ग्राउंड रिपोर्ट : ओडिशा का वो गांव जहां से द्रौपदी मुर्मू का सफ़र शुरू हुआ

रणघोष खास. रवि प्रकाश  ऊपरबेड़ा (ओड़िशा) से


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एक अलसायी-सी उमस भरी गर्मी की सुबह जब हम ऊपरबेड़ा पहुंचे, तो औरतें खाना बनाने में लगी थीं.

मर्द खेतों में जाने की तैयारी में थे. बच्चे नहाने-धोने में व्यस्त थे. उन्हें स्कूल जाना था. गांव की कुछ दुकानें खुली थीं, कुछ बंद. काले-पीले रंग के एक टेंपो (आटो रिक्शा) में सवार कुछ लोग शहर जा रहे थे.

तभी टेलीविजन, रेडियो और इंटरनेट पर चल रही ख़बरों में बताया जा रहा था कि देश के नए राष्ट्रपति के चुनाव की वोटिंग हो चुकी है. इसमें द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बन चुकी है। 

आजादी के 75 साल बाद वे भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं. यही खबर ऊपरबेड़ा के लोगों को उत्साहित कर रही थी. क्योंकि, द्रौपदी मुर्मू इसी गांव की रहने वाली हैं. इन्हीं गलियों में उनका बचपन बीता है. यहां उनका मायका है.

करीब 3500 लोगों की आबादी वाला ऊपरबेड़ा गांव ओड़िशा राज्य के मयूरभंज जिले के कुसुमी प्रखंड का हिस्सा है. झारखंड की सीमा के करीब बसे इस गांव से कुछ दूरी पर लौह-अयस्क की खदानें हैं. पहाड़ हैं. तालाब और नदियां भी.

यह भारत के दूसरे गांवों-सा ही है. यहां के लोगों की भी अपनी दिक्कतें-ज़रुरतें हैं. दूसरे गांवों की तरह यहां के बहुतायत लोगों की सुबह पौ फटने से पहले और रातें शाम ढलने के कुछ देर बाद ही शुरू हो जाती हैं. बस एक बात जो इसे दूसरे गांवों से अलग करती है, वह यह कि ऊपरबेड़ा में जन्मी द्रौपदी मुर्मू भारत की राष्ट्रपति बन चुकी हैं.

रायरंग विधानसभा की विधायक रही हैं मुर्मू

हालांकि, यह पहला मौका नहीं, जब द्रौपदी मुर्मू सुर्खियों में आई हों. वे अपनी विधानसभा सीट रायरंगपुर की विधायक, ओड़िशा सरकार की मंत्री और झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी हैं. उनका मायका ऊपरबेड़ा और ससुराल पहाड़पुर दोनों उनके विधानसभा क्षेत्र रायरंगपुर का हिस्सा हैं.फिर भी उनका गांव देश के दूसरे आम गांवों की तरह क्यों है? यहां के लोग भी बिजली, पानी, सड़क, कालेज, अस्पताल, बैंक जैसी बुनियादी सुविधाओं की बात क्यों करते हैं?ऊपरबेड़ा के मुखिया खेलाराम हांसदा इसका जवाब देते हुए कहते हैं कि ऐसा भी नहीं है कि विकास बिल्कुल नहीं हुआ है. द्रौपदी मुर्मू के विधायक बनने के बाद यहां सड़कें बनीं. बिजली आई.पीने के पानी की पाइप बिछी. गांव के रास्ते में कान्हू नदी पर पुल बना. पशुओं का अस्पताल खुला. सरकार की कई दूसरी योजनाएं भी आईं. फिर भी कई और काम होना बाकी है.खेलाराम हांसदा ने कहा, “ऊपरबेड़ा डिजिटल गांव है लेकिन यहां वे सारी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, जो किसी डिजिटल गांव में होनी चाहिए. यहां बैंक होना चाहिए. गांव के हाई स्कूल को अपग्रेड कर उसे हायर सेकेंड्री कर देना चाहिए, ताकि बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई हो सके. गांव के अस्पताल (पीएचसी) में 14 बेड की सुविधा करनी चाहिए.”

“यहां पर्याप्त संख्या में चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ़ की नियुक्ति की जानी चाहिए. सुविधाएं बढ़ायी जानी चाहिए, क्योंकि अगर हमने सरकार द्वारा संचालित 108 एंबुलेंस का इंतज़ार किया, तो मरीज़ की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो जाएगी.”

नज़दीकी कॉलेज 20 किलोमीटर दूर

ऊपरबेड़ा गांव का सबसे नज़दीकी कॉलेज यहां से 20 किलोमीटर दूर है. ऐसे में सबसे अधिक परेशानी उन लड़कियों को है, जो उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज जाती हैं. उन्हें साइकिल या किसी और माध्यम से कॉलेज जाना पड़ता है.

द्रौपदी मुर्मू की पड़ोसी झिग्गी नायक ग्रेजुएट हैं. कॉलेज जाना उनके लिए सबसे कठिन काम है.उन्होंने कहा, “गांव के लड़के तो अपनी बाइक या साइकिल से कॉलेज चले जाते हैं लेकिन हम लड़कियों का कॉलेज जाना सबसे कठिन काम है. पहले मैं साइकिल से कॉलेज जाती थी लेकिन अब मुझे गांव से मेन रोड तक आटो और फिर बस से कॉलेज जाना पड़ता है. अगर मेरे गांव मे ही कॉलेज खुल जाता, तो हमें यह परेशानी नहीं होती.”वैसे भी मेरा गांव पांच वार्डों का है. यहां की आबादी इतनी है कि सरकार कॉलेज खोल सके. इससे न केवल ऊपरबेड़ा बल्कि आसपास के गांवों के बच्चों को भी सहूलियत मिल जाएगी. मुझे उम्मीद है कि द्रौपदी बुआ के राष्ट्रपति बन जाने के बाद ऐसा हो सकेगा.

गांव के एक हिस्से में अब आई है बिजली

ऊपरबेड़ा गांव में बिजली यूं तो कई साल पहले आ गई लेकिन गांव के एक हिस्से मे बिजली के बल्ब हाल ही में जल सके हैं. इस इलाके में बिजली तब आई, जब एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया.यहां इलेक्ट्रीशियन का काम करने वाले जगन्नाथ मंडल ने बीबीसी को बताया कि गांव के डुंगरीसाई टोले में बिजली का कनेक्शन नहीं था. यहां के करीब 35 घरों के लोग लालटेन की रौशनी में अपनी रातें काटते थे.

बिजली विभाग के अधिकारियों ने पिछले महीने यहां आनन-फानन में बिजली सप्लाई की है. अब लोगों के घरों में बिजली तो है लेकिन कई दर्जन ग़रीबों का पक्का मकान नहीं है. वे प्लास्टिक की छतों के नीचे अपनी ज़िंदगी बसर कर रहे हैं.

ऐसा क्यों?कुसुमी के प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) लाखमन चरण सोरेन ने बीबीसी से कहा कि ऊपरबेड़ा के मुख्य राजस्व गांव का विद्युतीकरण पहले ही हो चुका है. लेकिन, बाद के सालों में बसे कुछ इलाकों में बिजली की सप्लाई नहीं थी.

वहां नए घर बने थे इसलिए बिजली का प्रोविजन करने में कुछ वक्त लग गया. अब हमलोगों ने अपने काम की स्पीड बढ़ाई है, ताकि विकास की गति और तेज़ कर सकें.गांव के बीचोबीच स्थित उत्क्रमित मिडिल स्कूल में इन दिनों लोगों की आवाजाही बढ़ गई है. यह वही स्कूल है, जहां कभी द्रौपदी मुर्मू ने प्राथमिक कक्षाओं की पढ़ाई की थी.यहां कई नई बिल्डिंग्स बनी हैं लेकिन स्कूल के पिछले हिस्से में एस्बेस्टस की छतों वाले वे कमरे मौजूद हैं, जहां कभी द्रौपदी मुर्मू पढ़ा करती थीं. तब इसकी छतें खपरैल थीं.इस स्कूल के प्रधानाचार्य मनोरंजन मुर्मू ने कहा, “तब यहां पहली से पांचवी तक की कक्षाओं के लिए एक स्कूल और छठी-सातवीं के लिए दूसरा स्कूल था. बाद के सालों में दोनों स्कूलों का मर्जर कर उत्क्रमित मिडिल स्कूल बना दिया गया. अब यहां सातवीं तक की पढ़ाई होती है. हमें गर्व है कि द्रौपदी दी हमारे स्कूल की अल्युमनाई (पूर्व छात्र) हैं.”स्कूल में सातवीं कक्षा की छात्रा तनुश्री उरांव इस बात से ख़ुश हैं कि उनकी सीनियर द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति बनने वाली हैं. हालांकि, वे बड़ी होकर भारतीय सेना में जाना चाहती हैं. द्रौपदी मुर्मू का जन्म जिस घर में हुआ, उसकी छत खपरैल थी. अब इसके बाहरी हिस्से में पीले रंग का पक्का मकान है लेकिन घर के लोगों ने वे कमरे उसी हालत में रखे हैं, जिनमें द्रौपदी मुर्मू का बचपन गुज़रा था. इस घर में अब उनके भाई की बहू दुलारी टुडू रहती हैं.

उन्होंने बीबीसी से कहा, “पुराने घर को हमलोग उसी स्वरुप में मेंटेन रखे हैं ताकि द्रौपदी की यादें वैसी ही रहें. वे जब भी यहां आती हैं, उन्हें यह घर देखकर खुशी होती है. उन्हें ‘पखल’ (पानी से बनने वाला विशेष खाना) पसंद है और आलू का चोखा भी. हम चाहते हैं कि वे राष्ट्रपति बनने के बाद जल्दी ही हमारे घर आएं, ताकि हम उनका स्वागत कर सकें. हम और हमारे गांव के लोग बहुत खुश हैं, क्योंकि वे राष्ट्रपति बनने वाली हैं.”

सोचा नहीं था राष्ट्रपति बन जाएंगी

द्रौपदी मुर्मू को छठी-सातवीं कक्षाओं में पढ़ा चुके विशेश्वर महंतो अब 82 साल के हैं. उन्होंने बताया कि वे बचपन से ही मेधावी थीं और खाली वक्त में महापुरुषों की जीवनियां पढ़ा करती थीं.उन्होंने बीकहा, “द्रौपदी समय पर स्कूल आतीं और सभी सवालों के सही जवाब दिया करती थीं. कुछ समझ न आए तो सवाल भी पूछती थीं. तभी मुझे लगा कि वे पढ़-लिखकर अच्छी अफसर बनेंगी. लेकिन वे राष्ट्रपति बनेंगी, ऐसा नहीं सोचे थे. अब उन्होंने इतिहास लिख दिया है.”

दोस्तों की उम्मीदें

ऊपरबेड़ा के ग्रामीणों की खुशियां और बुनियादी सुविधाओं की बहाली की मांगों के बीच कुछ वैसे भी लोग हैं, जो गंभीर मुद्दे उठाते हैं. गोविंद मांझी इन्हीं लोगों में शामिल हैं. उन्होंने और द्रौपदी मुर्मू ने पहली से पांचवी तक की पढ़ाई साथ-साथ की है. वे उनके बचपन के दोस्त हैं.

उन्होंने कहा, “वे देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनेंगी, इससे बड़ी गौरव की कोई बात नहीं हो सकती. हम चाहते हैं कि वे इस पद पर जाने के बाद संविधान में आदिवासियों के लिए अलग सरना धर्म कोड का प्रावधान कराएं और आदिवासी भाषाओं की उनन्ति के लिए काम करें.”

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