गुरुग्राम लोकसभा की गौरवशाली भारत रैली के साइड इफेक्ट

आरती राव का रैली में नहीं होना विरोधियों की ताकत बढ़ा गया


 राव विरोधियों ने रैली में भेजते अपने काफिले का विडियो सांझा किया


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


हरियाणा के पटौदी- जाटौली में केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की कमान में 25 जून को  हुई भाजपा की गुरुग्राम लोकसभा की गौरवशाली भारत रैली के साइड इफेक्ट आने शुरू हो गए हैं। यहां के सांसद होने के नाते राव सफल रैली का श्रेय लेने में जरूर कामयाब हो गए लेकिन बेटी आरती राव की गैर मौजूदगी ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए। नहीं आने पर यह सफाई देना कि जाम में फंसने की वजह से नहीं पहुंच पाईं। खिलौने को चांद बताकर बच्चे को चुप कराना जैसा है। दरअसल रैली से दो दिन पहले आरती राव की हरियाणा में सीएम बदलने को लेकर वायरल हुई विडियो क्लिप राव पर भारी पड़ गईं। भाजपा के भीतर मौके की तलाश में राव विरोधी खेमें ने तुरंत हाईकमान को हाई अलर्ट जारी कर दिया कि रैली में आरती राव की मौजूदगी से माहौल इधर उधर हो सकता है। अगर वह मंच को संभालती है तो सभी नेताओं व पदाधिकारियों को बोलने का बराबर का सम्मान मिलना चाहिए। यह भाजपा की रैली है किसी व्यक्ति विशेष की नहीं।  ऐसी स्थिति में रैली के मायने ही ना बदल जाए। इसलिए आरती के कदम रैली की तरफ जाने से रोक दिए गए जबकि रैली आयोजन की पूरी जिम्मेदारी आरती खुद संभाल रही थी। इस घटनाक्रम से राजनीति के एक साथ कई मायने निकलते हैं। पहला आरती राव की गैर मौजूदगी राव के कद को भाजपा के भीतर एक दायरे में रखने में कामयाब रही जो आमतौर पर राव के मिजाज से मेल नहीं खाता है। ऐसा पहली बार हुआ जब इस तरह के बड़े जलसे में भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य होते हुए भी  आरती आयोजक की भूमिका में होते हुए भी मंच से दूर रही। दूसरा इतने महत्वपूर्ण आयोजनों में जिस पर हाईकमान की पूरी नजर थी वहां आरती का नहीं होना राव के लिए भी किसी झटके से कम नहीं है। 2024 का चुनाव राव के लिए अपनी राजनीतिक विरासत को पूरी तरह आरती को विधिवत तौर पर सौंपने की तैयारी है। इस चुनाव के बाद शायद ही राव उम्र के लिहाज से 2029 का चुनाव लड़ पाए लेकिन आरती को पूरी तरह से राजनीति में समझदार बनाने के लिए  जाटौली- पटौदी जैसी रैली में भागेदारी होना जरूरी था। ऐसा नहीं है कि आरती ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली को पहली बार चुनौती दी हो। वह इससे पहले भी अपने बयानों से यह जता चुकी है कि वह घर से याद करके नहीं आती मौके पर ही अपने दादा- पिता की तरह बात कहने की हिम्मत रखती है। बात को कब किस समय कहना है। यहां पर जाटौली रैली को लेकर आरती जल्दबाजी कर गईं जिसकी वजह से उसे अनुपस्थित रहना पड़ा। आरती राव की गैर मौजूदगी को लेकर दूसरे मायने निकाले जाए तो इसका राजनीतिक फायदा भी आरती को आने वाले समय में मिल सकता है। इससे उसे अपनी अलग पहचान बनाने का माहौल मिला है। दूसरा 2024 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति डगमगाती नजर आईं तो यहां उसकी बातों को अहमियत मिलेगी। यानि भाजपा विरोधी लहर में आरती संतुलन की स्थिति में रहकर अपने मकसद को पूरा कर सकती है। राव का इरादा भी अपनी बेटी को धारा के विपरित जाकर लीडरशिप पैदा करना है ताकि वह महज राव इंद्रजीत की बेटी बनकर नहीं रह जाए। कुल मिलाकर इस रैली में आरती की गैर मौजूदगी भाजपा ओर राव के बीच रिश्तों में कुछ कच्चापन का अहसास भी करा गईं जिसका असर आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है। 

 राव विरोधियों ने रैली में भेजते अपने काफिले का विडियो सांझा किया


भाजपा में राव विरोधी धड़े ने उन विडियो को भी हाईकमान से सांझा किया है जिसमें वे काफी संख्या में काफिले के साथ पटौदी रैली के लिए रवाना हो रहे हैं। यहां बता दें कि इस रैली को लेकर मीडिया कार्यालयों में दो तरफ से प्रेस नोट जारी हुए। भाजपा प्रदेश मीडिया कार्यालय की तरफ से जारी प्रेस नोट में भाजपा प्रदेश प्रभारी बिप्लब देव व प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ के भाषण को सबसे आगे रखा और राव इंद्रजीत सिंह तीसरे नंबर पर रहे जबकि राव कार्यालय की तरफ से जारी प्रेस नोट की शुरूआत राव के भाषण से रही।  भाजपा के अन्य शीर्ष नेताओं को क्रमश दो व तीसरे नंबर पर रखा गया। इसका सीधा सा अर्थ मीडिया में कवरेज को लेकर भी अलग ही तस्वीर नजर आईं।

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