पढ़िए सुलखा स्कूल में तीन साल के हुए नीम के पेड़ की कहानी, गर्व करेंगे

रणघोष खास. पर्यावरणविद् की कलम से


पौधे का पेड़ बनना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन हर साल पर्यावरण के नाम पर लाखों- करोड़ों पौधे लगाना और मुश्किल से कुछ हजार पौधो का पेड़ बनना और बाकी का खत्म हो जाना पर्यावरण को लेकर हमारी कथनी- करनी को उजागर करता है। ऐसे में गांव सुलखा में तीन साल का हुआ नीम का पेड़ आज उदाहरण बनकर खुद पर इतरा रहा है। वजह उसकी परवरिश ठीक उसी तरह हुई जिस तरह माता- पिता अपने संतान की करते हैं।

यह खबर आम से खास इसलिए लगती है क्योंकि ऐसे बहुत कम लोग होंगे जो यह बता सके कि यह विशाल पेड़ हमारा लगाया हुआ है। इसलिए सुलखा स्कूल में लगे नीम के पेड़ की छोटी सी कहानी बताना जरूरी है।   जिला पार्षद आजाद नांधा तीन साल पहले रूटीन में उस समय की जिला प्रमुख मंजू बाला के साथ गांव सुलखा के सरकारी स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे। वहां सम्मान के तौर पर नांधा ने स्कूल प्रांगण में नीम का पौधा लगाया और चले गए। तीन साल बाद  जब नांधा को इसी स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया तो उन्हें एक पेड़ के नीचे खड़ा किया गया। कार्यक्रम के दौरान स्कूल प्राचार्य डॉ. कर्मवीर यादव एवं साइंस प्राध्यापक सुरेंद्र कुमार ने बताया कि वे जिस पेड़ के नीचे खड़े हैं। तीन साल पहले उन्होंने ही इसे लगाया था। हैरान आजाद नांधा ने कहा कि यह उनके जीवन का पहला अहसास है। उन्होंने अपने जीवन में पौधे खुब लगाए लेकिन किसी को पेड़ बनते पहली बार देखा। यह छोटी सी कहानी बताती है कि उदाहरण बनिए दावें मत करिए। पौधा वहीं लगाए जो संतान के तौर पर उसकी परवरिश कर उसे बड़ा भी करें। महज अखबारों में सुर्खियां बटोरेने के लिए पौधारोपण अभियान का ढिंढोरा पीटना खुद को धोखे में रखना है। सच में पर्यावरण को लेकर हम गंभीर है तो हमें सुलखा स्कूल की तरह उदाहरण सामने लाने होंगे।

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