रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण
पिछले कुछ दिनों से जयश्रीराम, जयसियाराम, राम राम बोलने से शरीर ओर दिमाग मौजूदा माहौल में स्वस्थ्य ओर सुरक्षित महसूस कर रहा है। सोमवार को अयोध्या में श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में चल रहे महोत्सव में भी अपने हिसाब से डुबकी लगाईं। अभी तक तो ठीक चल रहा है। बस एक डर सता रहा है कहीं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने पलटकर मेरा हिसाब मांग लिया तो क्या होगा। जिंदगी का एक भी खाता ऐसा नहीं है जो राम के चरित्र, त्याग ओर मर्यादा के आस पास भी मेल खाता हो। श्रीराम एक आदर्श पुत्र कहलाए। मेरी तो माता पिता से आए दिन प्रोपर्टी, काम धंधे, रहन सहन के तौर तरीकों को लेकर झगड़ा रहता है। राम पिता दशरथ के वचन को पूरा करने के लिए 14 साल वनवास गए। मैने तो एक दिन भी ठीक ढंग से अपने पिता से बात नहीं की। राम का अपने तीनों भाईयों से अटूट स्नेह था। यहां तक की छोटे भाई भरत को राजपाठ देने में एक पल भी नहीं लगाया। यहां मेरा भाईयों से माता- पिता को साथ रखने, सेवा करने, प्रोपर्टी में हिस्सा ओर लेन देन को लेकर रोज झगड़ा होता है। नौबत मारपीट व एक दूसरे की जान लेने तक पहुंच जाती है। पुलिस कोर्ट कचहरी में आधे मामले तो इसी वजह से चल रहे हैं। राम अपने गुरु के प्रति हमेशा आज्ञाकारी एवं योग्य साबित हुए। मैने तो गुरु जी को मास्टरजी, टीचर्स, अध्यापक, सर से ज्यादा कोई हैसियत नहीं दी। यहां तक की डॉटने या पीटने पर उनकी शिकायत तक दर्ज करवा दी। राम ने हमेशा सत्य बोला। मेरी तो दिनचर्या आंख खुलने से लेकर सोने तक छल कपट, बेईमानी एवं मक्कारी में गुजर जाती है। यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि सच कब किस बात पर बोला था। राम जिस स्थिति में रहे ईमानदार एवं स्वयं के प्रति जवाबदेह रहे। मैने तो जब व्यवसाय शुरू किया तो झूठ चालाकी से घटिया व मिलावटी सामान बेचा। नौकरी पर रहा तो एक भी फाइल को बिना सेवा शुल्क आगे बढ़ने नहीं दिया। राम समानता- मानवता ओर इंसानियत के परिचायक रहे। शबरी के झूठ बेर खाए तो वानर को अपनी सेना बनाया। जितने समय वनवास में रहे सभी से स्नेह रखा। मैने तो बिना स्वार्थ के रिश्ते नहीं बनाए। समाज में रहकर मतलब के हिसाब से दूरियां बनाकर रखी। अगर गलती से सफाई करने वाला कर्मचारी छू लेता तुरंत स्नान कर राम राम करता हुआ उसे नफरत की दृष्टि से देखता हुआ निकल जाता। राम ने पत्नी सीता के अलावा किसी पराई नारी पर अलग दृष्टि नहीं रखी। मेरा चरित्र तो इतना दागदार था की कई बार पत्नी को पुलिस कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। दहेज, बात बात पर मारपीट कर तलाक लेकर शादियां रचाता रहा। राम एक महान राजा थे। उन्होंने दया, सत्य, सदाचार, मर्यादा, करुणा और धर्म का पालन किया। राम ने समाज के लोगों के सामने सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया था। इसी कारण से उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। मेरी तो कहानी एक दम उल्टी है। गांव के सरपंच से लेकर विधायक, सांसद बनने के लिए पहले समाज को धर्म व जाति में बांटा। झूठे वायदे किए। तरह तरह के सपने दिखाए। उनका वोट लेने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया। हिंसा करवाईं। सत्ता में आने के बाद सबकुछ भूलकर धन दौलत व संपत्ति जुटाने में लग गया। कुल मिलाकर राम राम बोलकर, चिल्लाकर, शोर मचाकर, तिलक लगाकर, बड़ी बड़ी बातें करके कुछ समय तक अपने मूल चरित्र व क्रिया कर्म को छिपा सकता हूं। अगर गलती से श्रीराम ने आमने सामने बैठकर जीवन यात्रा का हिसाब मांग लिया तो क्या होगा। यह बताने की जरूरत नहीं है। इसलिए बेहतर है 22 जनवरी के बहाने से ही सही राम को मानने के साथ साथ उनके व्यक्तित्व को भी धीरे धीरे आत्मसात करना भी शुरू कर दें। ऐसा कर पाए तो यहीं राम नाम का असली सम्मान ओर जीवन की आनंदमय दीवाली होगी।