बड़ी खबर: सरस्वती दा सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फार रिसर्च ऑन सरस्वती रिवर (सीईआरएसआर) ने माना

सरस्वती नदी पानीपत- सोनीपत- झज्जर-महेंद्रगढ़ से होकर निकली है

रणघोष अपडेट.  हरियाणा

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सरस्वती दा सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फार रिसर्च ऑन सरस्वती रिवर (सीईआरएसआर) ने दावा किया है कि हरियाणा में सरस्वती नदी की सही दिशा ओर दशा का पता चल गया है। सीईआरएसआर की रिपोर्ट के मुताबिक सरस्वती नदी हिमालय से होते हुए उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से हरियाणा में पानीपत के रास्ते से प्रवेश करती है। उसके बाद सोनीपत- झज्जर- महेंद्रगढ़ में ढोसी क पहाड़ी के पास से गुजरते हुए राजस्थान के संभार, पुष्कर लेक, निंबोहड, नाथवाड़ा,ढुंगरपुर से होकर गुजरात में प्रवेश कर रही है। सरस्वती नदी के मूल स्वरूप को लेकर पिछले 15 सालों से रिसर्च कर रहे ब्रह्मवर्त रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चरल हैरीटेज के स्थानीय संयोजक सुधीर भार्गव ने इस रिपोर्ट पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि अब सरकार को चाहिए कि वह ब्रहमवर्त बोर्ड का गठन कर उस सभ्यता को पटल पर लाए जो दक्षिण हरियाणा खासतौर से महेंद्रगढ़- रेवाड़ी के इतिहास से जुड़ी हुई है। सुधीर भार्गव ने कहा कि यह हम सभी के लिए बेहतर समय है।    हम यहां जिस सभ्यता की बात कर रहे हैं वह 10 हजार वर्ष पुरानी है। हम तमाम  साक्ष्यों के साथ आज भी दावा कर रहे हैं कि इस प्रदेश की सभ्यता हड़प्पा मोहन जोदड़ो से भी अधिक विकसित थी। यह प्रदेश वैदिक ग्रंथों में वर्णित दृषद्वती (साहबी) सरस्वती नदी के बीच पुष्कर तक फैला था। अगर सरस्वती नदी की तरह इस क्षेत्र में खोदाई हो तो एक विकसित सभ्यता सामने आने में देर नहीं लगेगी। इस बारे में मुख्यमंत्री मनोहरलाल को दो बार प्रजेंटेशन दे चुके है। वे इस मुद्दे पर बेहद गंभीर है। इसलिए उन्होंने निजी तौर पर पिछले दिनों ढोसी की पहाड़ी का दौरा किया था।  फाउंडेशन का दावा है कि ब्रह्मवर्त राज्य से ही आर्य सभ्यता दुनिया में फैली थी। भारत में आर्य कहीं बाहर से नहीं आए थे। यहीं वैदिक ग्रंथों की रचना हुई थी। किस प्रकार भूगर्भीय गतिविधियों से छहसात हजार साल पहले नदियों के रास्ते बदले और ब्रह्मवर्त से लोगों का पलायन शुरू हुआ।

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