ये आज की तारीख में भी ना केवल नज़ीर है बल्कि बेहद साहसिक फैसला, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री के खिलाफ सुनाया गया था. कौन सोच सकता था कि प्रधानमंत्री के खिलाफ भी कोई अदालत फैसला सुना सकती है और उसे अदालत में बुला सकती है. लेकिन ऐसा हुआ. ऐसा करने वाले न्यायाधीश का नाम था जस्टिस जगमोहन सिन्हा. जिन्होंने 12 जून 1975 को भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनाया गया था.
इस मुकदमे में एक ओर थीं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और दूसरी ओर रायबरेली के 1971 के चुनाव में उनसे हारने वाले राजनारायण. फैसला इलाहाबाद के हाईकोर्ट के जज जगमोहन सिन्हा ने सुनाया. फैसले से पहले सिन्हा पर तमाम दबाव डाले गए लेकिन वो टस से मस नहीं हुए.
एक प्रधानमंत्री को कोर्ट में बुलाना. उसके बाद 05 घंटे से ज्यादा उनसे पूछताछ करना छोटी बात नहीं थी. उस समय देशभर में इस केस को लेकर जबरदस्त बहस चल रही थी. 12 मई, 1920 को जन्मे जगमोहन लाल सिन्हा 1970 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए थे.
जगमोहन लाल सिन्हा के जीवन में यह केस सबसे बड़ा केस रहा. जगमोहन लाल सिन्हा का निधन 20 मार्च, 2008 को हुआ.
जज सिन्हा ने कहा कि इंदिरा के आने पर कोई खड़ा नहीं हो
राजनारायण की ओर से इस केस को लड़ रहे थे मशहूर वकील शांति भूषण. उन्होंने लिखा, “इंदिरा गांधी को अदालत कक्ष में बुलाने से पहले उन्होंने भरी अदालन में ऐलान किया कि अदालत की परंपरा है कि लोग तभी खड़े हों जब जज अदालत के अंदर घुसे. इसलिए जब कोई गवाह अदालत में घुसे तो वहां मौजूद लोगों को खड़ा नहीं होना चाहिए.”