दैनिक रणघोष में खास

मेरे राम, सबके श्रीराम


रणघोष खास. शैलेंद्र

भगवान श्रीराम का नाम जैसे ही जुबां पर आता है, सबसे पहला ख्याल जो मन में आता है वो है मेरे राम, सबके श्रीराम। बचपन में रामानंद सागर के द्वारा प्रस्तुत रामायण के जरिए मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम से हुआ पहला परिचय आज तक जहन में बरकरार है। आज भी जब बात श्रीराम की होती है तो उनके रूप में एक ऐसा चरित्र उभकर आंखों के समक्ष खड़ा हो जाता है जो जाति, धर्म और संप्रदाय की संकीर्ण सीमाओं से परे जन-जन के मन तक अपनी पहुंच रखता है। श्रीराम केवल भारत ही नहीं बल्कि समूची दुनियाभर में आदर्श पुरूष के रूप में स्थापित है और थाईलैंड, इंडोनेशिया,श्रीलंका,कम्बोडिया आदि देशों में तो यह भारत की तरह पूजनीय है। धर्म की बात करें तो श्रीराम केवल भारतवासियों या सिर्फ हिन्दुओं के मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं हैं, बल्कि बहुत से देशों, जातियों जो कि भारतीय नहीं है, के लिए भी मर्यादा पुरुष के रूप में स्थापित है और सैकड़ों सालों से प्रेरणा का केंद्र बने हुए हैं। सीधे शब्दों में कहें तो रामायण में जो मानवीय मूल्य दृष्टि सामने आई, वह देशकाल की सीमाओं से परे है और वह उन तत्वों को प्रतिष्ठित करती है, जो केवल पढ़े-लिखे लोगों की चीज न रहकर लोकमानस का अंग बन गई।

इंडोनेशिया की बात करें तो एक मुस्लिम राष्ट्र होने के बावजूद वहां के नागरिक रामलीला का मंचन करते हैं और उनके द्वारा किया जाने वाला मंचन भारत से कहीं बेहतर और शास्त्रीय कलात्मकता, उच्च धार्मिक आस्था के साथ किया जाता है। ऐसा इसलिये संभव हुआ है कि श्रीराम मानवीय आत्मा की विजय के प्रतीक महापुरुष हैं, जिन्होंने धर्म एवं सत्य की स्थापना करने के लिये अधर्म एवं अत्याचार को ललकारा। इस तरह वे अंधेरों में उजालों, असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई के प्रतीक बने। यकीनन श्रीराम हमेशा से न केवल भारत के लिये बल्कि दुनियाभर के लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। जहां तक बात भारत विशेष की है तो श्रीराम भारत के जन-जन के लिये एक संबल हैं, एक समाधान हैं, एक आश्वासन हैं निष्कंटक जीवन का, अंधेरों में उजालों का। श्रीराम का नाम भारत की संस्कृति एवं विशाल आबादी के साथ-साथ दर्जनभर देशों के लोगों की चेतन-अचेतन अवस्था में समाया हुआ है। भारत जिसे आर्यावर्त भी कहा गया है, उसके ज्ञात इतिहास के प्रथम राष्ट्रपुरुष श्रीराम ही हैं, जिन्होंने सम्पूर्ण राष्ट्र को उत्तर से दक्षिण, पश्चिम से पूर्व तक जोड़ने का काम किया था। दीन-दुखियों का ख्याल करना और सदाचारियों की दुराचारियों एवं राक्षसों से रक्षा श्रीराम ने ही की थी। जब-जब जरूरत पड़ी उन्होंने सबल आपराधिक एवं अन्यायी ताकतों का दमन किया। सर्वोच्च लोकनायक के रूप में उन्होंने जन-जन की आवाज को सुना और राजतंत्र एवं लोकतंत्र में सदैव ही जन-गण की आवाज को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। श्रीराम ने ऋषि-मुनियों के स्वाभिमान एवं आध्यात्मिक स्वाधीनता की रक्षा कर उनके जीवन, साधनाक्रम एवं भविष्य को स्वावलम्बन एवं आत्म-सम्मान के प्रकाश से आलोकित किया। इस मायने में श्रीराम राष्ट्र की एकता के सूत्रधार एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रेरक है। यहीं कारण है कि करीब 500 सालों के संघर्ष के बाद अयोध्या नगरी में स्थापित भव्य राम मंदिर इतिहास में लोकतंत्र के लिए भी एक पवित्र स्थल के रूप में अपनी पहचान बनायेगा।

कबीर की पंक्तियों पर गौर करें तो उन्होंने कहा था कि आदि श्रीराम वह अविनाशी परमात्मा है जो सबके सृजनहार व पालनहार है। जिसके एक इशारे पर धरती और आकाश काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू है।

एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा,

एक राम का सकल उजियारा, एक राम जगत से न्यारा।।

अब यदि बात श्रीराम के द्वारा स्थापित मूल्यों की बात करें तो उन्होंने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता, यहां तक कि पत्नी तक का साथ भी छोड़ा। श्रीराम का परिवार सदियों से आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता आ रहा है। रघुकुल में जन्मे श्रीराम ने सदैव कुल की परंपरा प्रान जाहुं बरु बचनु न जाई का मान रखा और उनके वचन और कर्म को आज तक अनुसरण किया जाता है। श्रीराम हमारी अनंत मर्यादाओं के प्रतीक पुरुष हैं इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से पुकारा जाता है। हमारी संस्कृति में मेरी समझ से कोई दूसरा चरित्र नहीं है जो श्रीराम के समान मर्यादित, धीर-वीर, न्यायप्रिय और प्रशांत हो। वाल्मीकि के श्रीराम लौकिक जीवन की मर्यादाओं का निर्वाह करने वाले वीर पुरुष हैं। उन्होंने लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध किया और लोक धर्म की पुनःस्थापना की। लेकिन वे नील गगन में दैदीप्यमान सूर्य के समान दाहक शक्ति से संपन्न, महासमुद्र की तरह गंभीर तथा पृथ्वी की तरह क्षमाशील भी हैं। वे दुराचारियों, यज्ञ विध्वंसक राक्षसों, अत्याचारियों का नाश कर लौकिक मर्यादाओं की स्थापना करके आदर्श समाज की संरचना के लिए ही जन्म लेते हैं। आज ऐसे ही स्वस्थ समाज निर्माण की जरूरत है।

आज के समय में यदि श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन और कालखंड का अध्ययन करें तो दिखाई पड़ता है कि उनका सम्पूर्ण जीवन विलक्षणताओं एवं विशेषताओं से ओतप्रोत है, प्रेरणादायी है। उन्हें अपने जीवन की खुशियों से बढकर सदैव ही लोक जीवन की चिंता थी, तभी उन्होंने अनेक तरह के त्याग के उदाहरण प्रस्तुत किये। राजा के रूप में श्रीराम के इन्हीं आदर्शों के कारण ही आज भी भारत में उस रामराज्य की कल्पना की जाती है जिसे प्रभु श्रीराम द्वारा स्थापित किया गया था। समाज की बात करें तो श्रीराम के बिना आर्दश भारतीय समाज की कल्पना भी कर पाना संभव नहीं है। उनके इसी प्रभाव का नतीजा है कि आज जब श्रीराम मन्दिर के रूप में एक शक्ति एवं सिद्धि स्थल बनने जा रहे है तो उनकी यह उपस्थिति भी देश-दुनिया में सशक्त एवं सकारात्मक वातावरण का निर्माण कर रही है। जिस तरह की ऊर्जा का संचार श्रीराम मंदिर को लेकर देखने को मिल रहा है उससे तो यही प्रतीत होता है कि एक बार फिर से श्रीराम इस पावन मंदिर के माध्यम से जीवनमूल्यों का प्रवाह मानवजाति के बीच करेंगे।

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