इसकी पत्तियां हरी होती हैं, लेकिन कुछ समय बाद पीली-सुनहरी हो जाती हैं. इस पेड़ का ऊपरी हिस्सा कोणीय होता है. पेड़ की उम्र बढ़ने के साथ ऊपरी हिस्सा यानी मुकुट फैलता जाता है.

बौद्ध भिक्षुओं से क्‍या है जिंकगो ट्री का संबंध
जिंकगो ट्री को एक समय मान लिया गया था कि धरती से इसका अस्तित्‍व खत्‍म हो गया है. बाद में इसे चीन के शेजियांग प्रांत में देखा गया. स्‍थानीय लोगों का मानना है कि बौद्ध भिक्षुओं ने नष्‍ट होते जिंकगो ट्री को संरक्षित किया. उन्‍होंने ही इसे चीन में कई जगह लगाया और बचाकर रखा. अब इसे बागवानी के शौकीन लोग अपने घर और लॉन में लगाते हैं. इसके पौधों को नर्सरी में भी तैयार किया जा सकता है. उत्तराखंड के नैनीताल में इन्हें कल्टीवेटेड फॉर्म में रखा गया है. जिंको बाइलोबा नैनीताल के राजभवन, बॉटेनिकल गार्डन और डीएसबी परिसर के बॉटनी डिपार्टमेंट में देखने को मिल जाते हैं.

कई बीमारियों में इस्‍तेमाल होती हैं पत्तियों
जुरासिक काल का ये पेड़ देखने में जितना खूबसूरत होता है, इसकी पत्तियों में उससे ज्‍यादा औषधीय गुण होते हैं. जिंकगो के पत्ते आंखों और मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों के इलाज में इस्‍तेमाल की जाती हैं. इसकी पत्तियों से बनी दवाइयां अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज में भी फायदेमंद मानी जाती हैं. आयुर्वेद में इसका काफी इस्तेमाल किया जाता है. चीन में कई बीमारियों में इनका इस्तेमाल किया जाता है. यह एक ब्रेन टॉनिक है, जिससे याददाश्त तेज होती है. सांसों से जुड़ी बीमारी, कफ, बुखार, डायरिया और दांत दर्द में भी इसका इस्‍तेमाल होता है. इसकी पत्तियों में एंटीऐजिंग तत्व भी मौजूद होते हैं. हालांकि, इसका बहुत ज्यादा इस्तेमाल स्‍वास्‍थ्‍य के लिए नुकसानदायक भी होता है.

 

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