भाजपा ने बदली परिवारवाद की परिभाषा

  भाजपा से टिकट मिलना अब आरती राव के लिए हो रहा आसान


    दरअसल चुनाव में जीत के लिए उन तमाम दीवारों को ढहाया जा रहा है जिसे वसूलों के मसाले से खड़ी किए जाने का दावा किया जाता है।


IMG-20221214-WA0006[1]रणघोष खास. प्रदीप नारायण

 कनार्टक चुनाव के समुद्र में अपनी किश्ती को सत्ता के किनारे तक पहुंचाने के लिए भाजपा ने पूरी तरह परिवारवाद राजनीति की स्क्रिप्ट समय के अनुसार बदल दी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि सीएम का बेटा सीएम बने या अध्यक्ष बने यह परिवारवाद में आता है। हमने कर्नाटक में अनेक नेताओं की संतानों की टिकट दी है। उन्हें सीएम या अध्यक्ष थोड़ी बना रहे हैं। इसमें गलत कुछ नहीं है। राजनीति में आना बुरी बात नहीं है। शाह ने कांग्रेस में गांधी परिवार के उदाहरण से परिवारवाद की असल परिभाषा को बताया। इस बयान से भाजपा के उन नेताओं को आक्सीजन मिल गई है जो ढलती उम्र में अपनी राजनीति विरासत को अपनी संतानों को सौंपने के लिए पार्टी के भीतर छटपटा रहे हैं। यहां बताना जरूरी है कि 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में परिवारवाद की परिभाषा दूसरी थी। जिसके चलते केंद्रीय मंत्री राव  इंद्रजीत सिंह अपनी बेटी आरती राव, केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर अपने बेटे, सांसद धर्मबीर सिंह अपने भाई, सांसद नायब सैनी समेत अनेक दिग्गज नेता अपने पारिवारिक सदस्यों को टिकट दिलाने में नाकाम रहे थे। दरअसल चुनाव में जीत के लिए उन तमाम दीवारों को ढहाया जा रहा है जिसे वसूलों के मसाले से खड़ी किए जाने का दावा किया जाता है। कर्नाटक की सत्ता पर दुबारा काबिज होने के लिए  भाजपा रणनीतिकारों को यह मानना पड़ा कि राजनीति की खेती बीज– खाद पानी से नहीं पनपती उसकी रखवाली के लिए चौकीदार भी चाहिए। जाहिर है कई दशकों से चले आ रहे राजनीति घरानों में कुछ आज भी इसलिए असरदार है क्योंकि उसकी रखवाली बराबर होती रही है। इसलिए देश में कांग्रेस का पूरी तरह सफाया कर 2024 के लोकसभा चुनाव में शानदार बहुमत के साथ वापसी करने के लिए भाजपा को अब कुछ घरानों से मोहब्बत रखनी पड़ेगी। इसके लिए वो हर उस करार पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है जिसमें कांग्रेस को खत्म करने का फार्मूला नजर आ रहा हो। यही रणनीति कांग्रेस की है इसके लिए वह भाजपा के अंदर उन नेताओं से मन की बात कर रही है जो बाहर निकलने के लिए छटपटा रहे हैं। ऐसे में देश के अन्य राज्यों में होने वाले  चुनावों में परिवारवाद की राजनीति पूरी तरह चुनाव के माहौल से अपना चेहरा बदलती नजर आएगी। 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 75 पार नारे के नशे में अपनी सुध बुध खोकर परिवारवाद के नाम पर अनेक दिग्गज नेताओं के बेटे- बेटियों को टिकट देने से मना कर दिया था। जिसके चलते टिकटों के बंटवारे में बंदरबाट हुईं और भाजपा 40 सीटों पर सिमट गईं। 2024 में यह गलती दुबारा ना हो जाए इसलिए कर्नाटक के बहाने राजनीति में परिवारवाद का फार्मूला माहौल के हिसाब से बदलता जाएगा। ऐसे में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह समेत अनेक जमीनी स्तर के मजबूत नेताओं की टेंशन खत्म हो सकती है। यहां बता दें कि कुछ दिन पहले राव ने भी कर्नाटक के हवाले से अपनी बेटी के लिए टिकट की चाहत को जायज बताया था। राव का दावा दिन प्रतिदिन इसलिए मजबूत होता जा रहा है कि वे दक्षिण हरियाणा के चार जिले महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुरुग्राम एवं मेवात जिले की 14 विधानसभा सीटों पर बेअसर ना होकर  सीधा कम ज्यादा असर डालते हैं। मौजूदा हालात में जमीनी स्तर पर उनके कद का नेता अभी तक किसी भी दल में पनप नहीं पाया है। इसलिए हरियाणा के चुनाव में टिकट के समय राव की अनदेखी आसान नहीं होगी लेकिन लोकसभा चुनाव में मानसिकता अलग काम करेगी। कुल मिलाकर 2024 चुनाव से पहले भाजपा में  परिवारवाद की राजनीति अपने कितने ओर रंग बदलती है यह देखने वाली बात होगी।

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