चुनाव शहर की सरकार का: दावा किया जा रहा महिलाओं का सम्मान बढ़ाया, हकीकत में कमान पति- भाई- ससुर- जेठ के पास, यह कैसा आरक्षण

रणघोष खास. पूनम यादव


इन दिनों शहर में नगर परिषद के चुनावों की चर्चा हर गली-मौहल्ले में गूंजने लगी हैं। रेवाड़ी नप के चुनाव लंबे अरसे से लंबित थे जिन्हें लेकर कोर्ट में लम्बी सुनवाई भी चली है। 27 दिसंबर को मतदान के बाद शहर को नगर परिषद को पार्षद व चेयरमैन मिल जाएंगे।रोचक बात ये है कि इस चेयरमैन का चुनाव पार्षद नहीं बल्कि शहर के मतदाता ही करेंगे। इसका सभी स्वागत कर रहे हें। इस बार चेयरमैन की कुर्सी पर पिछड़े वर्ग की महिला बैठने जा रही है। वास्तुस्थिति यह है कि शहरों में जातिगत समीकरण बहुत कम असरदार रहते हैं। यहां के मतदाताओं का मिजाज विकास एवं एजेंडों से तय होता है। वैसे इस बार चेयरमैन के चुनावी समर में अनेक दिग्गज अपनी अपनी दावेदारी पेश करते हुए नजर आ रहे हैं। यहां हमें जागरूक मतदाता के तौर पर ये समझने की जरूरत है कि इस पद के लिए चुनाव लड़ रही महिला की पृष्ठभूमि क्या है?ऐसी भी बहुत सी महिलाएं चुनाव के लिए अपना नामंकन भरेंगी जिनके नामांकन से लेकर प्रचार-प्रसार तक का काम उनके पति,भाई,ससुर,जेठ या देवर ही देखेंगे। उनके चुनावी घोषणापत्र की रूपरेखा भी वहीं से तैयार होगी।बेशक कोई भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय पार्टी अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर उम्मीदवार खड़े करे लेकिन पुरुषवाद का प्रभाव उस पर दिखाई जरूर देगा। ऐसे में ये कैसे सम्भव होगा कि पिछड़े वर्ग की कोई ऐसी महिला सामने आए जिसे चुनाव लड़ने के लिए अपने परिवार के किसी पुरुष की मदद की जरूरत ना पड़े। क्या किसी महिला के पास रेवाड़ी शहर के विकास का खाका खुद तैयार करने की काबिलयत दिखाई देगी? आप देखते जाइए। चुनाव लड़ने वाली अधिकांश महिलाएं ऐसी होंगी जिनके परिवार का कोई ना कोई पुरुष राजनीति से सम्बंधित होगा और चेयरमैन की सीट महिला के लिए आरक्षित होने के कारण वो खुद चुनाव नहीं लड़ पा रहा होगा।ऐसे में हमें समझना होगा कि क्या इस तरह हम अपने समाज में महिला सशक्तिकरण की नींव रख  पाने में कामयाब हो पाएंगे?इसका जवाब तो साफ तौर पर ना में ही नज़र आता है। हम आज भी ऐसा समाज नहीं तैयार कर पा रहे हैं जो महिलाओं को उनका यथोचित सम्मान दे सके। हम नारी में देवी के स्वरूप की बात तो करते हैं लेकिन उसे मानव जितना आदर भी देने से हिचकते हैं।हमें शहर की नगर परिषद की चेयरपर्सन की दावेदार ऐसी ही महिलाएँ दिखाई देंगी जिनके पीछे किसी ना किसी पुरुष की राजनैतिक महत्वकांक्षा छुपी होगी।अगर ऐसा नहीं होता है तो ही हम सही मायने में लोकतांत्रिक समरसता व समानता की धारणा के अनुकूल वातावरण तैयार कर पाएंगे।आज के दौर में जब महिलाएं अंतरिक्ष की अनंत ऊँचाइयों को छू रही हैं तब कोई महिला अपने दम पर शहर की इस प्रतिष्ठित कुर्सी पर दावा पेश करे तो ही महिलाओं की सशक्त छवि सामने आ पाएगी। शहर के मतदाता ये देखने को उत्सुक हैं कि क्या नगर परिषद की शक्तिशाली कुर्सी पर बैठने वाली महिला वास्तव में शक्तिशाली ही होगी या फिर अपने परिवार के किसी पुरुष के साये में काम करने वाली कोई अबला स्त्री। अगर महिलाओं के उत्थान व सशक्तिकरण की परिकल्पना को साकार करना है तो प्रत्येक राजनीतिक दल व परिवार को इस दिशा में सकारात्मक पहल करनी ही होगी।

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