रणघोष अपडेट. देशभर से
मुंह सामने खड़े पांच राज्यों के चुनाव से पहले रविवार को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होने जा रही है। बैठक में हालिया उपचुनाव के नतीजों, 2022 में होने वाले सात राज्यों के चुनाव पर पार्टी के नेता मंथन करेंगे। जेपी नड्डा के पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की यह पहली बैठक है। बैठक नई दिल्ली स्थित एनडीएमसी के कन्वेंशन सेंटर में होगी। बैठक में राज्य इकाइयों के अध्यक्ष, महासचिव (संगठन) और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सहित कई पदाधिकारी हिस्सा लेंगे। चार से पांच महीने के भीतर पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें उत्तर प्रदेश जैसा अहम राज्य भी शामिल है। पार्टी ने इन राज्यों में फिर से सरकार बनाने के लिए चुनावी कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह सहित कई बड़े नेता चुनावी राज्यों का दौरा कर रहे हैं जबकि जेपी नड्डा लगातार इन राज्यों के पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं। पांच चुनावी राज्यों में उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंड शामिल हैं जबकि 2022 के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव होने हैं। इन सात में से छह राज्यों में बीजेपी की सरकार है। पंजाब में किसान आंदोलन के बेहद मज़बूत होने और शिरोमणि अकाली दल के अलग होने के कारण बीजेपी को वहां से उम्मीद कम ही है। लेकिन अगर मोदी सरकार कृषि क़ानून वापस ले लेती है तो पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से उसे सियासी फ़ायदा हो सकता है।
यूपी पर विशेष जोर
उत्तर प्रदेश को पार्टी किसी क़ीमत पर नहीं खोना चाहती क्योंकि यह प्रदेश दिल्ली का रास्ता तय करता है। 2022 में अगर बीजेपी को यहां चुनावी हार मिली तो इसके बाद एंटी बीजेपी फ्रंट बनाने में जुटे नेताओं को ताक़त मिलेगी और बीजेपी के ख़िलाफ़ एक बड़ा गठबंधन तैयार हो सकता है। इसलिए पार्टी यहां दलित, ओबीसी से लेकर तमाम वर्गों को साध रही है।
उपचुनाव के नतीजों से हलचल
तीन लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों के हालिया नतीजों का असर क्या पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर भी हो सकता है, इसे लेकर भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में चर्चा हो सकती है। हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल में पार्टी का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा है और इससे उसकी चिंता बढ़ी है। माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व हिमाचल के मुख्यमंत्री को बदल सकता है और राजस्थान में भी पार्टी संगठन को लेकर कोई बड़ा क़दम उठा सकता है।
किसान आंदोलन से डर
बीजेपी की सबसे बड़ी चिंता किसान आंदोलन है। बीजेपी को किसान आंदोलन के कारण उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में बड़ा सियासी नुक़सान होने का डर सता रहा है। बीजेपी और संघ परिवार जानते हैं कि 2024 के चुनाव नतीजे तय करने में 2022 की बड़ी भूमिका है, इसलिए चुनावों में पूरी ताक़त के साथ उतरा जाए। लेकिन दोनों के पास यह भी फ़ीडबैक है कि किसान आंदोलन उनके लिए मुसीबत बन सकता है। इसलिए संभव है कि मोदी सरकार कृषि क़ानूनों को लेकर कोई फ़ैसला ले ले।