दक्षिण हरियाणा की राजनीति को समझने के लिए इस लेख को जरूर पढ़े

 राव इंद्रजीत भविष्य की राजनीति का खाका बना गए


 विरोधी मौजूदा हालात को सबकुछ समझ बैठे


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

 हरियाणा में मुस्लिम बाहुल्य नूंह जिले की जमीन से फैली सांप्रादयिक हिंसा ने 2024 में होने जा रहे छोटे बड़े चुनाव की स्क्रिप्ट लिख दी है। इसमें अधिकतर डॉयलाग लोकसभा व हरियाणा विधानसभा चुनाव में एक जैसे रहेंगे। मतलब साफ है कि लोकसभा के साथ ही हरियाणा में चुनाव हो सकते हैं। मुख्यमंत्री मनोहरलाल समेत अनेक भाजपा के शीर्ष नेता समय समय पर इसका इशारा भी कर चुके हैं। उधर केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के बयान को भाजपा में उनके विरोधी सबसे बड़ी गलती मानकर इतरा रहे हैं जबकि राव  के लिए यह बयान उनकी  भविष्य की राजनीति का खाका है। राव अपने राजनीति जीवन में ऐसा कई बार कर चुके हैं और उनके विरोधी उनके जाल में फंसकर वहीं उलझकर रह जाते हैं।

 राव अपनी राजनीति में पक्ष और विपक्ष की मानसिकता को साथ लेकर चलने की महारत रखते हैं। वे ऐसा करते भी आ रहे हैं और सफल भी रहे।  इसलिए जब वे सत्ता में रहते हैं तो अपनी सरकार पर  एकाएक इस कदर हमला कर बैठते हैं मानो वे जल्द ही कुर्सी छोड़कर विपक्ष के साथ नजर आएंगे । इसके बाद वे कुछ समय के लिए शांत रहते हैं ओर फिर सत्ता के साथ नजर आते हैं। राव का ऐसा  करने के पीछे सीधे तौर पर भविष्य की राजनीति में आने वाले बदलाव में सभी दरवाजों को खोलकर चलना है। कांग्रेस में रहकर राव इस तरह का कई बार प्रयोग कर चुके हैं जिसमें वे हमेशा सफल रहे और अवसर देखकर भाजपा में अपने भविष्य की राजनीति को मजबूत कर गए।  2014 में भाजपा में आते ही उन्होंने इसी फार्मूले पर  हरियाणा में सीएम की दावेदारी के लिए भाजपा विधायकों का अलग से खेमा बना लिया और  अहसास कराकर पीछे हट गए। उसके  बाद वे समय समय पर भाजपा हाईकमान के कुछ हिस्सों पर तौर तरीकों पर हमला करते रहे। राव हमला करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखते थे कि अगर पीछे भी हटना पड़े तो कोई नुकसान नहीं हो। इसकी वजह भी साफ है राव इंद्रजीत अपने समर्थकों की ताकत को पार्टी से ज्यादा मजबूत मानते हैं। भाजपा में आने से पहले नूंह जिले में राव का अपना निजी जनाधार रहा है। उनके परिवार की राजनीति में मुस्लमान को अच्छी खासी  तव्वजो मिलती रही है। बेशक राव पिछले 9 सालों से भाजपा में  हैं लेकिन नूंह में उनकी पकड़ कभी कमजोर नहीं रही। कांग्रेस की टिकट पर वे गुरुग्राम से दो बार सांसद बने और नूंह से काफी अच्छा वोट समर्थन भी उन्हें मिला। इस तमाम पहुलओं को  ध्यान में रखते हुए राव ने नूंह हिंसा के दो दिन बाद इस पूरे घटनाक्रम पर हिंदू संगठनों की मंशा पर ही सवाल खड़े कर दिए थे कि ताली एक हाथ से नहीं बजी है। जिसकी वजह से वे धर्म विशेष की राजनीति करने वालों के निशाने पर आ गए । उनके विरोधियों  के लिए राव का यह बयान रामबाण की तरह था  लिहाजा उसे चलाने में किसी ने देरी नहीं दिखाईं। मौजूदा हालात में पहले की तरह राव शुरूआती चरण में अपने बयानों के बाद घिरते एव कमजोर नजर आते हैं लेकिन एक समय बाद बदलते राजनीति घटनाक्रम के चलते यही बयान उनके लिए ही रामबाण का काम कर जाता है। 2021 में किसान आंदोलन के समय पटौदा में हुई इंसाफ मंच की जनसभा में राव ने किसानों का समर्थन कर एक तरह से अपनी पार्टी पर हमला कर दिया था और किसानों ने उनकी रैली में कोई अड़चन तक नहीं डाली। आज राव अपने उस बयान से फायदे मेँ और भाजपा किसानों का बिल रद्द करने के बाद भी अभी तक अच्छा खासा नुकसान उठा रही है। भविष्य की राजनीति में राव को अगर नूंह की तरफ देखना पड़ा तो भाजपा से ज्यादा वे निजी तौर पर मजबूत नजर आएंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि समर्थकों के लिए राव ही उनकी पार्टी और विचारधारा है। इसलिए राव के नूंह हिंसा को लेकर दिए बयान से भाजपा व हिंदू संगठनों का तबका नाराज आया है समर्थक नहीं। कुल मिलाकर राव इंद्रजीत का यह बयान आवेश में आकर नहीं सोची समझी राजनीति के तहत दिया गया है जिसके वे कुशल और सफल खिलाड़ी रहे हैं। अब  देखना यह है कि उनका यह बयान आगे की राजनीति में कितना फायदा पहुंचाता है या उलटा पड़ सकता है। 

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