पीएम नरेंद्र मोदी पर विशेष

अध्यात्म की राह ने बनाई युग प्रवर्तक की छवि


रणघोष खास. डॉ. संजय शर्मा, भाजपा मीडिया प्रमुख हरियाणा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यानि की धार्मिक आस्था के प्रति समर्पण का एक बड़ा उदाहरण। ऐसा उदाहरण जिसने देश को धार्मिक आस्था के एक सूत्र में पिरोया। अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को अपने साथ लिया। उनकी सोच, व्यवहार और काम में हर जगह अध्यात्म की झलक नजर आती है। अध्यात्म की राह अपनाकर ही वे दुनिया में ताकतवर प्रधानमंत्री के रूप में उभरे हैं। आज दुनिया का हर देश उनके काम को सेल्यूट करता है। अपने देश में ही नहीं, बल्कि बाहरी देशों में जाकर भी प्रधानमंत्री अध्यात्मक को जीवन जीने की राह बताते हुए वहां के राष्ट्र प्रमुखों को अपनी ओर आकर्षित किया। गुजरात के वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले से लेकर दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं में शुमार होने तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा बड़ी रोचक और प्रेरणादायी रही है। कहते हैं बचपन एक इमारत की नींव जैसा होता है। नींव जितनी मजबूत हो, इमारत उतनी ही उपर जा सकती है। भारत के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यात्म, सामाजिक और संघ प्रचारक से लेकर मुख्यमंत्री तथा प्रधानमंत्री बनने तक की प्रेरणादायक कहानी भी कुछ ऐसी ही है। दूसरे देशों के प्रमुखों को भी उन्होंने गंगा आरती की तरह तमाम धर्म-कर्म के स्थल दिखाकर भारत की कला, संस्कृति, पौराणिकता से रूबरू कराया। घंटों तक गंगा आरती में शामिल होने वाले जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे (अब इस दुनिया में नहीं) भी पीएम मोदी के सदा मुरीद रहे। इसी तरह से अन्य राष्ट्र अध्यक्षों ने भी भारत की सांस्कृतिक विरासत का लोहा माना है। धर्म और आस्था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एजेंडे में प्रमुख रहते हैं। वे इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि धर्माे रक्षति रक्षितः। इसका अर्थ है-हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा। धार्मिक आस्था उनमें बचपन से ही भरी है। हर काम की शुरुआत वे धर्म को नमन करके करते हैं। प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचकर भी वे आज भी तीज-त्योहारों को पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। यहां तक कि वे 9 दिन तक नवरात्रों के व्रत भी रखते हैं।

अगर बात सिख भाई-बहनों की आस्था को लेकर हो तो पीएम मोदी ने दिखाया कि भारत में धार्मिक विरासत कितनी महान है। गुरू नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व को दुनिया ने मोदी राज में धूमधाम से मनते देखा। देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का केंद्र व गुरू नानकदेव से जुड़े आस्था के इतने पवित्र तीर्थ स्थल को पाकिस्तान में जाने से नहीं बचाया जा सका था। लेकिन पीएम मोदी की प्रतिबद्धता की वजह से सिख समुदाय की करतारपुर साहिब जाने की दशकों पुरानी इच्छा पूरी हुई। हाल ही में जिस तरह से गुरू ग्रंथ साहिब के पवित्र सरूपों को युद्धाग्रस्त अफगानिस्तान में बड़ी श्रद्धा के साथ वापस लाया गया उससे पूरा भारत चमत्कृत है।

दिव्य राम मंदिर का भव्य शिलान्यास

प्रधानमंत्री की श्रीराम में आस्था पर चर्चा की जाए तो खुद पीएम मोदी ने 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण की नींव रखी। इसी के साथ देश-विदेश के करोड़ों भारतीयों की सदियों पुरानी आस को उन्होंने पूरा किया। तब मोदी ने कहा था श्रीराम का मंदिर हमारी संस्कृति का आधुनिक प्रतीक बनेगा, हमारी शाश्वत आस्था का प्रतीक बनेगा, हमारी राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनेगा और ये मंदिर करोड़ों-करोड़ लोगों की सामूहिक संकल्प शक्ति का भी प्रतीक बनेगा। ये मंदिर आने वाली पीढ़ियों को आस्था, श्रद्धा और संकल्प की प्रेरणा देता रहेगा। वाराणसी से सांसद बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने बेहतर सड़कों और व्यापार सुविधा केंद्रों का निर्माण, गंगा घाटों का कायाकल्प, शहर में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण, स्वच्छ गंगा और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर एक विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में बनाकर वाराणसी का कायाकल्प करना कोई छोटी बात नहीं।

मां से मिला ईमानदारी का संस्कार

साधारण से असाधारण बनने की यात्रा में नरेंद्र मोदी की माता जी का बहुत बड़ा योगदान है। मां के दिये संस्कारों, अनुशासन ने मादी को इतना ताकतवर बनाया कि आज दुनिया भारत की तरफ देख रही है। 2001 में जब मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले वे अपनी मां का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे तो उनकी मां ने कहा था, मुझे नहीं मालूम कि मुख्यमंत्री क्या करता है, लेकिन मुझसे वादा करो कि तुम कभी रिश्वत नहीं लोगे-यह पाप कभी नहीं करोगे। नरेंद्र मोदी ने अपनी मां को कभी निराश नहीं किया। वास्तव में उनके ‘‘हूं खातो नथी खावा देतो नथी’’(न तो मैं रिश्वत लेता हूं और न ही मैं दूसरों को ऐसा करने दूंगा) की नीति से भ्रष्टाचारी डरते है और देश की जनता का उनमें अटूट विश्वास बना। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने कहा था, ‘‘ना खाउंगा और ना खाने दूंगा’’ भी एक मुहावरा बन गया जो लोगों की जुबान पर सुना जा सकता है।

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव व सामाजिक जीवन

 नरेंद्र मोदी की विराट छवि बनने की शुरुआत उनके मात्र 8 साल की उम्र में शुरू हो गई थी, जब उन्होंने आर.एस.एस. के युवाओं की स्थानीय बैठक में भाग लेना शुरू कर दिया था। हालांकि इन बैठकों में भाग लेने का प्रयोजन राजनीति से परे था। मोदी जी के बाल मन पर सबसे अधिक प्रभाव लक्ष्मणराव इनामदार, जिनको ‘वकील साहेब’ के नाम से भी जाना जाता था उनका पड़ा। 20 वर्ष की उम्र में आरएसएस के नियमित सदस्य बन गए। मोदी जी के समर्पण और संगठन कौशल ने वकील साहब और अन्य लोगों को प्रभावित किया और वे 1972 में प्रचारक बन गए। बचपन से ही नरेंद्र मोदी किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझते थे। कठोर दैनिक दिनचर्या का पालन करते थे। एक व्यस्त दिनचर्या के बीच नरेन्द्र मोदी ने राजनीति विज्ञान में अपनी डिग्री पूर्ण की। उन्होंने शिक्षा और अध्ययन को सदैव महत्वपूर्ण माना।

बचपन से ही किया भारत की विविधता का अनुभव

बचपन से ही नरेंद्र मोदी के अंदर देश के लिए मर-मिटने का, कुछ कर गुजरने का जज्बा था, 1962 के युद्ध के समय सेना के जवानों का हौंसला देखकर उनकी यह भावना और प्रबल हो गई। वडनगर रेलवे स्टेशन पर सैनिकों को चाय पिलाते हुए उन्होंने ठान लिया, अब ये जीवन देश को समर्पित करना है। स्टेशन पर ही देशभर के लोगों को चाय पिलाते हुए, उनसे बात करते हुए उन्हें भारत की विविधिता को अनुभव करने का मौका मिला। बचपन से ही कैडेट के रूप में भी उनके अंदर देश भक्ति की जड़ें और गहरी हुई।

हिमालय की गोद में नरेंद्र मोदी

युवावस्था में कदम रखने के साथ ही जीवन को लेकर नरेंद्र मोदी का चिंतन-मनन और गहरा होता गया। एक समय ऐसा आया जब अपने अंतर्मन की आवाज सुनकर युवा नरेंद्र जीवन को जानने के लिए निकल पड़े। बस दो जोड़ी कपड़े और ढेर सारे सवालों के साथ, प्रकृति के सानिध्य में, हिमालय की गोद में। बता दें कि नरेंद्र मोदी के जीवन का यह एक ऐसा पक्ष है, जिसके बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते वो पक्ष है उनके हिमालय पर रहने का।  मोदी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अज्ञातवास के तौर पर कई साल हिमालय पर जाकर बिताए। उस दौरान उनके परिवार तक को नहीं पता था कि वो कहां हैं, जीवित हैं या नहीं और क्या कर रहे हैं? पश्चिम बंगाल में रामकृष्ण आश्रम और यहाँ तक कि पूर्वाेत्तर भी शामिल है। इन यात्राओं ने इस नौजवान मोदी के ऊपर अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने भारत के विशाल भू-भाग में यात्राएँ कीं और देश के विभिन्न भागों की विभिन्न संस्कृतियों को अनुभव किया।

 कलम, कविता कला, करूणा

 नरेंद्र मोदी राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ साथ एक संवेदनशील कवि और सामाजिक चिंतक भी हैं। उन्होंने बचपन में ही समाज में फैले भेदभाव को उजागर करने के लिए ‘‘पीलू फूल’’ नामक नाटक गुजराती में जहां ‘आंख आ धन्य छे’’ जैसा काव्य संग्रह लिखा तो वहां साक्षी भाव, सामाजिक समरसता जैसी पुस्तकों की भी रचना की। एक अत्यंकत मेहनती प्रधानमंत्री होने और कठिन कार्यक्रम का पालन करने के बावजूद उन्होंने अपने विद्यार्थी मित्रों को परीक्षा में तनाव को कैसे कम करें, इसके लिए ‘‘एग्जाम वॉरियर्स’’ पुस्तक में मंत्र दिए। उन्होंने अपनी लेखनी में सामाजिक जीवन के हर पहलू, हर क्षेत्र का समाहित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच है कि देश का हर व्यक्ति सशक्त हो, एक समावेशी समाज का निर्माण हो, ‘सम’ और ‘मम’ के भाव से समाज में समरसता बढ़े और सब एक साथ मिलकर आगे बढ़े।

कन्याकुमारी से श्रीनगर की यात्रा ने बढ़ाया मोदी का कद

वर्ष 1991 में मुरली मनोहर जोशी की कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की एकता यात्रा के सफल संयोजन से मोदी का कद और बढ़ा। भाजपा की 1995 में गुजरात विधानसभा चुनाव में जीत के पीछे मोदी की चुनावी रणनीति की अहम भूमिका रही। उनकी प्रतिभा को देखते हुए नवंबर 1995 में उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय सचिव बनाकर दिल्ली भेजा गया। जहां उन्हें हरियाणा और हिमाचल की जिम्मेदारी दी गई। मोदी को मई 1998 में भाजपा का महासचिव बनाया गया। मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल की सेहत बिगड़ने पर 7 अक्टूबर 2001 को उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद मोदी ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनके निणर्य सदैव दुनिया को चौकाते रहे। 2014 में गुजरात मॉडल देश के सामने रखा, जिसे देश की जनता न हाथों-हाथ लिया और उन्हें प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाया। मोदी पर जनता का कितना विश्वास है वो कोरोना काल में पूरी दुनिया ने देखा।

आरएसएस में बनाई गहरी पैठ

तर्कशक्ति, तीक्ष्ण बौद्धिक क्षमता और सांगठनिक कौशल के धनी मोदी ने आरएसएस में गहरी पैठ बनाई। आपातकाल के दौरान (1975-77) छद्म वेश धारण कर मोदी सरकार की पकड़ से दूर रहे। उन्होंने प्रतिबंधित साहित्य बांटने और जार्ज फर्नांडिस जैसे नेताओं को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का काम किया। मोदी आरएसएस के जरिये ही 1985 में भाजपा में शामिल हुए। तब शंकर सिंह वाघेला और केशूभाई पटेल गुजरात भाजपा के कद्दावर नेताओं में से थे। अहमदाबाद नगर निकाय चुनाव (1986) में पार्टी की जीत में उनका अहम योगदान रहा। आडवाणी की रथ यात्रा राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहली बड़ी राजनीतिक जिम्मेदारी थी। 1988 में वह गुजरात भाजपा इकाई में संगठन सचिव चुने गए।

 मोदी के साथ दुनिया योग पथ पर

 नीति स्पष्ट हो, नीयत साफ हो और इरादे नेक हो इच्छित परिणाम लाया जा सकता है और इस बात को मोदी ने सिद्ध करके दिखा दिया। आज दुनिया भारत के साथ योग पर्व मना रही है। अंतराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की प्रधानमंत्री मोदी की अपील को संयुक्त राष्ट्र में 177 राष्ट्रों ने खुले मन से स्वीकार किया। हर साल 21जून को खुद प्रधानमंत्री मोदी देशवासियों के साथ योग करते हैं, जिसका अनुसरण पूरी दुनिया करती है। यह भारतीय संस्कृति के इतिहास में एक नया अध्याय है, जिसमें हर साल लाखों-करोड़ों लोग योग पर्व मनाते हैं। 

लोगों को करीब से जानते हैं मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास लोगों को करीब से जानने का अनुभव है। युवाओं के विचारों और उनमें आ रहे परिवर्तनों को भली भांति जानते हैं और समझते हैं। युवाओं को आने वाले भविष्य की जरूरतों के बारे में बताते हैं। मोदी जी ऐसे राष्ट्राध्यक्ष भी हैं जिसे रूस और अमेरिका दोनों खुश करना चाहते हैं। वे एक ऐसे राजनेता हैं, जिन्होंने नए युग की विश्व राजनीति में भारत की जगह को परिभाषित किया है। अमेरिका और रूस वैश्विक मामलों पर नरेंद्र मोदी के रुख की ओर उत्सुकता से देखते हैं। कभी चाय की दुकान पर काम करने वाला लड़का अब भारत को सबसे बड़ी विश्व शक्ति बनाने का सपना देखता है।

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