नानी बीमारी थी इसलिए मां स्कूल नहीं देख पाईं, आज भी पापा के साथ मजदूरी कर हमें पढ़ा रही है

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राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बावल की छात्राएं बता रही हैं


WhatsApp Image 2021-04-06 at 3.30.54 PMरणघोष खास. सुलमिता की कलम से


मेरा नाम सुलमिता है। पिताजी का नाम विजय सिंह एवं माता जी का नाम ऊषा देवी है। मै 10 की छात्रा हूं। पापा मुश्किल से 7 वीं ही पढ़ पाए तो मम्मी स्कूल हीं नहीं देख पाईं। मम्मी का जीवन कई कठिनाईयों से होकर गुजरा। जब उसने होश संभाला तो नानी को बीमार ही देखा। इसलिए मेरी मम्मी चाहते हुए भी स्कूल नहीं जा पाईं। वह बेहद कम उम्र में पारिवारिक जिम्मेदारियों को संभालती चली गईँ। उसे नहीं पता बचपन क्या होता है। घर के हालात को देखते हुए मम्मी की जल्द ही शादी कर दी गईं। पापा मजदूरी करते थे। उसके बाद मां भी घर के हालातों को देखते हुए मजदूरी करने लगी। मेरे तीन बड़े भाई है। मेरी एक बड़ी बहन की बीमारी के चलते मृत्यु हो गईं। मेरे दोनों भाईयों की शादी पापा ने इधर उधर से कर्ज लेकर की। हमारी पढ़ाई और घर को चलाने के लिए पापा ने पहले भी  लोगों से उधार  लिया हुआ था जिसे आज तक मजदूरी करके किसी तरह चुका रहे हैँ। शरीर कम काम करने लगा तो उन्होंने किश्त पर ऑटो खरीद लिया। एक किश्त चुकाने के बाद उन्होंने मजबूरी में उसे दूसरे को दे दिया। बेचते समय यह बात हुई थी कि वह उनकी एक किश्त जमा कराएगा लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। बाद में इस पर विवाद हो गया। कोर्ट के आदेश पर पापा को 16 हजार 500 रुपए जुर्माना भुगतना पड़ा। मम्मी घर का काम करके मजदूरी पर चली जाती है। वह बीमार भी रहती है। हम भाई बहन पढ़ाई के साथ जो मदद कर सकते हैं वह करते हैं। मेरी मम्मी- पापा पढ़ाई को लेकर जो भी खर्चा आता है किसी ना किसी तरह से इंतजाम कर देते हैं। मै अंत में सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि जीवन में कामयाब होना बड़ी बात नहीं है अच्छे इंसान बनकर किसी लक्ष्य को हासिल करना ही असली जीवन की सफलता है। हम नमन करते हैँ अपने स्कूल प्रबंधन एवं  दैनिक रणघोष को जिन्होंने हमें पढ़ाई के साथ साथ माता- पिता की आंखों से जिंदगी की हकीकत से भी रूबरू करा दिया।

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