चुनाव शहर की सरकार का…..नामाकंन भरने के बाद वापस लेने वाला उम्मीदवार सबसे खतरनाक, मतदाता चालबाजियों से अलर्ट रहे

अगर किसी सामाजिक संगठन का प्रधान किसी उम्मीदवार के पक्ष में यह कहे कि समाज उसके साथ है समझ लिजिए वह समाज के लिए वायरस है

रणघोष खास. नगर निकाय चुनाव मैदान से


आमतोर पर छोटे से लेकर बड़े चुनाव में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो अचानक प्रकट होते हैं। बकायदा नामाकंन भरते हैं और एकाएक चुनाव लड़ने से मना कर देते हैं। या जानबूझकर नामाकंन भरने का नाटक करते हैं और जानबूझकर आवेदन में ऐसी गलती कर देते हैं जिससे योजना बद्ध तरीके से उसका नामाकंन रद्द हो जाए। समझ लीजिए वह चुनावी वायरस है।   दरअसल अधिकांश ऐसे उम्मीदवारों को जनहित से कोई लेना देना नहीं होता। वे छिपे एजेंडे के साथ आते हैं ओर पूरा होते ही गायब हो जाते हैं। इस दौरान वे किसी ना किसी माध्यम से जनता की भावनाओं से खेलने का खेल भी करते हैं। ऐसे उम्मीदवार किसी भी लिहाज से समाज हित में साबित नहीं हो सकते। क्या सोचकर वे चुनाव में उतरते हैं। जमकर प्रचार करते हैं। अचानक गायब हो जाते हैं। स्पष्ट है ये सीधे तौर पर जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं। कोई मजबूत प्रत्याशी पर दबाव बनाकर सेवा शुल्क वसूलने का काम करता है तो कोई अपने प्रभाव से बनाए गए वोट बैंक को शातिर दिमाग से किसी के हाथों बेचने का काम करते हैं। आमतौर पर कुछ सामाजिक संगठनों के प्रधान अपने समाज का ठेका लेकर किसी ना किसी उम्मीदवार के साथ सार्वजनिक तौर पर नजर आते हैं और यह कहना भी नहीं चूकते की समाज उनके साथ खड़ा है। लोकतांत्रिक प्रणाली में यह कैसे संभव है कि आप वोटों का ठेका लेकर अपने हितों को पूरा करें। इसलिए चुनाव में मतदाताओं को ऐसे किरदारों से अलर्ट रहना चाहिए। अगर कोई सार्वजिनक तौर पर यह कहे कि समाज उनके साथ है। वह कभी समाज का हितैषी नहीं हो सकता। जो नामाकंन भरकर योजना के तहत अचानक वापसी कर ले समझ लिजिए वह राजनीति में कोरोना की तरह ऐसा वायरस है जो सबसे पहले संपर्क में आने वालों को अपने निशाने पर लेता है। इसलिए शहर की मजबूत सरकार बनाने के लिए पूरी तरह से जागरूक रहिए। समझदारी दिखाइए बहकिए मत।

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