पारिवारिक- सामाजिक सरोकार से जुड़ा लेख

बुजुर्गों की उपेक्षा को अपराध माना जाए


“इससे बड़ा अपराध क्या हो सकता है जब बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता को दो वक्त की रोटी न दें”


रणघोष खास. सत्यपाल जैन, साभार: आउटलुक

हरियाणा के दादरी में एक संपन्न परिवार द्वारा सताए गए बुजुर्ग माता-पिता की आत्महत्या की घटना से सभ्य समाज लांछित हुआ है। जिस देश की संस्कृति में आपके माता-पिता ही नहीं, बल्कि हरेक बुजुर्ग वंदनीय है वहां उम्रदराज लाचारों पर बढ़ते अत्याचार की घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दादरी की घटना में करीब 80 वर्ष की उम्र के बुजुर्ग दंपती सुसाइड नोट में अपने बच्चों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और आरोप भी यह है कि उनके बच्चे उन्हें दो वक्त का खाना तक नहीं देते थे। यह मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का है। उन बुजुर्ग दंपती के परिजनों पर हत्या का ही नहीं बल्कि उत्पीड़न के मामले से जुड़ी यथासंभव तमाम धाराएं भी लगाई जानी चाहिए। मामले में आरोपियों के प्रति कोई नरमी नहीं बरती जानी चाहिए, भले ही वे कितनी ही बड़ी पहुंच वाले लोग क्यों न हों।

बुजुर्ग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल और उनके भरण-पोषण की जिम्मेदारी परिजनों पर तय करने के लिए मेंटेनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजन एक्ट-2007 है मगर यह कानून गैर-अपराध वर्ग में होने की वजह से बुजुर्गों के हितों की रक्षा करने में कारगर साबित नहीं हो पाया। इसी वजह से परिवारों में बुजुर्गों की उपेक्षा की वजह से उनकी आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसे समय रहते नहीं रोका गया तो परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं।

इससे बड़ा अपराध क्या हो सकता है जब बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता को दो वक्त की रोटी न दें। बच्चों में घर करती ऐसी सोच कई और बेबस बुजुर्गों की जान के लिए खतरा है। बुजुर्गों के संरक्षण के लिए मेंटेनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजन एक्ट में संशोधन की दरकार है जिसमें मां-बाप या वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा,उत्पीड़न करने वालों पर संगीन अपराध की धाराओं के बराबर कड़ी सजा का प्रावधान हो।

इस कानून में सिर्फ इतना प्रावधान है कि कोई बेटा या बेटी अपने मां-बाप को प्रताडि़त करता है तो वे उसे अपनी धन-संपदा से बेदखल कर सकते हैं। इसे उत्तर प्रदेश समेत कुछेक राज्यों ने लागू किया है, लेकिन जरूरत नियम स्पष्ट करने की है कि यदि कोई अपने मां-बाप की सेवा नहीं करता तो उसके खिलाफ आपाराधिक मामले की तर्ज पर कार्रवाई होगी। जिस तरह से बच्चों के उत्पीड़न के मामले में आपराधिक कार्रवाई का प्रावधान है, उसी तर्ज पर बुजुर्गों के उत्पीड़न के मामले में भी आपाराधिक कार्रवाई की जरूरत है।

केंद्र और राज्यों के स्तर पर अभी तक जो भी कानून बने हैं, वे सामान्य श्रेणी के कानून हैं, उन्हें आपराधिक श्रेणी में रखना जरूरी है। इससे मसला हल नहीं होता कि मां-बाप की उपेक्षा, उत्पीड़न करने वालों को प्रापर्टी में हिस्सेदारी नहीं मिलेगी या कोई और शर्त लगा दी जाए। दहेज की मांग या दहेज की वजह से हत्या के मामले जब अपराध की श्रेणी में हैं तो माता-पिता की सेवा न करना आपराधिक मामला क्यों नहीं होना चाहिए?

हमारे समाज, संस्कृति की रक्षा के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर बुजुर्गों की देखभाल तय करने के लिए 2007 के कानून को अपराध की श्रेणी में लाना जरूरी है। ऐसे मामलों की सुनवाई अलग से फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी होनी चाहिए। 2019 में संसद में इस एक्ट में संशोधित विधेयक के जरिये बुजुर्गों की देखभाल न करने वालों को छह महीने कैद की सजा का प्रावधान किया गया पर संशोधित कानून के रूप में कारगर ढंग से लागू न हो पाने के कारण आरोपियों की गिरफ्तारियां नहीं हो रही। किसी राज्य ने इसे लागू करने की पहल नहीं की।

हरियाणा के ताजा घटनाक्रम में मैंने हरियाणा सरकार से भी अपील की है कि इस मामले में किसी तरह की ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए, भले ही आरोपी परिजनों का पद व पहुंच कितनी भी ऊंची क्यों न हो। जिन भी लोगों का जिक्र चरखी दादरी के बुजुर्ग ने सुसाइड नोट में किया है, उन्हें तुरंत गिरफ्तार करके कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

हरियाणा में बुजुर्गों की प्रताड़ना के मामले

वर्ष 2019 में 384 मामले

वर्ष 2020 में 680 मामले

वर्ष 2021 में 1056 मामले

स्रोतः नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)

 (लेखक एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तथा पूर्व सांसद हैं)

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