बजट: 10 साल बाद क्या इस बार बदलेगी इनकम टैक्स स्लैब?

रणघोष खास. आलोक जोशी सत्य डाट काम से


नया साल आते ही अब बजट का शोर तेज़ हो जाता है। आखिर इस सरकार ने बजट की तारीख एक महीना पहले भी तो कर दी है। फरवरी की आखिरी तारीख के बजाय अब फरवरी के पहले दिन ही बजट आने लगा है। तर्क है कि इससे बजट समय से पास हो सकता है और अगला वित्तवर्ष शुरू होने के पहले ही सरकार को काम शुरू करने का अख्तियार मिल जाता है। इसका एक नतीजा यह भी हुआ है कि नए साल के बाद जब तक आम लोगों को बजट की याद आती है उससे पहले ही सरकार बजट पर ज्यादातर काम ख़त्म कर चुकी होती है।यूँ तो वित्तमंत्रालय में एक पूरा विभाग है जो साल भर बजट के ही काम में जुटा रहता है लेकिन सरकार के तमाम मंत्रालयों और देश-समाज के ऐसे तमाम तबक़ों से चर्चा का काम भी साल की आखिरी तिमाही में होता है जिनपर बजट का असर पड़ता है। वो बताते हैं कि उन्हें बजट से क्या चाहिए और यह भी कि बजट में उसका इंतज़ाम कैसे हो सकता है। खासकर अर्थशास्त्री, कृषि विशेषज्ञ और बड़े-छोटे उद्योग संगठन तो एक तरह से पूरे बजट का खाका ही अपनी तरफ़ से सामने रखते हैं ताकि सरकार उनकी बात पर गंभीरता से विचार करे। यह कसरत तो क़रीब-क़रीब हर साल होती है। कुछ मांगें और कुछ सुझाव भी हर साल ही दिए जाते हैं। लेकिन यह साल कुछ खास है। खास इसलिए क्योंकि कोरोना की भयानक मार से उबरते-उबरते अर्थव्यवस्था को रूस-यूक्रेन युद्ध का झटका झेलना पड़ा। वहाँ से भी अर्थव्यवस्था निकलकर फिर पटरी पर आ जाएगी यह उम्मीद एक बार फिर जाग रही है लेकिन साथ में भारी अनिश्चितता की आशंका भी बरकरार है। खास इसलिए भी है क्योंकि यह बजट मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट होगा। हालाँकि 2024 में चुनाव के पहले एक बजट और आना है, लेकिन परंपरा है कि चुनाव के ठीक पहले अंतरिम बजट ही आता है ताकि नई सरकार फिर अपने हिसाब से बजट ला सके।इस बार बजट में कुछ मिलेगा ऐसी उम्मीदें भी ज्यादा हैं। इसकी वजह यह है कि नोटबंदी, जीएसटी, कोरोना और यूक्रेन पर रूसी हमले जैसी समस्याओं से जूझने के बावजूद सरकार की कमाई बढ़ती हुई ही दिख रही है। दिसंबर के महीने में जीएसटी से 149507 करोड़ रुपए की वसूली हुई। लगातार दसवें महीने यह आँकड़ा एक लाख चालीस हज़ार करोड़ के पार रहा और पिछले साल के मुक़ाबले यह पंद्रह परसेंट ज्यादा है। चालू वित्तवर्ष में यानी एक अप्रैल से 17 दिसंबर तक प्रत्यक्ष कर के खाते में 1363649 करोड़ रुपए सरकारी खजाने में आए जो पिछले साल के इसी समय से लगभग 26% ज्यादा था। हालांकि इस बीच सरकार का कर्ज भी बढ़ा है और जीडीपी के मुकाबले कर्ज का अनुपात 84% पर पहुंच चुका है। लेकिन पश्चिमी देशों से मुकाबला करें तो यह बोझ इतना भी नहीं है कि चलना मुश्किल हो जाए।सरकार की कमाई का यह हाल देखकर और सामने चुनाव देखकर आम आदमी से लेकर बड़े उद्योगपतियों तक को अब बजट में कुछ मिलने की उम्मीद दिख रही है। सबसे ज़्यादा मांग है टैक्स कटौती की। कई साल से मिडिल क्लास उम्मीद कर रहा है कि वित्तमंत्री के लाल बस्ते से और उसके भीतर रखे मेड इन इंडिया टैबलेट से उसके लिए कुछ राहतों का पिटारा खुलेगा। इस बार यह उम्मीद पूरी होने की संभावना प्रबल दिखती है।

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