डंके की चोट पर : यदि 15 प्रतिशत से अधिक मत वाला जीतता है तो समझ जाइए हमारा लोकतंत्र खोखला हो चुका है

रणघोष खास. वोटर की कलम से

एक अच्छा लोकतंत्र उसके प्रतिनिधित्व से जाना जाता है। जब प्रत्येक नागरिक को एहसास होता है कि समाज को जिस ढंग से चलाया जा रहा है उसमें उसकी इच्छा शामिल है. यदि किसी भी चुनाव में  कोई उम्मीदवार 15 प्रतिशत से अधिक मत हासिल कर जीतता है तो क्या उसे जनता का वास्तविक प्रतिनिधि माना जा सकता है? इसीलिए भारतीय विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में अनुशंसा की थी कि जब तक किसी उम्मीदवार को डाले गए कुल वोटों तब 51 प्रतिशत मत प्राप्त हो उसे निर्वाचित नहीं माना जाना चाहिए. लेकिन एक अच्छे लोकतंत्र में उम्मीदवार को कुल पंजीकृत वोटों का 50 फीसदी से अधिक मत मिलना चाहिए। हम यहां हम बारबार कही जाने वाली बात दोहराना चाहते हैं  कि लोकतंत्र एक निरंतर चलने वाली यात्रा है जिसका गंतव्य नहीं होता। इसलिए हमें लोकतंत्रीकरण के स्तर पर गौर करना चाहिए। कई देशों में लोकतंत्रीकरण अन्य देशों के मुकाबले अधिक हुआ है। चुनाव का एक कड़वा सच यह भी स्वीकार करिए।आपके खिलाफ कोई शिकायत है तो कोर्ट जा सकते हैं  लेकिन इसमें बहुत वक्त गुजर जाता है। यदि यही शिकायत  स्थानीय बाहुबली के पास जाकर करता है तो वह निवारण दो दिनों में कर देता है। लिहाजा यहां बाहुबली को शिकायत करने वाला, सेवा देने वाला के रूप में देखता है। कायदे से यह सेवा राज्य को देनी चाहिए थी। मतदान करने वालों में एक वर्ग ऐसा भी है जो यह कहता है कि वे आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार को इसलिए वोट देते हैं क्योंकि वह उनकी जाति या धर्म का होता है। साथ ही, नेता भी इस तरह से दिखाते हैं कि उन्हें गलत मामलों में फंसाया गया है और वह दावा करते हैं कि उनके खिलाफ चल रहे मामले मामूली हैं। चुनाव में नेता अक्सर यह दावा करते हैं कि भारतीय दंड संहिता की धारा 144 का उल्लंघन करना गंभीर अपराध नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि  हमारा लोकतंत्र खोखला है या हम लोकतंत्र नहीं हैं या फिर हमारी पार्टियां अलोकतांत्रिक हैं। चुनाव के बहाने ही सही इस पर भी गंभीरता से बहस होनी चाहिए। हमें यह भी मान लेना चाहिए कि आज की पार्टियां लोकतांत्रिक नहीं हैं। मतदाता और प्रतिनिधियों के बीच किसी भी प्रकार का रिश्ता नहीं रह गया है। केवल उम्मीदवार को मतदाता से मतलब होता है. लेकिन कोई व्यक्ति तब तक उम्मीदवार नहीं बन सकता जब तक कि उसके सिर पर किसी पार्टी का हाथ हो।जब किसी व्यक्ति को टिकट मिल जाता है तो वह मतदाता से अधिक टिकट देने वाली पार्टी के प्रति वफादार होता है। मतदाता और प्रतिनिधि के बीच रिश्ते का होना हमारे लोकतंत्र की मुख्य समस्या है. उम्मीदवार का चयन पार्टी के सदस्यों में से ही होना चाहिए. यदि ऐसा होता है तो आज जिस तरह का पैसा बहाया जाता है वैसा पैसा नहीं बहाना पड़ेगा।

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