डंके की चोट पर : इस देश में पांखड- नाटक को देख आइने का वजूद भी खतरे में..

Pardeep ji logoरणघोष खास. प्रदीप नारायण

इन दिनों देश में आइनों को खुद पर शर्म आ रही है। वे जिसका चेहरा दिखाते हैं पल झपकते ही दूसरा नजर आने लगता है। आइनों ने आपस में पता लगाया तो असलियत सामने आईं। इंसान सुबह उठते ओर सोते समय पांखड ओर नाटक का लेप करता है। ऐसा करने से उसका मूल चरित्र छिप जाता है और वहीं नजर आता है जिससे उसके मंसूबे आसानी से पूरे हो जाए। संसद से सड़क पर जो नजारा देख रहे हैं दरअसल पूरी तरह पांखड ओर नाटक की ही शानदार झलक है। एक दूसरे की  इज्जत- मर्यादा- सम्मान को  जबरदस्ती छिना जा रहा है। बस ना चले तो उछाला जा रहा है। ऐसा लग रहा है इंसानी समाज अब जंगलों में रह रहे जानवरों की तरह निवस्त्र होकर एक दूसरे का शिकार करने की फिराक में घात लगाए बैठा है। दोनों में महज एक अंतर बचा है। जानवर ना अपना चरित्र बदलता है ना चेहरा। उसके शरीर पर  छिपाने को कुछ नहीं है। इससे उलट इंसान ऊपर से नीचे तक खुद को ढक कर रखता है लेकिन अंदर से जानवर की तरह है। संभोग व शरीर की साफ सफाई (स्नान) करते समय जरूर कुछ समय के लिए अपनी असलियत में रहता है।  जानवर से तो उसकी प्रवृति समझकर बचा जा सकता है। इंसानी जमात से बच पाना आसान नहीं है। समाज में साथ रहते हुए भी जाति- धर्म के नाम पर कब शिकार हो जाए पता ही नहीं चलेगा। सत्संग करने वाले संसद में पहुंच रहे हैं ओर सड़क पर लड़ने वाले सड़ रहे हैं। धर्म- राजनीति अब एक ही थाली में भोजन करती हैं। पढ़ाई- नौकरी व व्यवसाय के सवाल पर माता-पिता से झगड़ने वाला युवा जाति- धर्म का झंडा लेकर चिल्ला रहा है। अलग अलग वजहों से हो रही हिंसा में बह रहे से खून से नेताओं का शरीर हिल्लोरे मार रहा है तो राजनीति राक्षसों की तरह ठहाके लगा रही है। अफसरशाही तमाशीन होकर ताली बजा रही है। मीडिया के एक बड़े तबके ने खुद को किन्नर बिरादरी में शामिल कर लिया है। खुशी के मौके पर दोनों की प्रस्तुति देखने लायक होती है।  ऐसे में अब खुद को बचाने का एक ही उपाय बचा है। अपने आपको जवाबदेह बना लो। मानवता-इंसानित को कसर कर पकड़ लो। इंसान बचे ना बचे इंसानियत जरूर बच जाएगी। आइने का वजूद भी बच जाएगा।   

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