पैसो की हवस में अंधे बाजारू गुरु, स्कूल टाइम में करा रहे कोचिंग

सीबीएसई  को सबकुछ पता ,कार्रवाई के नाम पर जीरो 


रणघोष खास. सुभाष चौधरी
लगता है शिक्षा के बाजार में ज्यादा से ज्यादा कमाने की हवस ने बाजारू गुरुजनों की मनो स्थिति को बिखेर कर रख दिया है। वे अब शिक्षा की बुनियाद को ही खत्म करने में लग गए हैं। विद्यार्थियों को सीधे नीट, जेईई, एनडीए समेत अनेक तरह की राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा में बेहतर नंबर दिलाने के लिए वे कक्षाओं में सिलसिलेवार निर्धारित पाठयक्रमों को पढ़ाने की बजाय परीक्षाओं की तैयारियां करवा रहे हैं। कुछ स्कूलों में तो ग्रीन कार्ड के नाम पर अजीबों गरीब खेल चल रहा है। बच्चों का दाखिला कहीं चल रहा है और वह पढ़ किसी ओर सेंटर में रहा है। यह शिक्षा के नाम पर ऐसा खेल है जिसमें काफी हद तक वे अभिभावक भी पूरी तरह से जिम्मेदार है जो अपने बच्चों का मूल्यों पर आधारित सर्वांगिण विकास कराने की बजाय उसे बाजार में पैकेज के तौर पर एक माल की तरह तैयार करवा रहे हैं। हालांकि सीबीएसई समय समय पर इस तरह बाजारू शिक्षा के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के आदेश जारी करती रही हैं लेकिन यह आदेश भी कागजों में अधिकारियों की जेबों को संतुष्ट करके शांत हो जाते हैं। रेवाड़ी में इस बार कुछ स्कूलों में सार्वजनिक तौर पर बेहतर पढ़ाई व रजल्ट के नाम पर चल रहा है। कुछ माह पहले केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के परीक्षा नियंत्रक डॉ. संयम भारद्वाज ने माना था कि पिछले काफी दिनों से ऐसे काफी स्कूलों की शिकायत मिल रही हैं कि वो कुछ पैसों के लालच में कोचिंग संस्थाओं में पढ़ रहे बच्चों का नाम अपने स्कूल में नियमित छात्र के रूप में एनरोल कर लेते हैं और बच्चा नियमित स्कूल में न आकर किसी न किसी कोचिंग संस्थान में चला जाता है।अभिभावक दोनों तरफ से लुटते रहते हैं। स्कूल की फीस भी देते हैं और कोचिंग संस्थान की फीस का भी भुगतान करते हैं। बड़े कोचिंग संस्थानों में एक कक्षा में 80 से 120 बच्चें बैठते हैं और बच्चों पर कोई व्यक्तिगत तवज्जो नही दी जाती और ना ही उनका व्यक्तिगत आंकलन हो पाता है। यह सीबीएसई के एडमिशन बाई लांज के खिलाफ है।
रजिस्ट्रेशन कोचिंग का, चल रहे स्कूल
बच्चों को कोचिंग पढ़ाने के नाम पर रजिस्ट्रेशन कराने वाले कुछ संचालक बाकायदा स्कूल चला रहे हैं। बोर्ड परीक्षा में फार्म भराने से लेकर कापी लिखाने तक का सौदा करने वाले यह कोचिंग संस्थान अभिभावकों की आंखों में धूल झोंक मोटी उगाही कर रहे हैं। शहर और ग्रामीण इलाकों के कोचिंग संस्थान पढ़े-लिखे अभिभावकों और बच्चों को जहां छल रहे हैं वहीं राजस्व का चूना भी लगा रहे हैं।
कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को अच्छा अंक दिलाने का ठेका लेते हैं। यही नहीं रिजल्ट आने के बाद बड़ी-बड़ी होर्डिंग लगाकर झूठी शान हासिल करते हैं। परीक्षा फार्म भरने के साथ ही यह कोचिंग संस्थान सक्रिय हो जाते हैं। इनकी पूरी कोशिश होती है कि उनसे जुड़े बच्चों और उनके कोचिंग अर्थात स्कूल के बच्चों का सेंटर गांव में चला जाए ताकि वे अच्छी तरह से नकल कराकर सफलता का सारा श्रेय अपने संस्थान को दे सकें।

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