महामारी के दौर में कैसे मानसिक तकलीफ से बचें?

रणघोष खास. मनीषा जैन 

कोरोना वायरस के प्रकोप ने मानव जीवन और स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है। हर सुबह भयावह आँकड़ों से सामना होता है। लोग मर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, अस्पताल मरीजों से भरे हुए हैं। मनोचिकित्सकों के क्लीनिक और परामर्श केंद्रों में मरीज लगातार आते ही जा रहे हैं। आखिर परेशानी है क्या… बहुत गहरी बेचैनी, शोक, अनिद्रा और अवसाद। इस भयानक बीमारी में जकड़े जाने का या अपने प्रियजनों के बीमार हो जाने का डर। अस्पताल में जाने का और अपने परिवार से अलग-थलग हो जाने का डर या दिनचर्या के चौपट हो जाने का डर। इन सब कारणों से मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। बहुत से लोगों की नौकरी चली गई है या उनका वेतन लगभग आधा कर दिया गया है। और कुछ ने तो अपने घनिष्ठ मित्रों या परिवार जनों को खो दिया है। दिल्ली के मनोचिकित्सक अवधेश शर्मा का कहना है कि ‘केवल कोविड का डर ही नहीं जो लोगों को खाए जा रहा है बल्कि यह है भविष्य का डर, एक अनिश्चितता की अवस्था।’ यह परामर्श मैं सबको देता हूँ कि ‘यहाँ और अब’ में जिएँ। वर्तमान समय विश्व की ओर से हमारे लिए एक उपहार है। हम भूतकाल में ही जी कर अपने वर्तमान को बर्बाद कर रहे हैं। हमें अपने विचारों की शक्ति को बढ़ाना होगा। और नकारात्मक विचारों को रोकना होगा। हमारे पास मुश्किल हालातों से निपटने के लिए अपार शक्ति है। आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर का कहना है, ‘यह कठिन दौर जिसमें से हम गुज़र रहे हैं, हमारी सहनशक्ति और जीतने की ताक़त को उजागर करती है। इससे हम ज़्यादा मज़बूत, दयालु और बुद्धिमान होकर उभरते हैं। यही वह समय है जब हम अपने भीतर के शौर्य को जगा सकते हैं, एक दूसरे के साथ खड़े हो सकते हैं और इस संकट से निपट सकते हैं और अध्यात्म इसमें हमारी सहायता कर सकता है।’ श्री श्री रविशंकर का कहना है कि ‘आध्यात्मिक ध्यान करने से आंतरिक बल का विकास होता है। जब हम अपने चारों ओर मृत्यु देखते हैं तो हमारा मन, जिसे रोजमर्रा की चिंताएँ घेरे रखती हैं, उन से ऊपर उठने को मजबूर हो जाता है और हमारी सोच को जीवन की सच्चाई की ओर खींचता है। जीवन की सच्चाई क्या है? हमारे अंदर ऐसा कुछ है जो कभी नहीं बदलता, कभी नष्ट नहीं होता। वह अनादि है, अविनाशी है। हमें इस तत्व की ओर ध्यान देना होगा। जब हम ऐसा करेंगे तो हम अपने चारों ओर दिखाई देने वाली समस्याओं पर नियंत्रण कर पाएँगे। नहीं तो जब मन टूट जाता है तो दिल भी अंदर से टूट जाता है और तब मनुष्य कुछ भी करने लायक नहीं रहता। ध्यान, ज्ञान और जीवन की सच्चाई को जान लेने से आन्तरिक बल को प्राप्त किया जा सकता है। एक मज़बूत मन एक निर्बल शरीर को तो संभाल सकता है किंतु एक निर्बल मन एक मज़बूत शरीर को नहीं संभाल सकता।’क्या योग और ध्यान करने से इंसान अपनी चिंता, शोक और संताप से बाहर आ सकता है?

आर्ट ऑफ़ लिविंग के शिक्षक दिनेश घोड़के का कहना है कि ‘इस कठिन समय में बहुत से लोग अध्यात्म की ओर अग्रसर हो रहे हैं। योग से शरीर स्वस्थ और दिमाग कुशाग्र हो जाता है और ध्यान से आत्मा का उत्थान होता है और आपको मुश्किल हालातों से निपटने की सामर्थ्य मिलती है।’ विशेषज्ञ कहते हैं कि सकारात्मक दृष्टिकोण, जो कुछ भी अपने पास है उसकी सराहना करना, आपको मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने में बहुत सहायक होगा। इस भयानक महामारी ने हमें बहुत सबक़ सिखाए हैं इसने हमें प्रशंसा करने और कृतज्ञ रहने के मूल्य को भी सिखाया है। कहीं ना कहीं लोग चीजों के महत्व को नहीं समझते थे। वे कहते हैं अब हम फ्रिज में खाना और भंडार घर में राशन होने और सांस ले पाने, अपने पांव से चल पाने और सबसे अधिक ज़िंदा होने के लिए आभारी महसूस कर रहे हैं।

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