चलिए आज आर्टिकल 356 के बारे में जानते है , मोदी ने क्यों कहा- इंदिरा गांधी ने 50 बार किया इसका दुरुपयोग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को सहकारी संघवाद के मुद्दे पर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकारों ने कई क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधित्व वाली राज्य सरकारों को गिराने के लिए संविधान के अनुच्छेद 356 का कम से कम 90 बार इस्तेमाल किया. पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने अकेले अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकारों को गिराने के लिए 50 बार किया.
इस दौरान विपक्ष के कुछ सांसद अडाणी मुद्दे पर जांच की मांग को लेकर सदन में हंगामा करते रहे. राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने द्रमुक, तेदेपा और वाम दलों तथा शरद पवार की राकांपा जैसे दलों पर कांग्रेस के साथ गठबंधन करने पर भी सवाल उठाया और उन्हें याद दिलाया कि देश की सबसे पुरानी पार्टी ने अतीत में उनकी भी सरकारें गिरा दी थीं. अपने 90 मिनट के भाषण में पीएम मोदी ने कहा कि जो लोग आज विपक्ष में बैठे हैं उन्होंने तो राज्यों के अधिकारों की धज्जियां उड़ा दी थीं.
उन्होंने कहा, ‘जरा इतिहास उठा करके देख लीजिए, वो कौन पार्टी थी, वो कौन सत्ता में बैठे थे, जिन्होंने अनुच्छेद 356 का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया. 90 बार चुनी हुई सरकारों को गिरा दिया. कौन हैं वो, कौन हैं जिन्होंने किया, कौन हैं जिन्होंने किया, कौन हैं जिन्होंने किया.’ उन्होंने कहा, ‘केरल में आज जो लोग इनके साथ खड़े हैं जरा याद कर लीजिए… केरल में वामपंथी सरकार चुनी गई जिसे पंडित नेहरू पसंद नहीं करते थे. कुछ ही कालखंड के अंदर चुनी हुई पहली सरकार को घर भेज दिया.’
द्रमुक के सदस्यों से प्रधानमंत्री ने कहा कि तमिलनाडु में एमजीआर और करुणानिधि जैसे दिग्गजों की सरकारों को भी कांग्रेस ने गिराया. उन्होंने कहा, ‘एमजीआर की आत्म देखती होगी आप कहां खड़े हो.’ पीएम मोदी ने कहा कि 1980 में शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने लेकिन उनकी सरकार को भी गिरा दिया गया था और आज वो कांग्रेस के साथ खड़े हैं. उन्होंने कहा, ‘हर क्षेत्रीय नेता को उन्होंने परेशान किया.’ प्रधानमंत्री ने कहा कि एनटीआर की सरकार को तो तब गिराने का प्रयास किया गया जब अस्वस्थता की हालत में अमेरिका गए थे.
उन्होंने कहा, ‘ये कांग्रेस की राजनीति का स्तर था. अखबार निकाल कर देख लीजिए, हर अखबार लिखता था कि राजभवनों को कांग्रेस के दफ्तर बना दिए गए थे.’ उन्होंने कहा कि 2005 में झारखंड में राजग के पास ज्यादा सीटें थीं, लेकिन राज्यपाल ने संप्रग को शपथ के लिए बुला लिया था और 1982 में हरियाणा में भाजपा और देवीलाल की पार्टी के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन था, लेकिन उसके बावजूद राज्यपाल ने कांग्रेस को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया. उन्होंने कहा, ‘ये कांग्रेस का अतीत है और आज वह देश को गुमराह करने की बातें कर रहे हैं.’
अनुच्छेद 356 क्या है?
संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के मामले में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. अगर राष्ट्रपति, राज्य के राज्यपाल से एक रिपोर्ट प्राप्त करने पर या संतुष्ट है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें सरकार राज्य के संविधान के प्रावधानों के अनुसार काम नहीं कर सकती है.
1951 में पंजाब में पहली बार अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल किया गया था. इससे पहले, इस अनुच्छेद का बहुत बार (गलत तरीके से) इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1994 में एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ मामले पर अपने फैसले में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए सख्त दिशा-निर्देश स्थापित करने के बाद इसे सीमित किया गया था.
किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन तब लगाया जाता है जब:
–एक राज्य विधायिका राज्यपाल की इच्छा पर उस राज्य के राज्यपाल द्वारा निर्धारित समय के लिए मुख्यमंत्री के रूप में एक नेता का चुनाव करने में असमर्थ है.
–गठबंधन के टूटने से मुख्यमंत्री को सदन में अल्पसंख्यक समर्थन प्राप्त होता है और मुख्यमंत्री उस राज्य के राज्यपाल द्वारा निर्धारित समय के भीतर अन्यथा साबित करने में विफल/निश्चित रूप से विफल रहेगा.
सदन में अविश्वास प्रस्ताव के कारण विधानसभा में बहुमत का नुकसान
–युद्ध, महामारी, महामारी या प्राकृतिक आपदाओं जैसे अपरिहार्य कारणों से चुनाव स्थगित.
–राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट पर यदि कहा जाए, तो राज्य की संवैधानिक मशीनरी या विधायिका संवैधानिक मानदंडों का पालन करने में विफल रहती है.
यदि दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाता है, तो राष्ट्रपति शासन छह महीने तक जारी रह सकता है. इसे हर छह महीने में संसद की मंजूरी से अधिकतम तीन साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.
‘संविधान का मृत पत्र’
भारत के संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष भीमराव अंबेडकर ने अनुच्छेद 356 को ‘संविधान का मृत पत्र’ कहा था. संविधान सभा की बहस में, यह सुझाव दिया गया कि अनुच्छेद 356 का ‘राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग’ किया जा सकता है.
अम्बेडकर ने उत्तर दिया, ‘मैं भावनाओं को साझा करता हूं कि ऐसे अनुच्छेदों को कभी भी लागू नहीं किया जाएगा और वे एक मृत पत्र बने रहेंगे. यदि उन्हें लागू किया जाता है, तो मुझे उम्मीद है कि राष्ट्रपति, जो इन शक्तियों से संपन्न हैं, प्रांतों के प्रशासन को वास्तव में निलंबित करने से पहले उचित सावधानी बरतेंगे. मैं आशा करता हूं कि वह जो पहला कार्य करेंगे वह उस प्रान्त को, जिसने गलती की है, मात्र चेतावनी देगा, कि चीजें उस ढंग से नहीं हो रही हैं, जैसा कि संविधान में होना अपेक्षित था. यदि वह चेतावनी विफल हो जाती है, तो उसके लिए दूसरी बात यह होगी कि वह चुनाव का आदेश दे ताकि सूबे के लोग मामले को स्वयं सुलझा सकें. जब ये दोनों उपचार विफल हो जाते हैं, तभी वह इस अनुच्छेद का सहारा लें.’
(पीटीआई और विकिपीडिया से इनपुट्स के साथ)

 

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