खुलासा: बाबा मुक्तेश्वरपुरी मठ की सोसायटी में पूरी दाल ही काली

रणघोष अपडेट. कोसली

गांव कोसली में स्थापित बाबा मुक्तेश्वरी पुरी धाम को 2008 से संचालित करती आ रही बाबा मुक्तेश्वरी पुरी आदर्श सोसायटी पर एक के बाद एक लगते आ रहे आरोपों के दाग साफ होने की बजाय दागदार होते जा रहे हैं। एडीसी स्वप्निल रविंद्र पाटिल की देखरेख में इस मामले की जांच चल रही है। बहुत से चौकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं जो समय समय पर उजागर होते रहे हैं। इस पूरे मामले का सबसे महत्वपूर्ण पहलु सोसायटी का नियमों को ताक पर रखकर रजिस्ट्रेशन होना एवं अपनी मर्जी से बनाए नियमों के आधार पर पंचायती जमीन व मठ में होने वाली आय पर अपना कंट्रोल करना है। जिस पर पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट भी कड़ी आपत्ति दर्ज करा चुका है। इतना ही नहीं कोर्ट का आदेश नहीं मानने पर प्रशासनिक अधिकारी पर जुर्माना तक लग चुका है। अब डीसी अशोक कुमार गर्ग इस मामले को देख रहे हैं।

यह मठ विशेषतौर से कोसलिया गौत्र से जुड़े समुदाय की आस्था का प्रतीक है। इस गौत्र के लोग देश विदेश में बसने के बावजूद साल में यहां मत्था टेकने व पारिवारिक रीति रिवाज की  रस्में पूरी करने जरूर आते हैं। कई लाखों रुपए का चढ़ावा मठ में आता है जिसे इस सोसायटी के सदस्यों द्वारा खुलवाए गए बैंक में खाता में जमा करवाया जाता है। मठ में सोसायटी सदस्यों की कार्यप्रणाली के खिलाफ पिछले कई सालों से लड़ाई लड़ रहे होशियार नंबरदार का दावा है कि उनके पास वह सभी सबूत एकत्र हो चुके हैं जो पूरी तरह से साबित करते हैं कि सोसायटी में दाल में काला नहीं पूरी दाल ही काली है। इसलिए हाईकोर्ट से लेकर जिला रजिस्ट्रार भी उनकी शिकायतों पर सोसायटी को कई बार नोटिस दे चुका है लेकिन प्रभावशाली लोगों व  मिलीभगत से इस मामले को दबाने का हर संभव प्रयास किया लेकिन अब जिला प्रशासन में ईमानदार अधिकारियों के होने से इसकी निष्पक्ष जांच कर उचित कार्रवाई की उम्मीद मजबूत नजर आ रही है। नंबरदार की माने तो 30 दिसंबर 2008 को सोसायटी का गठन होने से पहले मठ के मठाधीश को खातों से राशि निकालने का अधिकार था और गांव के सरपंच ओर नंबरदार उसमें सहयोग करते थे। 2008 से पहले सरपंच ने कमरा बनवाने के नाम पर मंहत से मठ के खाते से 50 हजार रुपए का चैक लिया ओर उसे चालाकी से साढ़े सात लाख रुपए का बनाकर राशि निकलवा ली। मामला पकड़ में आने के बाद कोर्ट की मदद से आरोपी से 14 लाख रुपए की रिकवरी  ब्याज समेत वसूल की गईं। इसी वजह से सोसायटी का गठन करने का विचार आया। नियमानुसार वसूल की गई राशि मठ के खाते में जमा होनी थी लेकिन सोसायटी के सदस्यों ने खोले गए नए खाते में जमा करवा दी। यहीं से राशि का दुरुपयोग एवं मठ की गरिमा पर हमला होना शुरू हो गया। इतना ही नहीं पंचायती 60 एकड़ जमीन को भी सोसायटी के सदस्यों ने मठ के नाम पर अपने अधीन कर ली। मठ में होने वाली आय पर भी अधिकार कर लिया। मनमानी शुरू हो गईं। उन्होंने सभी दस्तावेज एडीसी की जांच कमेटी के सामने रख दिए हैं। क्षेत्र के लोग भी अब मानने लगे हैं कि बहुत कुछ गलत हुआ है जो सामने आना चाहिए।

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