रणघोष खास: सरेआम हो रहा शिक्षा का चीरहरण, प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन धृतराष्ट्र बन अनजान

-लाखों रुपए का वेतन लेने वाले छोटे- बड़े शिक्षा अधिकारियों की स्थिति यह है कि वे इस लूट के धंधे में अपना जुगाड़ करने में लगे हुए हैं ताकि रिटायरमेंट के बाद  ऐशो आराम की जिंदगी में कोई कसर नहीं रहे।  


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


अप्रैल माह में दाखिला के नाम पर प्राइवेट स्कूल इस कदर पागलों की तरह अभिभावकों को तरह तरह के सपने दिखाकर लूटने में लगे हैं मानो ऐसा करने के लिए उन्हें चारों तरफ से खुली छूट मिल गई हो। स्कूलों के अधिकार एवं हितों के लिए बनी प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन सबकुछ जानते एवं स्वीकार करते हुए भी धृतराष्ट्र की तरह शिक्षा का चीरहरण होते हुए देख रही है। मजाल कोई सार्थक कदम उठाने के लिए आगे आए। इससे उलट अगर किसी स्कूल पर कोई कार्रवाई हो जाए तो यहीं एसोसिएशन इस कदर हमला करेगी मानो शिक्षा की गरिमा पर किसी ने हमला कर दिया हो। इसी तरह
लाखों रुपए का वेतन लेने वाले छोटे- बड़े शिक्षा अधिकारियों की स्थिति यह है कि वे इस लूट के धंधे में अपना जुगाड़ करने में लगे हुए हैं ताकि रिटायरमेंट के बाद ऐशो आराम की जिंदगी में कोई कसर नहीं रहे। यहां गौर करिए सरकारी महकमों में अपनी डयूटी के प्रति बदनाम रहे अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी पेंशन पर आने के बाद सामाजिक संगठनों से जुड़कर, समाजसेवी, सामाजिक कार्यकर्ता की शक्ल में सिस्टम में खामियों को लेकर सबसे आगे झंडा लेकर नजर आते हैँ।
जिस तरह प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर्स अनाप शनाप दवाईयों एवं टेस्ट के नाम पर मरीजों के परिजनों को आर्थिक एवं मानसिक तौर पर तोड़ रहे हैं उसी लूटने के फार्मूले को प्राइवेट स्कूलों ने अलग अलग डिजाइन में लागू किया हुआ है। सोचिए प्राइवेट स्कूल दाखिला से लेकर, पुस्तक, ड्रेस, अनाप शनाप स्कूल चार्ज के नाम पर कई सालों से सरेआम लूटते आ रहे हैं। मजाल किसी का बाल बांका हुआ हो। उलटा कार्रवाई के नाम पर शिक्षा विभाग के चपरासी से लेकर अधिकारी मीडिया में बदनामी का डर दिखाकर अपना ही खेल कर गए। अगर समय रहते कार्रवाई होती तो आज शिक्षा के नाम पर इतना बड़ा बाजार खड़ा नहीं होता। इसी तरह जगह जगह खुले कोचिंग सेंटर व राजस्थान में बने सख्त नियमों से घबराकर हरियाणा के स्कूलों में फ्रेंचाइजी के नाम पर शिक्षा का नया हथकंडा लेकर आने वाले इस कोचिंग माफियाओं ने भी स्कूलों की आड लेकर तेजी से जाल फैलाना शुरू कर दिया है। लाखों रुपए प्रचार पर खर्च किए जा रहे हैं जिसकी वसूली भी अभिभावकों से किसी ना किसी तरीके से की जा रही हैं। हालात यह बन चुके हैं कि इन स्कूलों में उस शिक्षक को सबसे ज्यादा सम्मान व वेतनमान मिलता है जो बेहतर पढ़ाने की बजाय अपने दम पर सबसे ज्यादा विद्यार्थियों का दाखिला कराने में सफल रहा हो। इस तरह के शिक्षक पढ़ाने की बजाय गांवों- गली मोहल्लों में जाकर अभिभावकों को अपने विश्वास में लेकर किसी स्कूल में दाखिला का अच्छा खासा ठेका लेते हैं। बेहतर शिक्षा के नाम पर ऐसा जाल बिछाया जा चुका है जिसमें अभिभावक चाहकर भी निकल नहीं सकता। कुल मिलाकर जिस तरह योगा को लेकर जन जागृति फैली है उसी तरह सभी को शिक्षा के मूल्यों को लेकर सामाजिक क्रांति के तौर पर आगे आना होगा। मत भूलिए इस मौजूदा हालात के लिए हम सभी जिम्मेदार है।

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