बच्चों को पढ़ा रहे-महान सावरकर बुलबुल के पंख पर उड़ते थे!

रणघोष अपडेट. देशभर से 

हिंदुत्व के विचारक विनायक दामोदर सावरकर को स्थापित करने के चक्कर में बच्चों की इस पीढ़ी के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ होने जा रहा है। अब यह पता चला है कि कर्नाटक में रोहित चक्रतीर्थ की अध्यक्षता वाली पाठ्यपुस्तक संशोधन कमेटी ने आठवीं क्लास के संशोधित पाठ्यक्रम में सावरकर पर एक पाठ डाला है जो विवादास्पद होने के अलावा मूर्खतापूर्ण भी है।द हिन्दू अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक उस पाठ के लेखक ने एक पैराग्राफ में लिखा है – “अंडमान की जिस कोठरी में सावरकर बंद थे, वहां चाबी का छेद भी नहीं था। लेकिन, बुलबुल पक्षी कमरे में आते थे और सावरकर उनके पंखों पर बैठकर उड़ान भरते थे और हर दिन मातृभूमि का दौरा करते थे।”इस पर काफी टीचरों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यदि लेखक ने सावरकर की लाक्षणिक रूप से प्रशंसा की है, तो कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन पंक्तियों को ऐसे लिखा गया है जैसे कि यह एक तथ्य हों। विद्यार्थियों को यह समझाना बहुत कठिन है। अगर छात्र इस बारे में सवाल पूछते हैं और सबूत मांगते हैं, तो हम इसे कैसे कर सकते हैं? दसवीं क्लास के बच्चे समझदार होते हैं, वे किस तरह से स्वीकार करेंगे कि बुलबुल के पंख पर सावरकर किस तरह मातृभूमि का दौरा करते थे। यह पता चला है कि आठवीं कक्षा, कन्नड़ -2, पाठ्यपुस्तक में लेखक के.टी. ने “रक्त समूह” पाठ के बजाय गट्टी का “कलावनु गेद्दावरु” पाठ दिया है। यह पाठ एक यात्रा वृत्तांत है, जहाँ लेखक अंडमान सेलुलर जेल के बारे में बात करता है, जहाँ सावरकर को अंग्रेजों ने कैद किया था। विवादास्पद पैराग्राफ परइस आधार पर आपत्ति उठाई गई है कि पाठ ने एक भाग में सावरकर का “महिमा” गान किया। लेकिन तथ्य नहीं बताए। जो तथ्य बताए जा रहे हैं वो उलूल-जुलूल हैं। जिनकी सत्यता पर विश्वास करना मुश्किल है। इस शुक्रवार को सोशल मीडिया पर पाठ का वो हिस्सा वायरल होने के कुछ घंटों बाद, कर्नाटक टेक्स्टबुक सोसाइटी (केटीबीएस) को कई मौखिक शिकायतें भी मिलीं। लोगों ने पाठ का और सावरकर का जमकर मजाक उड़ाया है। हालांकि कर्नाटक के शिक्षा मंत्री ने इसे सही ठहराया है। स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के मंत्री नागेश ने द हिंदू को बताया, “सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी हैं। लेखक ने उस पाठ में जो वर्णन किया है वह सटीक है।” मंत्री का ऐसा जवाब पहली बार नहीं है। मंत्री और उनकी पार्टी बीजेपी के लोग सावरकर और अपने अन्य कथित स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में तथ्यों के साथ बचाव नहीं कर पाते तो उल्टे सीधे जवाब देते हैं।   इससे पहले, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का एक भाषण विवादास्पद हो चुका है, जिसका प्रचार कर्नाटक सरकार ने किया था।

क्यों खतरनाक है यह सब


तथ्य यह है कि अंडमान और भारत की मुख्य भूमि के बीच की दूरी 1400 किलोमीटर है और इस मूर्खतापूर्ण दावे पर कोई विश्वास नहीं करेगा।लेकिन 25-30 साल बाद एक पीढ़ी में सावरकर और बुलबुल की यह कहानी एक आदर्श बन जाएगी। भारत में इतिहास अब इसी तरह काम करता है।

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