डंके की चोट पर : रणघोष का पीएम नरेंद्र मोदी को खुला पत्र

मोदी साहब क्या ये तीनों बिल किसान की मौत से बड़े हैं, हे अन्नदाता हमें माफ करना, हम पानी- पानी है..


रणघोष खास. प्रदीप नारायण


 आदरणीय मोदी जी,

                यह पत्र पत्रकार की दृष्टि से नहीं एक आम भारतीय होने के नाते लिख रहा हूं। रविवार सुबह साढ़े 6 बजे के करीब आसमान से कड़कड़ाती बिजली ने हमारी गहरी- गर्म नींद को एक झटके से उड़ा दिया। गर्जना इतनी तेज थी कि एक पल लगा भूकंप आ गया। बारिश के शोर ने राहत दी। दिमाग एकाएक किसान आंदोलन की तरफ घूम गया। खुले आसमान के नीचे सड़कों पर तंबुओं में रह रहे किसानों पर क्या बीत रही होगी। पानी इधर उधर से बहता हुआ जमीन पर बिछे उनके बिस्तरों को गीला कर चुका है। हजारों की संख्या में बड़े बुजुर्ग किसान किस परेशानी से गुजर रहे हैं यह शब्दों से बयां नहीं कर सकते। आखिर क्या हो गया हमारे देश को। मोदी जी दिल्ली की चारों सीमाओं पर आपके तीनों बिलों के खिलाफ धरने पर बैठे किसानों को  पिछले 35 दिनों से तारीख पर तारीख क्यों मिल रही है। क्या यह चीन या पाक सीमा विवाद है। जिसमें यूएनओ या अमेरिका के राष्ट्रपति की जरूरत पड़ेगी। देश की सीमा पर जब दुश्मन धोखे से हमला कर हमारे जवानों की शहादत लेते हैं तो हम आग बबुला होकर उनके घर में घुसकर उसे मुंह तोड़ जवाब देते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पुलवामा में ऐसा हुआ तो आपने दुश्मनों को मुंह तोड़ जवाब दिया। पूरा देश आपके साथ खड़ा हो गया। आप दुबारा मजबूत प्रधानमंत्री बन गए। इस पत्र में यह जिक्र इसलिए करना पड़ा पिछले एक माह में किसान आंदोलन में हमारे 35 से ज्यादा अन्नदाता अलग अलग वजहों से अपनी जान गंवा चुके हैं। इसे हम क्या माने। सामान्य- रूटीन की मौते। उम्र ज्यादा थी इसलिए चल बसे। किसी ने खुद की कनपटी पर गोली मारी तो किसी बुजुर्ग ने फांसी लगा ली। मौतों का यह सिलसिला जारी है। सोमवार को आपकी सरकार के मंत्री एक बार फिर किसान संगठनों के साथ मीटिंग रहे हैं। ऐसा लग नहीं रहा बात बनेगी। बनती तो मीटिंग नहीं होती। कड़ाके की ठंड, आसमान से बरसते पानी के बीच हजारों- लाखों किसानों की अब ज्यादा परीक्षा मत लिजिए। कोई बिल किसी भी किसान की मौत से बड़ा नहीं है। ये मौते नहीं देश पर किया गया वह गहरा जख्म है जो आपकी भारी भरकम बहुमत वाली ताकत के सामने कुछ समय के लिए छिपा लिया गया है। दरअसल आपके सिस्टम ने भी किसान के दर्द को रूटीन की तरह लिया हुआ है। वे भूल गए दिन-रात खेत में अपना हाड़-मास गलाकर खेती करता है किसान। धूप में तपता है, कीचड़ में सड़ता है, जाड़े में ठिठुरता है किसान। सूखा पड़ने पर अत्यधिक बरसात होने पर फसल बर्बाद होने पर सहता है किसान। हर परिस्थिति से तालमेल रखकर जीता है किसान।  ओर कितनी भी विपत्ति आ जाये जीने का संदेश देता है किसान। किसान देश के लिए पसीना बहाता है अगर वह कमजोर होगा तो देश की सीमाएं कमजोर होगी। अगर सीमाए कमजोर हुई तो देश कि सुरक्षा भी कमजोर रहेगी। अगर देश बचाना है तो किसान को बचाना जरूरी है। अगर किसान बचेगा तो उसका बेटा भी बचेगा। किसान मजबूत होगा तो उसका बेटा भी मजबूत होगा, बेटा बजबूत होगा तो वह सीमा पर जाकर लड़ेगा ओर दुश्मनों के छके छुड़ा कर देश को बचा सकेगा, इसलिए देश बचाना है तो किसान को बचाना जरूरी है। इसलिए इस आंदोलन को बारूद का ढेर बनने से बचा लिजिए। साफ मन से बड़ा दिल दिखाते हुए कुछ ऐसा करिए हमारा किसान मुस्कराता गर्व के साथ अपने घर को लौट जाए जहां खेती उसके इंतजार में आंसू बहा रही है।

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