नताशा नरवाल मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी- प्रदर्शन करना आतंकवाद नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्र नताशा नरवाल को साल 2020 के दंगा ‘‘साजिश’’मामले में मंगलवार को जमानत दे दी और कहा कि आतंकवाद संबंधी कानून को ‘‘लापरवाही’’ से लागू नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि प्रदर्शन करने का अधिकार तथा आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा धुंधली हो रही है और अगर इस मानसिकता को बल मिला तो यह ‘‘लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा।’’ न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने छात्रा को 50 हजार के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की दो जमानतों पर जमानत दी। कोर्ट ने इस मामले में दो छात्र कार्यकर्ताओं को भी जमानत दी। छात्रा को राहत देते हुए कोर्ट ने कहा,‘‘ ऐसा लगता है कि सरकार ने असहमति को दबाने की अपनी बेताबी में प्रदर्शन करने का अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा धुंधली कर दी तथा अगर इस मानसिकता को बल मिला है तो यह ‘‘लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा। ’’ कोर्ट ने कहा कि भड़काऊ भाषण, चक्का जाम आयोजित करना और महिलाओं को भड़काने संबंधी आरोप दिखाते हैं कि उसने प्रदर्शन आयोजित करने में हिस्सा लिया मगर ऐसा साफ आरोप नहीं हैं कि उसने हिंसा भड़काई। गौरलतब है कि नरवाल को मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था। उसे अपना पासपोर्ट जमा कराने और निचली अदालत की इजाजत के बिना देश नहीं छोड़ने या अभियोजन के गवाहों से संपर्क नहीं करने और साक्ष्यों से छेडछाड नहीं करने के निर्देश दिए गए हैं। बता दें कि यह मामला दंगा भड़काने के लिए कथित ‘‘साजिश’’ से जुड़ा है, जिसमें पिछले वर्ष उत्तर पूर्व दिल्ली में फरवरी में 53 लोग मारे गए थे और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। इस मामले में नरवाल के अलावा 17अन्य लोग आरोपी हैं। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरोप पत्र और अभियोजन द्वारा एकत्र की गई सामग्रियों और जिसका उन्होंने जिक्र किया है ,उस पर आधारित इस मामले में पहली नजर में नरवाल के खिलाफ गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धारा 15(आतंकवादी गतिविधियां),17(आतंकी गतिविधियों के लिए धन एकत्र करने के लिए दंड) अथवा 18 (साजिश के लिए दंड) के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

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